बच्चों में डिप्रेशन को कैसे रोकें?
बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन होने पर सबसे पहले उनके व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर आइए जानते हैं बच्चों में डिप्रेशन को कैसे रोकें?
बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन होने पर सबसे पहले उनके व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर आइए जानते हैं बच्चों में डिप्रेशन को कैसे रोकें?
जिस तरह गर्भ से ही एक शिशु का उसकी मां के साथ एक रिश्ता खास होता है उसी तरह एक शिशु का उसके पिता के साथ भी स्ट्रॉंग कनेक्शन होता है। स्टडी कहती हैं कि जब शिशु गर्भ में होता है तो वो अपने पिता की आवाज को और उसकी प्रतिक्रियाओं को समझता है।
Parenting Tips For Indian Parents: यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा कामयाब हो तो इन टिप्स का पालन करें।
सार्वजनिक जगहों पर या किसी के सामने तो बच्चों को बिल्कुल भी नहीं डांटना चाहिए। क्योंकि इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। परेंट्स को हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि वह कोई भी बात बच्चों को प्यार से समझाएं। माता-पिता अपने बच्चों के साथ जितना प्यार से रहेंगे और दोस्त बनकर रहेंगे बच्चे उतना ही आपसे खुलकर बात करेंगे, अपनी बातें शेयर करेंगे और आपकी बात भी मानेंगे।
जब बच्चा बैठता है तो उसे अपने खिलौनों के साथ खेलने में भी आसानी होती है और वह अपनी बॉडी के भार को उठाने में भी सक्षम हो पाते हैं। लेकिन इस स्टेज पर पेरेंट्स को थोड़ा सजग और सावधान होने की जरूरत है। क्योंकि बच्चा बैठ रहा है यह तो खुशी की बात है लेकिन आपको इसके साथ यह भी देखना होगा कि आपका बच्चा सही पॉजिशन में बैठ रहा है या नहीं। क्योंकि गलत पॉजिशन में बैठने से बच्चे का न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है।
ऑटिज्म एक ऐसी बीमारी है जिसका सीधा संबंध बच्चे के व्यवहार से है। इस रोग की चपेट में आने से बच्चे के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ जाता है। बच्चे के जन्म के छह महीने से लेकर एक वर्ष के भीतर तक बीमारी का पता लगाया जाता है कि बच्चा सामान्य रूप से व्यवहार कर रहा है या नहीं। इस रोग के अपने लक्षण होते हैं। लेकिन आमतौर पर पेरेंट्स उन्हें सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है।
क्या आपको नहीं लगता, कि आपने अपने दादा-दादी के साथ बिताए पल अपने जीवन के सबसे यादगार पलों में से एक हैं! बचपन को सुखद बनाने में दादा-दादी या नानी की बड़ी भूमिका होती है। जो बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं उनमें एक अलग समझ और एक विशेष प्रकार की संवेदनाएँ होती हैं। ऐसे बच्चे हमेशा खुश, मिलनसार और चीजों को साझा करने वाले होते हैं।
बढ़ती उम्र में बच्चों में शारीरिक बदलाव के साथ ही मानसिक बदलाव भी आते हैं। ऐसे में बच्चे नहीं चाहते कि कोई उन्हें डांटे, उनकी बेइज्जती करें या फिर पेरेंट्स उन पर अपने निर्णय थोपें।
लॉकडाउन में बच्चे ना तो स्कूल जा पा रहे हैं और ना ही घर से बाहर खेलने-कूदने। ऐसे में उनके अंदर खीझ, गुस्सा, चिड़चिड़ापन घर कर सकता है। बेहतर है कि आप उनकी इम्यूनिटी बूस्ट करने के साथ-साथ मेंटली फिट रखने के बारे में भी सोचें।
बच्चे इन दिनों टीवी पर केवल कार्टून शोज़ नहीं देखते। टीवी के अलावा, टैबलेट्स, स्मार्टफोन्स, कम्प्यूटर्स जैसे गैजेट्स भी रोज़ाना उनके हाथों में देखे जाते हैं। इससे, बच्चे की सेहत और मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।
नवजात शिशु अपनी जरूरतों को रोने के माध्यम से ही बताते हैं. कई बार कुछ बच्चे जन्म लने के बाद रोना शुरु नहीं करते हैं. क्या जन्म के बाद बच्चे का रोना जरूरी होता है.? इस सवाल का जवाब लगभग हर माता-पिता को पता होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जन्म के बाद बच्चे का पहली बार रोना क्यों जरूरी है.? हम इस लेख में नवजात शिशु का रोना कितना जरूरी है इसी पर बात कर रहे हैं.
प्रेगनेंसी/गर्भावस्था में पैरासिटामोल खाने से होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है. प्रेगनेंसी में जो दवाएं मां खाती हैं उसका असर बच्चे के हेल्थ पर भी पड़ता है.
शारीरिक श्रम से तनाव भी कम होता है। खेलकूद से बच्चों को समस्याएं सुलझाने, क्षमता बढ़ाने और अपनी रुचि को समझने का मौका मिलता है।
नियम में रहकर गोल अचीव करना अपने आप में एक बेहतरीन आदत है। जिसका प्रशिक्षण बच्चे पजल के माध्यम से बहुत पहले ही ले लेते हैं।
शहरी मध्यमवर्गीय परिवारों के ज्यादातर बच्चे सायकोटिक डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। इससे उन्हें बचाने के लिए आपको अपना टाइम मैनेजमेंट और फैमिली बॉन्डिंग पर ठीक से काम करने की जरूरत है।
आप ही बच्चों के रोल मॉडल हैं और आप ही उनके गाइड। इसलिए यह ध्यान रखें कि बच्चे के हित के लिए कहीं उससे दूरी न बढ़ा लें। पेरेंटिंग के पुराने तरीकों को बदलना होगा।
अगर आपको क्रिएटिविटी के लिए अपने बच्चों में कुछ करना है तो उनको बचपन में कुछ बातों के लिए प्रेरित करना होता है। बच्चों में क्रिएटिविटी बढ़ने और नए इनोवेशन के बहुत ज्यादा चांस होते हैं। बच्चों का दिमाग दुनिया में नई चीजों को देखने के साथ विकसित हो रहा होता है ठीक उसी समय सही दिशा उनको रचनात्मक और नवाचार की ओर बढ़ा सकती है।
वर्तमान समय ऐसा है जब बच्चे सोशल मीडिया के उपयोग के साथ बड़े हो रहे हैं। ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के शोधकर्ताओं का कहना है कि इंस्टाग्राम जैसे सोशल प्लेटफार्म में डिजिटल मार्केटिंग का असर बच्चों की फूड हैबिट पर पड़ रहा है।
बच्चों और किशोरों में डिप्रेशन होने पर सबसे पहले उनके व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर आइए जानते हैं बच्चों में डिप्रेशन को कैसे रोकें?
जिस तरह गर्भ से ही एक शिशु का उसकी मां के साथ एक रिश्ता खास होता है उसी तरह एक शिशु का उसके पिता के साथ भी स्ट्रॉंग कनेक्शन होता है। स्टडी कहती हैं कि जब शिशु गर्भ में होता है तो वो अपने पिता की आवाज को और उसकी प्रतिक्रियाओं को समझता है।
Parenting Tips For Indian Parents: यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा कामयाब हो तो इन टिप्स का पालन करें।
सार्वजनिक जगहों पर या किसी के सामने तो बच्चों को बिल्कुल भी नहीं डांटना चाहिए। क्योंकि इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। परेंट्स को हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि वह कोई भी बात बच्चों को प्यार से समझाएं। माता-पिता अपने बच्चों के साथ जितना प्यार से रहेंगे और दोस्त बनकर रहेंगे बच्चे उतना ही आपसे खुलकर बात करेंगे, अपनी बातें शेयर करेंगे और आपकी बात भी मानेंगे।
जब बच्चा बैठता है तो उसे अपने खिलौनों के साथ खेलने में भी आसानी होती है और वह अपनी बॉडी के भार को उठाने में भी सक्षम हो पाते हैं। लेकिन इस स्टेज पर पेरेंट्स को थोड़ा सजग और सावधान होने की जरूरत है। क्योंकि बच्चा बैठ रहा है यह तो खुशी की बात है लेकिन आपको इसके साथ यह भी देखना होगा कि आपका बच्चा सही पॉजिशन में बैठ रहा है या नहीं। क्योंकि गलत पॉजिशन में बैठने से बच्चे का न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है।
ऑटिज्म एक ऐसी बीमारी है जिसका सीधा संबंध बच्चे के व्यवहार से है। इस रोग की चपेट में आने से बच्चे के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ जाता है। बच्चे के जन्म के छह महीने से लेकर एक वर्ष के भीतर तक बीमारी का पता लगाया जाता है कि बच्चा सामान्य रूप से व्यवहार कर रहा है या नहीं। इस रोग के अपने लक्षण होते हैं। लेकिन आमतौर पर पेरेंट्स उन्हें सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है।
क्या आपको नहीं लगता, कि आपने अपने दादा-दादी के साथ बिताए पल अपने जीवन के सबसे यादगार पलों में से एक हैं! बचपन को सुखद बनाने में दादा-दादी या नानी की बड़ी भूमिका होती है। जो बच्चे अपने दादा-दादी के साथ रहते हैं उनमें एक अलग समझ और एक विशेष प्रकार की संवेदनाएँ होती हैं। ऐसे बच्चे हमेशा खुश, मिलनसार और चीजों को साझा करने वाले होते हैं।
बढ़ती उम्र में बच्चों में शारीरिक बदलाव के साथ ही मानसिक बदलाव भी आते हैं। ऐसे में बच्चे नहीं चाहते कि कोई उन्हें डांटे, उनकी बेइज्जती करें या फिर पेरेंट्स उन पर अपने निर्णय थोपें।
लॉकडाउन में बच्चे ना तो स्कूल जा पा रहे हैं और ना ही घर से बाहर खेलने-कूदने। ऐसे में उनके अंदर खीझ, गुस्सा, चिड़चिड़ापन घर कर सकता है। बेहतर है कि आप उनकी इम्यूनिटी बूस्ट करने के साथ-साथ मेंटली फिट रखने के बारे में भी सोचें।
बच्चे इन दिनों टीवी पर केवल कार्टून शोज़ नहीं देखते। टीवी के अलावा, टैबलेट्स, स्मार्टफोन्स, कम्प्यूटर्स जैसे गैजेट्स भी रोज़ाना उनके हाथों में देखे जाते हैं। इससे, बच्चे की सेहत और मानसिक विकास प्रभावित हो सकता है।
नवजात शिशु अपनी जरूरतों को रोने के माध्यम से ही बताते हैं. कई बार कुछ बच्चे जन्म लने के बाद रोना शुरु नहीं करते हैं. क्या जन्म के बाद बच्चे का रोना जरूरी होता है.? इस सवाल का जवाब लगभग हर माता-पिता को पता होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जन्म के बाद बच्चे का पहली बार रोना क्यों जरूरी है.? हम इस लेख में नवजात शिशु का रोना कितना जरूरी है इसी पर बात कर रहे हैं.
प्रेगनेंसी/गर्भावस्था में पैरासिटामोल खाने से होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है. प्रेगनेंसी में जो दवाएं मां खाती हैं उसका असर बच्चे के हेल्थ पर भी पड़ता है.
शारीरिक श्रम से तनाव भी कम होता है। खेलकूद से बच्चों को समस्याएं सुलझाने, क्षमता बढ़ाने और अपनी रुचि को समझने का मौका मिलता है।
नियम में रहकर गोल अचीव करना अपने आप में एक बेहतरीन आदत है। जिसका प्रशिक्षण बच्चे पजल के माध्यम से बहुत पहले ही ले लेते हैं।
शहरी मध्यमवर्गीय परिवारों के ज्यादातर बच्चे सायकोटिक डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं। इससे उन्हें बचाने के लिए आपको अपना टाइम मैनेजमेंट और फैमिली बॉन्डिंग पर ठीक से काम करने की जरूरत है।
आप ही बच्चों के रोल मॉडल हैं और आप ही उनके गाइड। इसलिए यह ध्यान रखें कि बच्चे के हित के लिए कहीं उससे दूरी न बढ़ा लें। पेरेंटिंग के पुराने तरीकों को बदलना होगा।
अगर आपको क्रिएटिविटी के लिए अपने बच्चों में कुछ करना है तो उनको बचपन में कुछ बातों के लिए प्रेरित करना होता है। बच्चों में क्रिएटिविटी बढ़ने और नए इनोवेशन के बहुत ज्यादा चांस होते हैं। बच्चों का दिमाग दुनिया में नई चीजों को देखने के साथ विकसित हो रहा होता है ठीक उसी समय सही दिशा उनको रचनात्मक और नवाचार की ओर बढ़ा सकती है।
वर्तमान समय ऐसा है जब बच्चे सोशल मीडिया के उपयोग के साथ बड़े हो रहे हैं। ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल के शोधकर्ताओं का कहना है कि इंस्टाग्राम जैसे सोशल प्लेटफार्म में डिजिटल मार्केटिंग का असर बच्चों की फूड हैबिट पर पड़ रहा है।
अपने शरारती बच्चे पर गुस्सा ना करें बल्कि उसे प्यार से समझाएं!
घर में नन्हे मेहमान के आने पर पहले बच्चे की अनदेखी ना करें, उसे शिशु से प्यार करना सिखाएं!
रात में सोने से पहले बच्चों को गुनगुने पानी से नहलाएं, इससे वे जल्दी सोते हैं!
यकीनन ये तस्वीर देखकर आपका तनाव और चिंता हो जाएंगे छूमंतर!