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छोटे बच्चों को हो सकती हैं दांतों से जुड़ी ये समस्याएं

बच्चों को दूध पिलाने के बाद हमेशा उनके मुंह को ठीक से ज़रुर साफ करें!

Written by Editorial Team | Updated : January 5, 2017 9:01 AM IST

Baby Teeth

दांतों का विकास एक जटिल बायोकेमिकल प्रक्रिया है और यह कई अन्य चीजों से प्रभावित होती है। किसी भी उम्र में अगर इस विकास के क्रम में बाधा हुई तो आगे चलकर आपको दांतों से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। छोटे बच्चे बचपन में ही कई अलग अलग तरह की दांतों से जुड़ी समस्याओं के शिकार हो सकते हैं उनके दांत अलग अलग साइज़ के हो सकते हैं या उनकी संख्या भी बढ़ सकती है जिससे दांत टेढ़े मेढ़े भी हो सकते हैं। आइये जानते हैं छोटे बच्चों को दांतों से जुड़ी कौन कौन सी समस्याएं हो सकती हैं।

Teeth-discoloration

दांतों का रंग बदलना : कई बार छोटे बच्चे के दांतों का रंग गाढ़ा पीला और धब्बेदार हो जाता है। ऐसा मुख्यतया मुंह की ठीक से सफाई न रखने और बहुत अधिक मात्रा में फ्लोराइड युक्त चीजों को खाने के कारण होता है। कई बार प्रेगनेंसी पीरियड में मां द्वारा एंटी-बायोटिक दवाइयों के सेवन के कारण भी जन्म के समय से ही बच्चों का रंग हल्के पीले रंग का हो जाता है।  Also Read - चिंता और तनाव जैसी समस्याएं होने पर करें ये 8 काम, मिनटों में दूर हो जाएगी समस्या

Cavities

कैविटी: छोटे बच्चे जब दूध पीते हैं और बार बार उनका मुंह धुल पाना मुश्किल होता है तो ऐसे माहौल में बैक्टीरिया को पनपने का मौका मिल जाता है। सोते समय दूध की बोतल को मुंह में लगाये हुए ही सो जाना या मीठे दूध पीने के बाद मुंह न धोने की वजह से वे बैक्टीरिया आसानी से पनप जाते हैं और दांतों को नुकसान पहुँचाने लगते हैं। जिससे आगे चलकर कैविटी की समस्या हो जाती है। इसलिए अगर आप अपने बच्चों में ऐसे कोई समस्या देखें तो तुरंत डॉक्टर से जांच करवाएं।

Retained-teeth

दूध के दांत: आमतौर पर बच्चों के दूध के दांत जन्म के कुछ सालों के बाद टूट जाते हैं और उनकी जगह स्थायी दांत उग आते है। लेकिन कई बार स्थायी दांतों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है जिससे दूध के दांत टूटते नहीं है बल्कि हमेशा के लिए वैसे ही रह जाते हैं। हालाँकि ऐसा बहुत कम बच्चों के साथ होता है।  Also Read - दिल को स्वस्थ रखने के लिए खाएं इन पोषक तत्वों से भरपूर फूड्स, हृदय रोगों का खतरा होगा कम

-Early-tooth-loss

दांतों का टूटना: यह एक आम समस्या है और 6 साल की उम्र होने पर अधिकांश बच्चों के दूध के दांत टूटने लगते हैं और स्थायी दांत उनकी जगह लेने लगते हैं। धीरे-धीरे 12 साल की उम्र आते आते बच्चों के सारे दूध के दांत गिर जाते हैं। लेकिन कई बार दांतों के क्षय, कीटाणुओं के इन्फेक्शन या किसी इंजरी के कारण ये दूध के दांत जल्दी टूट जाते हैं और इनके टूटने के कारण वह स्थान खाली हो जाता है। जिससे स्थायी दांतों का जब विकास होता है तो खाली जगह के कारण उनकी दिशा बदल जाती है।

Tooth-injury

दांतों में चोट: बचपन में बच्चे के दांत या मसूड़ों में कोई चोट लग जाने या एक्सीडेंट हो जाने की वजह से कुछ दांत टूट जाते हैं। इस इंजरी की वजह से उस दांत के आस पास की मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती है जिससे दांतों को वो ठीक से सहारा नहीं दे पाती हैं और इससे दांतों का शेप ख़राब हो जाता है। ऐसे चोट में बच्चों को काफी दिनों तक दांतों में दर्द होता रहता है और आगे चलकर उन्हें खाने और बोलने में भी दिक्कत हो सकती है। ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर डॉक्टर की मदद ज़रूर लें।  Also Read - भगवान राम ने 14 साल तक खाया जो फल, जानिए उसके फायदे

Cleft-lip-and-cleft-palate

कटे-फटे होंठ: कुछ बच्चों में जन्म के समय से ही यह समस्या होती है जिसमें उनके होंठ कटे हुए रहते हैं या ऊपर तालू में चिपके हुए रहते हैं। यह देखने में बहुत ही बुरा लगता है। प्रेगनेंसी के आखिरी स्टेज में हुए कुछ गड़बड़ियों के कारण ही ऐसी समस्या हो जाती है। कई बच्चों को इस समस्या के कारण सांस लेने में दिक्कत होने लगती है वहीँ कुछ बच्चों का मुंह भी ठीक से नहीं खुल पाता है। हालाँकि अब इसका इलाज संभव है और ऑपरेशन की मदद से इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। इसलिए ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

Oral-habits

गलत आदतें: छोटे बच्चों की कुछ गलत आदतों के कारण भी उन्हें मुंह से जुड़ी कई समस्याएं हो जाती हैं जैसे कि हमेशा मुंह से सांस लेना, अंगूठा चूसना, बार बार जीभ को होंठों पर फेरना इत्यादि। वैसे देखा गया है कि 6 साल की उम्र आते आते अधिकतर बच्चे इनमें से कई आदतें अपने आप ही छोड़ देते हैं। मुंह से अधिक सांस लेने के कारण मुंह सूख जाता है और मसूड़ों का उचित विकास नहीं हो पाता है वहीँ लगातार अंगूठा चूसने से सामने के दांतों का शेप बिगड़ जाता है।  Also Read - रोज सुबह खा लें बस ये एक पत्ता, सिर दर्द से लेकर किडनी स्टोन जैसी समस्याओं से मिलेगा लाभ

Gum-problems

मसूड़ों में खराबी: बच्चों के मसूड़ों में इन्फेक्शन होने का खतरा बहुत ज्यादा रहता है, अक्सर ही छोटे बच्चों के मसूड़ों में सूजन हो जाती है या फिर वे लाल हो जाते हैं। दांतों की ठीक से सफाई न होने, ब्रश न करने और ठीक से देखभाल न करने के कारण ही मसूड़ों में ऐसी समस्याएं हो जाती हैं। इसके अलावा जो बच्चे टाइप -1 डायबिटीज, हीमोफिलिया और ल्यूकेमिया जैसी बीमारियों से पीड़ित रहते हैं वे भी मसूड़ों से जुड़ी समस्याओं से परेशान रहते हैं।

Misaligned-teeth

टेढ़े मेढ़े दांत (Misaligned teeth): यह समस्या काफी हद तक आनुवांशिक है। दूध के दांतों का जल्दी टूटना, अंगूठा चूसना, काफी दिनों तक बोतल से दूध पीना या किसी चोट लगने की वजह से बच्चों के दांत टेढ़े मेढ़े हो जाते हैं। दांतों के बीच में गैप होने के कारण भी दांत टेढ़े मेढ़े हो जाते हैं। अगर छोटे बच्चों के दांत एक सीध में नहीं हैं तो इससे मसूड़ों पर अतिरिक्त दवाब बढ़ जाता है और कई बार बच्चों को ब्रश करने में भी काफी दिक्कतें हो सकती हैं। इस समस्या को डॉक्टर की मदद से ठीक किया जा सकता है।  Also Read - गर्भावस्था और हेपेटाइटिस: अपने शिशु को हेपेटाइटिस की समस्याओं से कैसे बचाएं?

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बीमारियों के कारण होने वाली दिक्कत: कई बार कुछ अन्य बीमारियों के कारण भी मुंह से जुड़ी ऐसी समस्याएं होने लगती हैं जैसे कि एनीमिया के कारण मसूड़ों में सूजन, छाले पड़ना और जीभ पर लाल धब्बे पड़ने लगते हैं। क्रोनिक साइनस के कारण साँसों से बदबू आने लगती है। इसी तरह टाइप-1 डायबिटीज, एचआईवी और लयूकेमिया से पीड़ित होने पर मसूड़ों से खून निकलने जैसी समस्याएं होने लगती है। थ्रश (Thursh) नामक एक फंगल इन्फेक्शन होता है जो नवजात शिशु को ही होता है इसमें गाल के अंदर वाले हिस्से में सफ़ेद धब्बे पड़ जाते हैं।