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आज (19 जून) 'विश्व सिकल सेल दिवस 2020' (world sickle cell day 2020) है। भारत में इस रोग से पीड़ित लोगों की संंख्या काफी अधिक है। यह रोग दक्षिणी भारत, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश के आस-पास के क्षेत्रों में सबसे ज्यादा होता है। इसे सिकल सेल एनीमिया भी कहते हैं। यह एक अनुवांशिक बीमारी है। माता-पिता दोनों को यह रोग है, तो बच्चे में इस रोग के होने की सम्भावनाएं काफी हद तक बढ़ जाती हैं। यदि किसी एक को सिकल सेल डिजीज है, तो शिशु के स्वस्थ होने की उम्मीद अधिक होती है, लेकिन वह इसका वाहक हो सकता है। ऐसे में परिवार में किसी को यह रोग पहले से है, तो फैमिली प्लानिंग करने से पहले डॉक्टर से जरूर संपर्क करना चाहिए।आइए जानते हैं, क्या है सिकल सेल डिजीज (Sickle cell disease) और इस रोग के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में...
इस वर्ष 'विश्व सिकल सेल दिवस' (world sickle cell day 2020) की 41वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। सिकल सेल सोसायटी द्वारा सरकार, डॉक्टर्स, पेरेंट्स, गैर सरकारी संगठनों और अन्य इच्छुक पार्टियों के साथ मिलकर जागरूकता बढ़ाने और सिकल सेल रोग से पीड़ित लोगों का समर्थन करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। 'विश्व सिकल सेल दिवस 2020' संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा (United Nations General Assembly) 2008 में स्थापित किया गया था, ताकि सिकल सेल रोग के प्रति आम जनता में इसके बारे में जागरूकता बढ़ सके। 2009 में 19 जून को पहली बार इस दिन को मनाया गया।
सिकल सेल रोग (Sickle cell disease in hindi) खून से संबंधित एक अनुवांशिक विकार है, जिसमें व्यक्ति का हीमोग्लोबिन एस आकार (एचबीएस) में दोषपूर्ण होता है। आमतौर पर हीमोग्लोबिन का आकार ‘ओ’ शेप (एचबीए) का होता है। हीमोग्लोबिन शरीर के विभिन्न हिस्सों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है। हालांकि, इस रोग में हीमोग्लोबिन के दोषपूर्ण आकार के कारण लाल रक्त कोशिकाएं एक-दूसरे के साथ जुड़कर क्लस्टर बना लेती हैं और रक्त वाहिकाओं में आसानी से बह नहीं पातीं।
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ये क्लस्टर धमनियों और शिराओं में बाधा बन जाते हैं और जिसकी वजह से ऑक्सीजन से युक्त रक्त का प्रवाह शरीर में ठीक से नहीं हो पाता। इससे व्यक्ति कई जटिलताओं का शिकार हो जाता है। सामान्य आरबीसी की उम्र तकरीबन 120 दिन होती है, जबकि ये दोषपूर्ण सेल ज्यादा से ज्यादा 10-20 दिनों तक जीवित रह पाते हैं। इस वजह से शरीर में हीमोग्लोबिन से युक्त कोशिकाओं की संख्या गिरती चली जाती है और व्यक्ति क्रोनिक एनिमिया (Anemia) का शिकार हो जाता है। इस रोग से पीड़ित मरीज के खून में पर्याप्त ऑक्सीजन न होने के कारण उसे जल्दी थकान होती है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में यह रोग दूसरे स्थान पर है। हालांकि, यह रोग बहुत पुराने समय से ज्ञात है, लेकिन इस पर अधिक काम नहीं किया गया है। यह अफ्रीकी, अरबी और भारतीय आबादी में अधिक पाया जाता है। हमारे देश में यह ‘सिकल सेल बेल्ट’ में अधिक पाया जाता है, जिसमें मध्यम भारत का डक्कन पठार, उत्तरी केरल और तमिलनाडू शामिल है। यह छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के पड़ोसी इलाकों में भी पाया जाता है।
[caption id="attachment_672450" align="alignnone" width="655"] यह रक्त से संबंधित एक अनुवांशिक विकार है, इसलिए जब नवजात शिशु पांच महीने का होता है, तभी उसमें इस रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। © Shutterstock.[/caption]
यह रक्त का अनुवांशिक विकार है, इसलिए जब नवजात शिशु पांच महीने का होता है, तभी उसमें रोग के लक्षण (Symptoms of sickle cell) दिखाई देने लगते हैं। इसमें त्वचा का पीला पड़ना (जॉन्डिस) और आखों का सफेद होना (icterus)। सिकल सेल के मरीज को जल्दी थकान होती है। उसके हाथों-पैरों में सूजन और दर्द होता है। इसके मरीजों को बार-बार संक्रमण की संभावना होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनका विकास ठीक से नहीं हो पाता और उन्हें देखने में समस्या हो सकती है।
हाथों-पैरों में सूजन होना।
जोड़ों में दर्द होना।
ब्लड क्लॉटिंग की समस्या।
कोशिकाओं में सही मात्रा में ऑक्सीजन ना पहुंचना।
इंफेक्शन होने का खतरा।
रोग की रोकथाम और मरीज की देखभाल करने के लिए पीड़ित व्यक्ति में सिकल सेल एनिमिया (world sickle cell day 2020) की स्थिति को जानना बहुत महत्वपूर्ण है। हर अविवाहित व्यक्ति को जांच द्वारा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसने सिकल सेल एनीमिया का जीन तो नहीं। अगर उनमें यह दोषपूर्ण जीन है, तो वे अपने जीवनसाथी का चुनाव करते समय या गर्भावस्था की योजना बनाते समय उचित सतर्कता बरत सकें। जिन परिवारों में सिकल सेल रोग का इतिहास हो, उनमें जन्मपूर्व निदान के द्वारा इस जीन को भावी पीढ़ियों में जाने से रोका जा सकता है।
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सिकल सेल विकार से पीड़ित बच्चों की देखभाल की बात करें, तो उनके लिए नियमित टीकाकारण बहुत जरूरी है। इन बच्चों को बहुत अधिक ऊंचाई या बहुत अधिक तापमान से बचाना चाहिए। इनके हाइड्रेशन और स्वस्थ जीवनशैली का खास ध्यान रखना चाहिए। इन्हें नियमित रूप से उचित दवाएं जैसे हाइड्राॅक्स्युरिया, पेनसिलिन, फोलिक एसिड और एंटीमलेरियल प्रोफाइलेक्टिसस आदि देनी चाहिए। बहुत अधिक जटिलता के मामले में तुरंत डाॅक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
जो लोग इस रोग से पीड़ित होते हैं, उनका जीवन तकलीफों भरा होता है। सिकल सेल रोग के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लान्ट ही एकमात्र उपचार है। हालांकि, लोग इस विकल्प के बारे में अधिक जागरूक नहीं हैं। इलाज में ब्लड ट्रांसफ्यूजन के साथ ही मरीज को किसी भी गंभीर संक्रमण से बचाए जाने की कोशिश की जाती है। कुछ दवाओं और विटामिन सप्लीमेंट्स जैसे बी-12, फोलिक एसिड के जरिए हीमोग्लोबिन को मेंटेन करने की कोशिश की जाती है। दर्द कम करने की दवा दी जाती है, लेकिन जब मरीज को तीव्र दर्द होता है, तो हॉस्पिटल ले जाना ही एकमात्र उपाय होता है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के साथ ही, इससे पीड़ित लोगों की लगतार काउंसलिंग भी की जानी चाहिए।