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Postpartum Depression: प्रेगनेंसी के दौरान की तकलीफें और डिलिवरी के वक़्त की परेशानियां झेलने के बाद जो समय आता है उसमें भी महिलाएं बहुत कुछ महसूस करती हैं। पोस्टपार्टम डिप्रेशन ( Postpartum Depression) या पोस्ट-प्रेगनेंसी स्ट्रेस (Post-pregnancy stress) इसी दौर में शुरु होता है। अपने बच्चे के साथ भावनात्मक रुप से बहुत ज़्यादा जुड़ने के बाद मां अपने ऑफिस और अपने प्रोफेशनल लाइफ में लौटना शुरु करती हैं और साथ ही अपने सोशल सर्किट में एक बार फिर एक्टिव होने लगती हैं। साथ ही शरीर में हार्मोनल बदलावों के कारण महिलाओं को मानसिक और शारीरिक स्तर पर नये-नये अनुभव होते हैं।
इन सबके चलते, महिलाएं भावनात्मक स्तर पर बहुत अधिक उथल-पुथल महसूस करती हैं। ये कभी-भी और किसी भी वक़्त चिड़चिड़ापन, दुख और हताशा महसूस करने लगती हैं। इसे ही पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पोस्टनेटल डिप्रेशन कहा जाता है। आमतौर पर प्रेगनेंसी और बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद तक यह स्थिति बनी रहती है। लेकिन, एक हालिया स्टडी में ऐसा कहा गया है कि, महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं को 3 वर्षों तक डिप्रेशन महसूस हो सकती है।
नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट (National Institute of Child Health and Human Development ) द्वारा आयोजित एक स्टडी में यह दावा किया गया। इस स्टडी में 5,000 से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया। इन महिलाओं में से अधिकांश को बच्चे के जन्म के बाद 3 साल के बीच कभी ना कभी डिप्रेशन महसूस हुआ है। इस स्टडी के परिणाम जर्नल पीडियाट्रिक्स (journal Pediatrics) में प्रकाशित किए गए।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (The American Academy of Pediatrics ) ने बताया कि, ज़्यादातर पीडियाट्रिशियन्स का ऐसा अनुभव है कि, बच्चे के जन्म के बाद ज़्यादातर महिलाएं दूसरे, चौथे और छठवें महीने में पोस्ट पार्टम डिप्रेशन की स्क्रीनिंग के लिए आती हैं। इन एक्सपर्ट्स की यह भी राय है कि डिलिवरी के बाद 2 साल के भीतर डिप्रेशन की स्क्रीनिंग कराना फायदेमंद होता है।
इस स्टडी के प्रमुख लेखक डैन पुटनिक (Diane Putnick, Ph.D.), ने कहा कि, पोस्टपार्टम डिप्रेशन का पता लगाने के लिए केवल डिलिवरी के बाद के 6 महीनों तक का समय काफी नहीं है। इसके लिए लम्बी अवधि तक महिलाओं की सेहत और मानसिक सेहत पर नज़र बनाए रखना आवश्यक है। चूंकि माता की सेहत से ही बच्चे की सेहत भी जुड़ी हुई है। इसीलिए, इस स्टडी से प्राप्त डेटा पोस्ट पार्टम डिप्रेशन को समझने में मदद होगी।