Coronavirus and Pregnancy: दुनियाभर के कई देश कोरोनावायरस (Coronavirus) से लड़ाई लड़ रहे हैं। इस वायरस से संक्रमित होने की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दुनिया में लगभग 56 लाख से भी अधिक लोग कोरोनावायरस से संक्रमित (Covid-19 infection) हो चुके हैं। वहीं भारत में संक्रमितों की संख्या 1 लाख 47,668 के पार हो चुकी है। आए दिन कोरोनावायरस से संक्रमित होने वाले लोगों में नए-नए लक्षण नजर आ रहे हैं। जो लोग इस बीमारी से ठीक हो चुके हैं, उनके ऊपर से भी अभी खतरा टला नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि ठीक होने के बाद भी कोरोना का असर मरीजों में कई तरह की शारीरिक समस्याओं का कारण बन सकता है। अब तो गर्भवती महिलाओं (Pregnant lady) को भी कोरोना से खतरा (corona and pregnancy) है, खासकर उन प्रेग्नेंट महिलाओं को जो कोरोना पॉजिटिव (Covid-19 positive pregnant women) हैं।
जी हां, हाल ही में अमेरिका में हुई एक स्टडी में कोरोना पॉजिटिव प्रेग्नेंट महिलाओं के प्लेसेंटा (corona and pregnancy) में घाव होने की बात सामने आई है। यह एक गंभीर स्थिति हो सकती है, जिससे गर्भ में पल रहे शिशु की जान को भी खतरा हो सकता है।
शोधकर्ताओं ने 16 प्रेग्नेंट महिलाओं के प्लेसेंटा (Placenta Injury in pregnant women) में चोट या घाव के सबूत पाए हैं। ये सभी महिलाएं कोविड-19 (COVID-19) से संक्रमित थीं। यह इस घातक बीमारी से जुड़ी एक नई जटिलता की ओर इशारा करता है। प्लेसेंटा प्रेग्नेंट महिलाओं (corona and pregnancy) के गर्भाशय में बनने वाला एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसके जरिए गर्भ में पल रहे शिशु (fetus) को मां के जरिए सारे पोषक तत्व प्राप्त होते हैं।
यह अध्ययन अमेरिका के नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में किया गया है। प्लेसेंटा में देखी गई चोट (Placenta Injury in pregnant women) के इस प्रकार को अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल पैथोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, प्लेसेंटा में घाव के कारण माताओं (coronavirus and pregnancy) और उनके शिशुओं के बीच गर्भ में एक असामान्य रक्त प्रवाह (abnormal blood flow) देखा गया है। यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि इस अध्ययन से प्राप्त शुरुआती जानकारी यह बता सकती है कि कोरोना महामारी (Corona pandemic) के दौरान गर्भवती महिलाओं (Pregnant women) की चिकित्सकीय निगरानी (clinically monitoring) कैसे की जानी चाहिए।
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में पैथोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर जेफ्री गोल्डस्टीन (Jeffrey Goldstein) का कहना है, "चूंकि, अधिकतर बच्चों का जन्म नॉर्मल और प्रेग्नेंसी के फुल टर्म पूरा करने के बाद हुआ, ऐसे में यह पता लगा पाना मुश्किल है कि प्लेसेंटा में कोई समस्या है या नहीं। लेकिन, इस वायरस का प्लेसेंटा में कोई चोट या घाव पैदा करने की बात सामने आना गंभीर है।
हालांकि, गोल्डस्टीन ने यह भी कहा है कि यह हमारे सीमित आंकड़ों के आधार पर किसी भी जीवित शिशुओं में नकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए हैं, लेकिन कोविड-19 पॉ़जिटिव गर्भवती महिलाओं की अधिक बारीकी से जांच और निगरानी करने की जरूरत है।
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नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की सहायक प्रोफेसर और अध्ययन की सह-लेखक एमिली मिलर ने कहा, इसके लिए प्रेग्नेंट महिलाओं (corona and pregnancy) में नॉन-स्ट्रेस टेस्ट की जानी चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि प्लेसेंटा कितनी अच्छी तरह शिशु तक ऑक्सीजन पहुंचा रहा है। साथ ही ग्रोथ अल्ट्रासाउंड के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि गर्भ में पल रहे शिशु का विकास स्वस्थ तरीके से हो रहा है या नहीं। एमिली ने कहा कि अभी ऐसे कम ही मामले देखे गए हैं, लेकिन ये निष्कर्ष मुझे चिंतित करते हैं।
पहले किए गए शोधों में यह पाया गया था कि 1918-19 की फ्लू महामारी (flu pandemic) के दौरान जो बच्चे गर्भाशय में थे, उनमें जिंदगीभर के लिए कार्डियोवैस्कुलर डिजीज से संबंधित समस्याएं देखी गई थीं। गोल्डस्टीन का कहना है कि फ्लू प्लेसेंटा को क्रॉस नहीं कर सकता, ऐसे में फ्लू महामारी के दौरान जन्में ऐसे लोगों में जो भी समस्याएं देखी गईं, वो कमजोर इम्यून सिस्टम के कारण होंगी या फिर प्लेसेंटा में घाव (Placenta Injury) होना इसकी वजह होगी।
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