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Home / Hindi / Pregnancy / Women’s Day special: सुवर्णा घोष ने उठाया देश में लगातार बढ़ती C-sections पर सवाल! जानें क्यों!

Women’s Day special: सुवर्णा घोष ने उठाया देश में लगातार बढ़ती C-sections पर सवाल! जानें क्यों!

सी-सेक्शन से जुड़ी इस मुहिम को महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का भी सहयोग प्राप्त हुआ है

By: Editorial Team   | | Updated: March 7, 2017 4:12 pm
Tags: Diseases and Conditions in hindi  Health News in Hindi  Pregnancy in hindi  
Subarna-Ghosh Hindi

बिना किसी मेडिकल एमर्जेंसी या कारण के सी-सेक्शन द्वारा बच्चे का जन्म इन दिनों एक आम बात बन गयी है, लेकिन फिर भी कोई इस पर आपत्ति या सवाल नहीं उठाता। कभी किसी ने यह पूछने की कोशिश नहीं की, कि आखिर क्यों पहली बार मां बन रही लड़कियां या बहुत कम उम्र की मांओं को इस पीड़ादायक स्थिति का सामना करना पड़ता है। लेकिन कोई ऐसा है जो अब इस कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रहा है, जो उन महिलाओं की पीड़ा को दर्शाती है जिन्हें अनावश्यक ही सर्जरी करानी पड़ती है। यह मां बनने की चाहत रखनेवाली कम उम्र की महिलाओं की उस इच्छा का भी सम्मान है जो एक आरामदायक सुरक्षित प्रसव का अनुभव करना चाहती हैं। महिलाओं की इस आवाज़ का नाम है सुवर्णा घोष, जिन्होंने चेंज डॉट कॉम (change.org) की मदद से एक पीटीशन दायर की है। इस पीटीशन में अस्पतालों से पूछा गया कि उनके यहां कितने सी-सेक्शन कराए गए हैं। इस पीटीशन को अब तक 1.5 लाख लोगों द्वारा उनके हस्ताक्षर के रुप में सपोर्ट भी मिला है। Also Read - सफेद दाग की दवा 'ल्यूकोस्किन' खोजने वाले वैज्ञानिक को 'साइंटिस्ट आफ द ईयर अवार्ड', औषधीय पौधे से तैयार की थी दवा

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और हां, उनकी आवाज़ सुनी भी गयी। इस मुहिम को डॉक्टरों और मेडिकल प्रोफेशनल्स के अलावा महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का भी सहयोग प्राप्त हुआ है। जिन्होंने स्वास्थ्य मंत्रालय से आग्रह किया है कि देश में सी-सेक्शन से जुड़ी हुई चालाकियों से बचने के लिए स्वास्थ योजनाओं में आवश्यक बदलाव किए जाएं। गौरतलब है कि सी-सेक्शन की वजह से बच्चों को जन्म देना महिला के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर अस्पतालों के लिए फायदा कमाने का ज़रिया बन गया है। Also Read - यूपी में सरकारी नौकरी छोड़ने पर डॉक्टरों पर लगेगा 1 करोड़ रुपए का जुर्माना, जानिए क्‍या है योगी सरकार का प्‍लान

हमने सुवर्णा घोष से बात की, जिन्होंने इस पीटीशन, सी-सेक्शन से जुड़े उनके अनुभव और गर्भवती मां के अधिकारों के प्रति महिलाओं को जागरुक बनाने के लिए उनकी लड़ाई के बारे में भी बताया।

इस पीटीशन को दायर करने के लिए आपको प्रेरणा कहां से मिला?

जब मैं प्रेगनेंट थी तो प्रेगनेंसी के छठवें महीने में, मेरे डॉक्टर ने मुझे सी-सेक्शन की सलाह दी, जबकि मुझे कोई गम्भीर बीमारी या ऐसी समस्या नहीं थी। सुवर्णा के मुताबिक, मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी। मैंने डॉक्टरों से पूछा कि क्यों मैं अपने बच्चे को वैजाइनल बर्थ नहीं दे सकती। डॉक्टर ने कहा कि, वैजाइनल बर्थ मुश्किल है और लेबर के दर्द का भी अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता। अगर प्राकृतिक तरीके से प्रसव के दौरान कुछ गड़बड़ी हुई को मां और बच्चे दोनों की जान पर ख़तरा आ जाएगा। साथ ही उन्होंने एक और डरावनी बात कही, डॉक्टरों ने कहा कि वैजाइनल बर्थ के समय इस्तेमाल होनेवाले फॉरसेप्स (forceps) की वजह से बच्चे के दिमाग को नुकसान पहुंच सकता है। लाज़मी सी बात है कि हम इसकी वजह से डर गए और सी-सेक्शन कराने के लिए तैयार हो गए। बच्चे के जन्म से जुड़े अपनी पसंद के पर्याय चुनने से जुड़ी हुई जानकारियों के अभाव और वैजाइनल बर्थ से जुड़े डर जैसी बातों ने मुझे इस मुद्दे पर आवाज़ उठाने के लिए प्रेरित किया।

क्या आपके कहने का अर्थ यह है कि सभी महिलाओं के प्रसव से जुड़े अनुभव एक जैसे हैं?

मैं पत्रिका मदर एंड बेबी(Mother & Baby ) के साथ एक पत्रकार के तौर पर भी जुड़ी हुई थी। जहां मुझे देश की कई कम उम्र की मांओं के प्रसव सम्बंधी अनुभव जानने का मौका मिला। इस दौरान मुझे महिलाओं की एक संस्था बर्थ राइट के बारे में भी जानकारी मिली, और मैं उससे जुड़े लोगों से भी मिली। बर्थ इंडिया का ध्येय महिलाओं को प्रसव से जुड़ी जानकारियां, प्रसव के तरीके के साथ उन मेडिकल प्रक्रियाओं से भी बचने के बारे में जागरुक करना है जिनकी कोई खास ज़रूरत नहीं होती है। क्योंकि ये तरीके सेहत और ज़िंदगी के लिए ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव तो था ही। तब मुझे अंदाज़ा हुआ कि प्रसव की प्रक्रिया और महिला की शारीरिक स्थिति का आपस में तालमेल होना चाहिए जो कि डॉक्टर की मनमानियों के आधार पर होता है। वैजाइनल बर्थ में मां का शरीर जन्म की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। जबकि सिज़ेरीयन या सी-सेक्शन में स्थिति डॉक्टर के हाथ होती है। वैजाइनल डिलिवरी का डर मां से अधिक डॉक्टर के मन में होता है , क्योंकि हो सकता है कि वहां स्थिति डॉक्टर के हाथ से निकल जाएं।

लेकिन यह कैसे सिद्ध होगा कि सभी सी-सेक्शन बेमतलब किए गए?

देखिए यह बात समझना ज़रूरी है कि हम सी-सेक्शन के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन देशभर में लगातार बढ़ रही सी-सेक्शन डिलिवरी के संख्या सचमुच चिंता का एक विषय है। मुंबई में ही, जहां 2010 में 16.7 प्रतिशत सी-सेक्शन हुए थे वहीं 2015 में 32.1 प्रतिशत डिलिवरी सी-सेक्शन की वजह से हुई, यानि यह संख्या केवल पांच सालों में दोगुनी हो गयी। अगर आप राज्यों के स्तर पर तुलना करें तो 2015-16 में, तेलंगाना में सबसे अधिक यानि 58 प्रतिशत सी-सेक्शन डिलिवरी हुई, इसके बाद तमिल नाडु में 34.1 प्रतिशत, गोवा में 31.4 प्रतिशत सी-सेक्शन डिलिवरी हुईं। हालांकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने साफतौर पर कह दिया है कि जनसंख्या के इस स्तर पर, सीज़ेरियन सेक्शन की बढ़ती संख्या यदि 10 प्रतिशत से अधिक है तो वह नवजात बच्चे और मां की मृत्युदर में कमी से जोड़कर नहीं देखी जा सकती। यही संख्याएं इस सी-सेक्शन के चलन पर सवाल उठाने के लिए मज़बूर करती हैं।

आपको क्या लगता है, यह पीटीशन प्रसव के समय महिलाओं की किस प्रकार से सहायता करेगा?

ज़्यादातर महिलाओं को सी-सेक्शन से जुड़ी समस्याओं के बारे में जानकारी नहीं है। यह समस्याएं हैं, बेहोशी या ऐनिस्थीश़ (anaesthesia), खून का जमना या थक्के पनना, हार्ट फेलियर जो एपीड्यूरल से जुड़ा जोखिम है। इस मुद्दे को उठाकर हम मेडिकल प्रैक्टिशनर और अस्पतालों से उनकी कार्यप्रणाली के बारे में पूछ रहे हैं। यह पीटीशन उन्हें इस अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल पर बारीकी से नज़र डालने के लिए प्रेरित करेगा, प्रसव की प्रक्रियाओं के फायदे-नुकसान के बारे में जानने में मदद करेगा, फैसला केवल डॉक्टर का नहीं बल्कि मां का भी हो और प्रसव के समय मां को सभी चीज़ों के बारे में बेहतर जानकारी होगी।

Read this in English

अनुवादक -Sadhna Tiwari

चित्र स्रोत- Facebook/Change.org

Published : March 7, 2017 2:12 pm | Updated:March 7, 2017 4:12 pm
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