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आजकल धूल भरी हवा व प्रदूषण ने लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है, इसका सीधा असर हमारे जीवन को प्रभावित करता है यही कारण है कि दिल्ली एन सी आर में कई ऐसे कपल्स हैं, जो काफी कोशिशों के बाद भी माता-पिता नहीं बन पा रहे हैं। ऐसे कपल्स की जांच में यह पाया गया है कि वातावरण में मौजूद प्रदूषण पुरुषों की फर्टिलिटी पर गहरा असर डाल रहा है। महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान ही गर्भपात हो जाने के पीछे भी यह एक प्रमुख कारण बनकर सामने आ रहा है, क्योंकि अत्यधिक प्रदूषण के चलते पुरुषों की स्पर्म्स क्वॉलिटी नकारात्मक रुप से प्रभावित हो रही है। जहरीली हवा में सांस लेने की वजह से पुरुषों में स्पर्म के खराब होने और स्पर्म काउंट में कमी आने जैसी समस्याएं भी सामने आ रहीं हैं। इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल के आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ. अरविंद वैद का कहना है कि कई लोगों के सीमेन में तो स्पर्म की संख्या इतनी कम पाई गई है कि गर्भधारण के लिए जरूरी न्यूनतम मात्रा जितने स्पर्म्स भी उनमें नहीं पाए गए। स्पर्म काउंट में इतनी ज्यादा कमी आने की वजह से गर्भपात का ख़तरा बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में स्पर्म्स एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं और वे फेलोपाइन ट्यूब में भी सही तरीके से पहुंच नहीं पाते हैं, जिसके चलते कई बार कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पाता है।
पुरुषों में फर्टिलिटी कम होती जा रही है, इसका सबसे पहला और प्रमुख संकेत सेेक्स ड्राइव में कमी के रूप में सामने आता है। स्पर्म सेल्स के खाली रह जाने या निष्क्रिया होने के पीछे जो मैकेनिज्म मुख्य कारण के रूप में सामने आता है, उसे एंडोक्राइन डिस्प्टर एक्टिविटी कहा जाता है। यह एक तरह से हार्मोन्स का असंतुलन है। पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे जहरीले कण, जो कि हमारे बालों से भी 30 गुना ज्यादा बारीक और पतले होते हैं, हवा में घुलकर जब सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में जाते हैं, तो उसके साथ उसमें घुले कॉपर, जिंक, लेड जैसे घातक तत्व भी हमारे शरीर में चले जाते हैं, जो एस्ट्रोजेनिक और एंटीएंड्रोजेनिक होते हैं। लंबे समय तक जब हम ऐसे जहरीले कणों से भरी हवा में सांस लेते हैं, तो उसकी वजह से सेक्स ड्राइव बढ़ाने वाले टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी आने लगती है।
आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ. सागरिका अग्रवाल के अनुसार स्पर्म सेल का लाइफ साइकिल 72 दिनों का होता है और स्पर्म पर प्रदूषण का घातक प्रभाव लगातार 90 दिनों तक दूषित वातावरण में रहने के बाद नजर आने लगता है। सल्फर डायऑक्साइड की मात्रा में हर बार जब भी 10 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी होती है, तो उससे स्पर्म कॉन्संट्रेशन में 8 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है, जबकि स्पर्म काउंट भी 12 प्रतिशत तक कम हो जाता है और उनकी गतिशीलता या मॉर्टेलिटी भी 14 प्रतिशत तक कम हो जाती है। स्पर्म के आकार और गतिशीलता पर असर पडने की वजह से पुरुषों में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस अचानक बढ़ जाता है और डीएनए भी डैमेज होने लगता है, जिससे उनकी फर्टिलिटी पर काफी बुरा असर पड़ता है और उनकी उर्वर क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है।
डॉ. अरविंद वैद कहते हैं, "हालांकि हवा में फैले प्रदूषण से पूरी तरह बच पाना मुश्किल है, लेकिन इसके बावजूद अपनी लाइफ स्टाइल में कुछ खास तरह के बदलाव लाकर और अपनी डायट पर कंट्रोल करके इसके असर को कम जरूर किया जा सकता है और स्पर्म काउंट पर पडने वाले इसके असर से भी बचा जा सकता है, जो कि गर्भधारण के लिए बेहद जरूरी चीज है। शरीर में स्वस्थ शुक्राणुओं को विकसित करने के लिए उनकी गुणवत्ता, मात्रा, गतिशीलता और एकाग्रता को बचाए और बनाए रखना बेहद जरूरी है। इसके लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। एंटीऑक्सिडेंट का सेवन ज्यादा करें। उनमें विटामिन्स, मिनरल्स और रिच न्यूट्रिएंट्स का सही मिश्रण होता है और जो स्पर्म को हेल्दी बनाए रखने और उनकी क्वॉलिटी को सुधारने में मददगार साबित होते हैं। ये हमारे शरीर के लिए एक तरह के डिफेंस मैकेनिज्म का काम करते हैं। ये शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स को हटाकर स्पर्म सेल्स की लाइफ को बढ़ाते हैं।
विटामिन ई और सेलेनियम हमारे रक्त में मौजूद आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सिडेटिव डैमेज से बचाते हैं, जिससे आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले स्पर्म मोबिलिटी में बढ़ोतरी होती है। सके अलावा जिंक भी शरीर के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण मिनरल है, जो स्पर्म सेल्स के लिए एक तरह से बिल्डिंग ब्लॉक का काम करता है और अच्छी क्वॉलिटी के शुक्राणुओं के निर्माण में काफी मददगार साबित होता है।
स्रोत: Press Release.
चित्रस्रोत: Shutterstock.