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Home / Hindi / Health News / युवा तेजी से हो रहे नोमोफोबिया के शिकार : शोध

युवा तेजी से हो रहे नोमोफोबिया के शिकार : शोध

लगभग तीन वयस्क उपभोक्ता लगातार एक साथ एक से अधिक उपकरणों का उपयोग करते हैं और अपने 90 प्रतिशत कार्य दिवस उपकरणों के साथ बिताते हैं।

By: IANS   | | Published: June 4, 2019 9:57 am
Tags: Cell phone addiction  Nomophobia  tips to overcome Nomophobia  
Nomophobia-in-youth
लगभग तीन वयस्क उपभोक्ता लगातार एक साथ एक से अधिक उपकरणों का उपयोग करते हैं और अपने 90 प्रतिशत कार्य दिवस उपकरणों के साथ बिताते हैं। ©Shutterstock.

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भारत में तकनीक की लत खतरनाक दर से बढ़ रही है। इस कारण युवा नोमोफोबिया का शिकार हो रहे हैं। लगभग तीन वयस्क उपभोक्ता लगातार एक साथ एक से अधिक उपकरणों का उपयोग करते हैं और अपने 90 प्रतिशत कार्य दिवस उपकरणों के साथ बिताते हैं। यह बात एडोब के एक अध्ययन में सामने आई है। Also Read - स्क्रीन एडिक्शन: भारत में लोग रोज़ घंटे भर से अधिक समय केवल वीडियोज़ देखने में बिता देेते हैं



मोबाइल के बाद कंप्‍यूटर

नोमोफोबिया आधुनिक उपकरणों की लत से जुड़ी बीमारी है। इसमें व्‍यक्ति एक साथ मोबाइल, टेबलेट अथवा कंप्‍यूटर का इस्‍तेमाल करता है। इससे संदर्भ में हुए अध्ययन के निष्कर्ष ने यह भी संकेत दिया कि 50 प्रतिशत उपभोक्ता मोबाइल पर गतिविधि शुरू करने के बाद फिर कंप्यूटर पर काम शुरू कर देते हैं। भारत में इस तरह स्क्रीन स्विच करना आम बात है। मोबाइल फोन का लंबे समय तक उपयोग गर्दन में दर्द, आंखों में सूखेपन, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम और अनिद्रा का कारण बन सकता है। 20 से 30 वर्ष की आयु के लगभग 60 प्रतिशत युवाओं को अपना मोबाइल फोन खोने की आशंका रहती है, जिसे नोमोफोबिया कहा जाता है। Also Read - जानिए क्‍यों जरूरी है सप्‍ताह में एक दिन डिजिटल डिटॉक्‍स

मस्तिष्‍क हो रहा है प्रभावित

नोमोफोबिया पर बात करते हुए हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ.के.के. अग्रवाल कहते हैं, “हमारे फोन और कंप्यूटर पर आने वाले नोटिफिकेशन, कंपन और अन्य अलर्ट हमें लगातार उनकी ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं। यह उसी तरह के तंत्रिका-मार्गो को ट्रिगर करने जैसा होता है, जैसा किसी शिकारी द्वारा एक आसन्न हमले के दौरान या कुछ खतरे का सामना करने पर होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारा मस्तिष्क लगातार सक्रिय और सतर्क रहता है, लेकिन असामान्य तरह से।”

दे रहे हैं बीमारियां

उन्होंने कहा, “हम लगातार उस गतिविधि की तलाश करते हैं, और इसके अभाव में बेचैन, उत्तेजित और अकेला महसूस करते हैं। कभी-कभी हाथ से पकड़ी स्क्रीन पर नीचे देखने या लैपटॉप का उपयोग करते समय गर्दन को बाहर निकालने से रीढ़ पर बहुत दबाव पड़ता है। हम प्रतिदिन विभिन्न उपकरणों पर जितने घंटे बिताते हैं, वह हमें गर्दन, कंधे, पीठ, कोहनी, कलाई और अंगूठे के लंबे और पुराने दर्द सहित कई समस्याओं के प्रति संवेदनशील बनाता है।”

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भावनात्‍मक असंतुलन

डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा, “गैजेट्स के माध्यम से सूचनाओं की इतनी अलग-अलग धाराओं तक पहुंच पाना मस्तिष्क के ग्रेमैटर डेंसिटी को कम करता है, जो पहचानने और भावनात्मक नियंत्रण के लिए जिम्मेदार है। इस डिजिटल युग में, अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है मॉडरेशन, यानी तकनीक का समझदारी से उपयोग होना चाहिए। हम में से अधिकांश उन उपकरणों के गुलाम बन गए हैं जो वास्तव में हमें मुक्त करने और जीवन का अनुभव करने और लोगों के साथ रहने के लिए अधिक समय देने के लिए बने थे। हम अपने बच्चों को भी उसी रास्ते पर ले जा रहे हैं।”

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झगड़े और तनाव का कारण

उन्होंने कहा कि 30 प्रतिशत मामलों में स्मार्टफोन अभिभावक-बच्चे के बीच संघर्ष का एक कारण है। अक्सर बच्चे देर से उठते हैं और अंत में स्कूल नहीं जाते हैं। औसतन लोग सोने से पहले स्मार्ट फोन देखते हुए बिस्तर में 30 से 60 मिनट बिताते हैं।

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स्मार्टफोन की लत को रोकने के लिए कुछ टिप्स

  •  इलेक्ट्रॉनिक कर्फ्यू : मतलब सोने से 30 मिनट पहले किसी भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट का उपयोग न करना।
  • फेसबुक की छुट्टी : हर तीन महीने में 7 दिन के लिए फेसबुक प्रयोग न करें।
  • सोशल मीडिया फास्ट : सप्ताह में एक बार एक पूरे दिन सोशल मीडिया से बचें।
  •  अपने मोबाइल फोन का उपयोग केवल तब करें जब घर से बाहर हों।
  • एक दिन में तीन घंटे से अधिक कंप्यूटर का उपयोग न करें।
  • अपने मोबाइल टॉक टाइम को एक दिन में दो घंटे से अधिक तक सीमित रखें।
  • अपने मोबाइल की बैटरी को एक दिन में एक से अधिक बार चार्ज न करें।

Published : June 4, 2019 9:57 am
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