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टेस्टोस्टेरॉन थेरेपी बुज़ुर्गों की यौनेच्छा और एनर्जी बढ़ाने में मददगार!

टेस्टोस्टेरॉन थेरेपी बुज़ुर्गों की यौनेच्छा और एनर्जी बढ़ाने में मददगार!
Changes in hormonal levels with age are known to alter a woman's libido. But a study claims that testosterone (a hormone that is secreted in small quantities by the ovaries) levels play a limited role when it comes to driving a menopausal woman's sexual desire.

क्या आप उम्र के बढ़ने के साथ ज्यादा थकान महसूस कर रहे हैं? तो ये थेरेपी आपके लिए मददगार साबित हो सकती है।

Written by Agencies |Updated : January 5, 2017 8:52 AM IST

मूल स्रोत: IANS Hindi

उम्र के बढ़ने के साथ कई समस्याएं बढ़ने लगती है उनमें थकान और कामेच्छा कम हो जाना आम हैं। इस मामले में हाल ही के एक अनुसंधान में ये पाया गया है कि टेस्टोस्टेरॉन थेरेपी बुजुर्गो में न सिर्फ यौनेच्छा बढ़ाती है, बल्कि उनकी चलने-फिरने की क्षमता, ऊर्जा स्तर और संपूर्ण स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाती है। चिकित्सकीय परीक्षण में साबित किए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन से यह जानकारी सामने आई है। 65 साल के ऊपर के पुरुषों का जब टेस्टोस्टेरॉन इलाज किया गया तो उनके यौन क्रियाकलाप के स्तर में सुधार देखा गया, उनका मूड बेहतर हुआ और अवसाद ग्रस्तता के लक्षण दूर हुए।

जिन बुजुर्गो को टेस्टोस्टेरोन थेरपी एक साल तक दी गई, उनकी यौन गतिविधियों, यौन इच्छाओं और इरेक्टाइल कार्यप्रणाली में प्लेसबो (झूठी दवाई) दिए जानेवाले बुजुर्गो की तुलना में बढ़ोतरी देखी गई। पेनसिलवेनिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और मुख्य शोधकर्ता पीटर जे. सेंडर ने बताया, 'टेस्टोस्टेरोन ट्रायल के नतीजे से यह साफ है कि बुजुर्गो को इससे थोड़ा लाभ होता है।'

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यह ट्रायल अमेरिका में 12 जगहों पर किया गया। इसके तहत शोधकर्ताओं ने 51,085 पुरुषों का परीक्षण किया, जिनमें से 790 लोगों में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर कम पाया गया। जिनका स्तर कम था उन पर यह शोध किया गया। इसकी खास बात यह थी कि टेस्टोस्टेरॉन चिकित्सा का कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला।

मर्दो की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, उनमें टेस्टोस्टेरॉन का स्तर घटता जाता है, जिससे वे जल्दी थक जाते हैं और यौन क्षमता में कमी महसूस करने लगते हैं। इससे पहले टेस्टोस्टेरोन चिकित्सा पर किए गए शोध में कोई निर्णायक नतीजा सामने नहीं आया था और इस चिकित्सा की आलोचना भी होती रही है।

यह शोध न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।

चित्र स्रोत: Shutterstock