ज्यादातर माताएं अपने बच्चों को ब्रेस्टफीड कराती हैं हालांकि, कुछ मामलों में, यह संभव नहीं हो पाता है जैसे कि मां बीमार हो या बच्चा नर्सिंग केयर में हो और वह ब्रेस्टफीड लेने में असमर्थ हो। बेशक, ऐसे हालात में मां और बच्चे दोनों के लिए ब्रेस्टफीडींग करना और कराना कठीन होता है। लेकिन कुछ बच्चों को ब्रेस्टफीडींग कराना लगभग असंभव हो जाता है, खासकर तब जब समय से पहले शिशुओं का जन्म हो जाता है, क्योंकि वो पूर्णरूप से विकसीत नहीं होते हैं और वो इतने नाजुक होते हैं कि वो ब्रेस्ट को चुसनें में असमर्थ होते हैं, जोकि पूर्णरूप से विकसीत बच्चे ऐसा कर लेते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं हैं कि माताओं को ब्रेस्टफीडींग कराने के विचार को छोड़ देना चाहिए। इसके बजाय, जानना चाहिए कि ब्रेस्टफीडींग ऐसे छोटे बच्चों के के लिए और भी महत्वपूर्ण है। यह जीवन के अमृत जैसा है जो उन्हें बढ़ने, पोषण और मजबूत होने में मदद करता है।
डॉ. विधी बेरी (CAPPA)एक प्रमाणित चाईल्डबर्थ एडूकेटर हैं जो मेडेला इंडिया में लैक्टेशन कंसल्टेंट है, आईए जानते हैं उनके कुछ व्यावहारिक सुझावः
ब्रेस्ट पंप का प्रयोग करें: ब्रेस्टफीडींग सभी नवजात शिशुओं, विशेष रूप से समय से पहले या अविकसीत शिशुओं के लिए महत्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। लेकिन एनआईसीयू के बच्चे तात्कालिक तौर पर ब्रेस्टफ़ीड के लिए तैयार नहीं होते हैं। लेकिन बच्चे के विकास और शुद्ध पोषण सुनिश्चित करने के लिए ब्रेस्टफ़ीड करना आवश्यक होता। इसलिए आपको अपने ब्रेस्ट के दूध को इकट्ठा करने के लिए एक ब्रेस्ट पंप का उपयोग करना चाहीए जो बाद में फीडर के माध्यम से बच्चे को दूध पिलाया जा सकता है।
कंगारू केयर अपनायें ः एनआईसीयू में ब्रेस्टफीड कराना बेहद चुनौतीपर्ण व धैर्य का काम होता है। प्रसव के बाद कमजोर बच्चे को सुघने, श्वास लेने और निगलने जैसे चीजों को समझनें में लम्बा वक्त लगता है और तब जाकर वो फीड लेने लायक होता है। ब्रेस्टफीड के लिए एक कारगर विधि अपना सकते है जिसे कंगारू केयर कहते हैं, इसमें होता ये है कि त्वचा से त्वचा को स्पर्श कराने के लिए बच्चे को मां के चेस्ट से चिपकाया जाता है। यह तरीका बच्चे को ब्रेस्ट के नजदीक जाने का अवसर देता है। यही वो समय होता है जब बच्चा मां के निप्पल के नजदीक होता है और उसकी महक से महसूस करता है। लेकीन इस तरीके को अप्लाई करते समय आपको अपने ब्रेस्ट को ब्रेस्टपंप से थोड़ा खाली करना होता है क्योंकि नवजात बच्चा भरे हुए ब्रेस्ट को चूसने में सक्षम नहींं होता है इसे सीखने में बच्चे को समय लगता है।
आहार योजना बनाएं : यदि आपका बच्चा एनआईसीयू में है तो ब्रेस्टफीड के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए एक आहार योजना आवश्यक है। उस दौरान धैर्य और उचित आहार सूची के बावजूद, आपके बच्चे को खिलाना सीखने में कुछ समय लग सकता है। कभी-कभी कम विकसीत शिशुओं में पूर्ण विकसीत बच्चों की तुलना में अधिक पाचन समस्याएं हो सकती हैं इसका मतलब है कि आपके बच्चे को धीरे-धीरे खिलाया जाना चाहिए, यदि अधिक और बार-बार दूध पीलाया जाता है तो उसे थूकने या दूध के प्रति अरूचि पैदा हो सकती है।
एनआईसीयू टीम के साथ अपनी योजना पर चर्चा करें: अपको एनआईसीयू टीम को ब्रेस्टफीड कराने की बात से अवगत करना महत्वपूर्ण है। आपके नवजात बच्चे को ब्रेस्टफीड कराने में सफल होने के लिए आपके, नर्सों और आपके ब्रेस्टफीड सलाहकार के बीच एक उचीत वार्तालाप आवश्यक है। सफल ब्रेस्टफीड को बढ़ाने के लिए, आपको जन्म के तुरंत बाद पम्पिंग शुरू करना चाहिए और जब तक स्तन दूध से खाली नहीं हो जाता है तब तक पंप करना चाहिए, इस दूध में वसा उच्च होती है और बच्चे की पोषण संबंधी आवश्यकताओं के लिए आवश्यक है। अगर आप पहले प्रयास में दूध की मात्रा कम है तो निराश मत हो इसे लगातार करना ज्यादा महत्वपूर्ण है जितना अधिक आप पंप करेंगे, उतना ही आपके ब्रेस्ट में दूध बनेंगा और अधिक आप अपने नवजात बच्चे के लिए इकट्ठा कर पायेंगे। ब्रेस्ट दुध आपके नवजात बच्चे के लिए सबसे अच्छा दूध है।
एक नई मां के रूप में, आपको एनआईसीयू में क्या करना है और कैसे अपने बच्चे को खिलाना है इस पर आपको बहुत सलाह मिलेगी, लेकिन एक बात आपको हमेशा याद रखना है कि जो आपके और आपके बच्चे के लिए सरल और सहज लगे वही करें।
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अनुवादक: Akhilesh Dwivedi.
चित्रस्रोत: Shutterstock.
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