• हिंदी

वर्ल्ड प्रीक्लेम्पसिया डे 2019 : प्रीक्लेम्पसिया को इन घरेलू उपाय से करें कंट्रोल

वर्ल्ड प्रीक्लेम्पसिया डे 2019 : प्रीक्लेम्पसिया को इन घरेलू उपाय से करें कंट्रोल
प्रीक्लेम्पसिया में आजमाएं ये घरेलू उपाय। © Shutterstock.

गर्भावस्था में महिलाओं का वजन बढ़ जाता है, जिससे रक्तचाप भी बढ़ता है। गर्भावस्था में वजन प्रबंधित करके प्रीक्लेम्पसिया से बचा जा सकता है।

Written by Anshumala |Published : May 22, 2019 9:28 AM IST

गर्भावस्था के 20वें हफ्ते में होने वाली उच्च रक्तचाप की समस्या को प्रीक्लेम्पसिया कहते हैं। ये सामान्य तौर पर होने वाले उच्‍च रक्तचाप से बिल्कुल अलग है, जो प्रसव के बाद अपने आप ठीक हो जाता है। ये जरूरी नहीं है कि सभी गर्भवती महिलाओं में प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण मौजूद हों। उन महिलाओं में इसके लक्षण अधिक देखने को मिलते हैं, जिन्हें रक्तचाप की समस्या होती है। रक्तचाप की ये समस्या गर्भावस्था में बढ़ जाती है जो प्रीक्लेम्पसिया का रूप ले लेती है।

वर्ल्ड प्रीक्लेम्पसिया डे 2019 : प्रेग्नेंसी में एस्पिरिन लेने से कम हो सकता है प्रीक्लेम्पसिया का खतरा

कैसे है खतरनाक

प्रीक्लेम्पसिया मां और गर्भ में पल रहे बच्चे, दोनों के लिए ही खतरनाक होता है। इससे ग्रस्त महिलाओं में शिशु को सही मात्रा में खून और ऑक्सीजन नहीं पहुंचता। इसका दुष्प्रभाव गर्भवती महिलाओं की लीवर, किडनी और मस्तिष्क पर भी पड़ता है। इसके कारणों का पता लगाने में अब तक विशेषज्ञ सफल नहीं हुए हैं। आम धारणा है कि प्लेसेंटा में रक्त का उचित तरीके से संचालन नहीं होने से यह समस्या होती है।  दरअसल, गर्भावस्था के दौरान प्लेसेंटा, गर्भाशय की दीवारों में स्थित रक्त वाहिकाओं के साथ सामान्य नेटवर्क विकसित नहीं कर पाता है, जो प्रीक्लेम्पसिया में बदल जाता है।

Also Read

More News

प्रीक्लेम्पसिया के लक्षण

सिर दर्द

सांस फूलना

नजर धुंधलाना

पेट दर्द

यूरिन में कमी और उच्च रक्तचाप

वर्ल्ड प्रीक्लेम्पसिया डे 2019 : प्रेग्नेंसी में उच्च रक्तचाप बढ़ाता है प्रीक्लेम्पसिया का जोखिम

घरेलू उपाय से करें इसे कंट्रोल

आराम करें- इस स्थिती में अधिक से अधिक बेड रेस्ट लें।

वजन प्रबंधन - गर्भावस्था में महिलाओं का वजन बढ़ जाता है, जिससे रक्तचाप भी बढ़ता है। गर्भावस्था में वजन प्रबंधित करके प्रीक्लेम्पसिया से बचा जा सकता है। वजन की हर पंद्रह दिन में जांच करती रहें।

कम लें एस्पिरिन - अगर आप दूसरी बार गर्भवती हो रही हैं और आपको पहली बार यह समस्या हो चुकी है तो सतर्क रहें। एस्पिरिन कम लें। इसे पहले और दूसरे महीने में ना लें। और इसकी मात्रा 60 और 81 मिलीग्राम तक ही हो।

यूरीन ना रोकें - गर्भावस्था में यूरीन कभी ना रोकें। हमेशा अधिक से अधिक पानी पिएं और समय-समय पर यूरीन जाकर मूत्राशय को खाली करत रहें।

ढीले कपड़े पहनें - हमेशा खाली पैर रहें या हल्के स्लीपर पहनें। जूते जरूरत के वक्त ही पहनें। अगर जरूरत ना हो तो जूते ना ही पहनें। साथ ही हमेशा ढीले-ढाले कपड़ों में ही रहें।

धूम्रपान ना करें - अगर आप स्मोकिंग करती हैं तो गर्भावस्था में ना करें। इससे अगर प्रीक्लेम्पसिया नहीं है तो भी इस बीमारी के होने के चांसेज बढ़ जाते हैं।