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प्रेगनेंसी के पहले महीने से लेकर आखिरी महीने तक इतना होना चाहिए मां का थायरॉइड लेवल! नहीं रहेगा बेबी को खतरा

प्रेगनेंसी में महिलाओं का थायराइड लेवल बच्चे के स्वास्थ्य के लिएन अहम भूमिका निभाता है। लेख में जानिए कितना होना चाहिए मां का थायरॉइड लेवल।

By: Jitendra Gupta   | Edited by: Jitendra Gupta   | | Published: January 23, 2021 4:02 pm
thyroid level in pregnancy
प्रेगनेंसी के पहले महीने से लेकर आखिरी महीने तक इतना होना चाहिए मां का थायरॉइड लेवल! नहीं रहता खतरा

थायरॉइड तितली के आकार की गर्दन के सामने एक ग्रंथि होती है। इस ग्रंथि से T3 और T4 हार्मोन निकलता है जो मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है। इससे हमारा शरीर उर्जा का उपयोग करता है। थायराइड (thyroid level in pregnancy) डिसऑर्डर एक कॉमन समस्या है और भारत में जवान लोगों में 10 में से 1 लोगों को यह समस्या होने का अनुमान है। ज्यादातर लोग हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित होते हैं। हाइपोथायरायडिज्म एक ऐसी मेडिकल कंडीशन होती है जिसमे थायराइड ग्रंथि शरीर की जरुरत के हिसाब से पर्याप्त मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करती है। एक और मेडिकल कंडीशन होती है जिसमे यह ग्रंथि ओवरएक्टिव हो जाती है शरीर की जरुरत के हिसाब से ज्यादा हार्मोन उत्पादित करने लगती है। इस कंडीशन को हायपरथायरायडिज्म कहते हैं। 18 से 35 साल की प्रजनन उम्र वाली महिलाए पुरुषों के मुकाबलें थायराइड (thyroid level in pregnancy) से ज्यादा पीड़ित होती हैं। अगर गर्भवती महिला थायराइड से पीड़ित होती है तो बच्चा पैदा होने पर कई समस्याएं पैदा हो सकती है। मां और बच्चे की सेहत प्रसव के बाद खराब हो सकती है। Also Read - Benefits of Kansa Utensils: कांसे के बर्तन में पानी पीना और खाना खाने के फायदे, जानिए आयुर्वेदिक एक्‍सपर्ट से

फेडरेशन ऑफ ऑब्स्टेट्रिक एंड गाइनोकोलॉजिकल सोसाइटीज़ ऑफ़ इंडिया (FOGSI) और अन्य एक्सपर्ट ग्रुप के अनुसार ट्राइमेस्टर-विशिष्ट थायराइड उत्तेजक हार्मोन (TSH) कटऑफ गर्भावस्था की पहली तिमाही के लिए 2.5 mIU / L होना चाहिए और दूसरे और तीसरे तिमाही के लिए 3.0 mIU / L। हॉर्मोन उत्पादन होना चाहिय। हार्मोन मस्तिष्क और भ्रूण के तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। पहली तिमाही के दौरान थायराइड हार्मोन की आपूर्ति मां पर निर्भर करती है, यह हार्मोन नाल के माध्यम से बच्चे में आता है। TSH हार्मोन कम या ज्यादा होने पर मां और बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है। थायरॉइड (thyroid level in pregnancy) का मैनेजमेंट प्रसवपूर्व देखभाल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। Also Read - Hand Wrinkles यानी हाथों की सिकुड़ती स्किन को स्मूथ बनाएंगे ये 8 डर्मेटोलॉजिस्ट टिप्स, जानें आजमाने का तरीका



गर्भावस्था में हाइपोथायरायडिज्म का प्रभाव (thyroid level in pregnancy)

हालांकि गर्भावस्था के दौरान हाइपोथायरायडिज्म होना कॉमन नहीं है। गर्भवती महिला में आयोडीन की कमी होने से थायराइड कम सक्रिय हो सकती है। हाइपोथायरायडिज्म (thyroid level in pregnancy)का लक्षणों में अनियमित समय पर पीरियड्स का आना, थकान, वजन बढ़ना आदि होता है। इस डिसऑर्डर को नजरअंदाज करने की दर बहुत ज्यादा होती है। हाशिमोटो रोग या हाशिमोटो थायराइडाइटिस (एक ऑटोइम्यून बीमारी जो शरीर की इम्यून सिस्टम को एंटीबॉडी बनाती है और थायरॉयड ग्रंथि पर हमला करती है) से पीड़ित महिलाओं में यह ग्रंथि कम सक्रिय हो जाती है इसलिए यह कम हार्मोन का उत्पादन करती है, और वे हाइपोथायरायडिज्म का अनुभव कर सकती है। अगर महिला 30 वर्ष या इससे ज्यादा हो तो इसके होने का खतरा बढ़ जाता है: ये खतरे निम्न है- Also Read - स्वास्थ्य मंत्रालय किया चौंकाने वाला खुलासा, कहा- "सिर्फ इन 7 राज्यों में हैं कोरोना के 89.5% नए मामले"

– पहले कोई थायराइड डिसऑर्डर या ऑटोइम्यून बीमारी परिवार में किसी को होने पर
– टाइप 1 डायबिटीज या अन्य ऑटोइम्यून बीमारी होने पर
– बांझपन या अपरिपक्व प्रसव होने की हिस्ट्री होने पर
– गर्दन या सिर में रेडिएशन से इलाज कराने पर
– ब्लड में थायराइड एंटीबॉडीज होने पर (यह मुख्य रूप से थायरॉइड पेरोक्सीडेज (TPO) एंटीबॉडीज होती है)
– गण्डमाला या एक बढ़ी हुई थायरॉयड ग्रंथि होने पर
– थायरॉयड हार्मोन की दवा लेवोथायरोक्सिन से इलाज कराने पर

गर्भावस्था में हायपरथायरायडिज्म का प्रभाव

अनियंत्रित और ओवरएक्टिव थायरॉइड (thyroid level in pregnancy) ग्रंथि होने पर गर्भावस्था पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इससे हाइपरटेंशन, प्रसव पूर्व जन्म, जन्म के समय बच्चे का कम वजन हो सकता है। हायपरथायरायडिज्म के सबसे गंभीर रूप को ‘थायराइड स्टॉर्म’ कहा जाता है। यह होने पर माँ को डीहाइड्रेशन, डायरिया, बहुत ज्यादा बुखार तथा हार्ट रेट तेज और अनियमित हो सकती है। अगर इसका इलाज न किया गया तो इससे शॉक लग सकता है और मौत भी हो सकती है। हालांकि ऐसा बहुत कम होता है, इससे केवल 1% जन्मे बच्चे और मां इससे प्रभावित होते हैं। हायपरथायरायडिज्म से पीड़ित मां नवजात शिशु ग्रेव्स रोग के साथ -साथ इम्यून सिस्टम डिसऑर्डर वाले बच्चे को जन्म दे सकती है।

स्वास्थ्य गर्भावस्था और स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए थायराइड का मैनेजमेंट बहुत महत्वपूर्ण है।

गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड हार्मोन (thyroid level in pregnancy)के असामान्य, कम और हाई लेवल होने से गर्भपात, एनीमिया, प्रीक्लेम्पसिया, प्लेसेंटल एब्रप्शन और प्रसव के बाद ब्लीडिंग जैसी कॉम्प्लिकेशन होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए अगर आपको पता चलता है कि गर्भवती महिला में थायरॉयड का लेवल असंतुलित है तो सुनिश्चित करें कि आप महिला किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ के साथ-साथ एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट से कंसल्टेशन कराये। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि महिला को 150 से 250 एमसीजी पोटेशियम आयोडाइड या आयोडेट जैसे विटामिन को प्रसव से पहले रोज मिले। थायराइड की दवा और जन्म के पूर्व के विटामिन या कैल्शियम और आयरन युक्त सप्लीमेंट थायराइड हार्मोन के अवशोषण में हस्तक्षेप कर सकते हैं। एक ही समय के दौरान इन्हें न खाएं और जब भी खाएं तो इनके बीच से कम से कम 2 या 3 घंटे का अंतराल रखें। ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को हर दिन आयोडीन का डोज बढ़ाकर 250 mcg करना चाहिए, क्योंकि उनके स्तन का दूध शिशुओं को आयोडीन प्रदान करता है और उनकी आयोडीन की जरुरत को पूरा करता है।

(इनपुट: डॉ. शीला गौड़, मिराकल मेडीक्लीनिक और अपोलो क्रेडल हॉस्पिटल गुरुग्राम की गायनेकोलॉजिस्ट, ऑब्स्टेट्रिसियन )

Published : January 23, 2021 4:02 pm
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