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Hypertension and pregnancy:प्रेगनेंसी में हाइपरटेंशन या हाई बीपी की स्थिति गम्भीर और हानिकारक साबित हो सकती है। आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में 10 प्रतिशत प्रेगनेंट महिलाओं में हाइपरटेंशन और उससे जुड़ी स्थितियां (Hypertensive disorders) देखी जाती हैं। इनमें ऐसी महिलाएं भी शामिल होती हैं जिन्हें प्रेगनेंसी से पहले ही हाइपरटेंशन की समस्या या क्रोनिक हाइपरटेंशन (chronic hypertension) हो और ऐसी महिलाएं भी जिन्हें प्रेगनेंसी के दौरान हाइपरटेंशन हुआ है। गर्भधारण के दौरान होने वाले हाइपरटेंशन को गर्भावधि हाइपरटेंशन या जेस्टेशनल हाइपरटेंशन ((gestational hypertension) कहा जाता है। इसी तरह हाई ब्लड प्रेशर की वजह से प्रीएक्लेम्प्सिया की स्थिति भी बन सकती है जो मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक हो सकती है।
डॉ. हनी सावला (Dr. Honey Savla, Internal Medicine, Wockhardt Hospitals, Mumbai Central) से जानें प्रेगनेंसी के दौरान हाइपरटेंशन किस तरह बच्चे और मां को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके साथ ही जानें इस स्थिति को मैनेज करने से जुड़ीं जरूरी टिप्स। (How to manage Hypertension during pregnancy in Hindi)
जब शरीर में रक्तचाप या ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है तो इसकी वजह से प्रीएक्लेम्प्सिया हो सकता है। इस स्थिति में लिवर और किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान हो सकता है। आमतौर पर प्रेगनेंसी के 5वें महीने या 20 सप्ताह के बाद प्रीएक्लेम्प्सिया होने का रिस्क बढ़ जाता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार 2-8 प्रतिशत महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान प्रीएक्लेम्प्सिया होता है। (Chances of Preeclampsia during pregnancy)
हाइपरटेंशन की वजह से प्रेगनेंसी के दौराना प्लेंसेंटा तक रक्त की सप्लाई बाधित हो सकती है। इससे भ्रूण तक सही मात्रा में ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते। जिससे बच्चे के विकास से जुड़ी गड़बड़ियां और जन्म के समय कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं।
हाई बीपी के कारण समय से पहले लेबर या प्री-टर्म बर्थ का रिस्क बढ़ सकता है। इससे बच्चे को श्वसन तंत्र से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं या ब्रेन में ब्लीडिंग जैसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन ना मिलने से बच्चे का वजन जन्म के समय बहुत कम हो सकता है जिससे बच्चा कमजोर और बीमार रहने लगता है।
हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित मांओं के बच्चों को आगे चलकर हाइपरटेंशन होने और अन्य कई तरह की बीमारियों का रिस्क अधिक रहता है। जिससे वे भविष्य में बार-बार बीमार पड़ सकते हैं और कमजोर महसूस कर सकते हैं।
डॉ. हनी सावला का कहना है कि, प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को अपना ख्याल रखना चाहिए और डॉक्टर की मदद से हाई बीपी और उससे जुड़ी स्थितियों को मैनेज करने की कोशिश करनी चाहिए। इसी तरह,
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