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बढ़ता वायु प्रदूषण भी क्रोनिक किडनी रोगों का एक कारक : चिकित्सक

बढ़ता वायु प्रदूषण भी क्रोनिक किडनी रोगों का एक कारक : चिकित्सक
बढ़ता वायु प्रदूषण भी क्रोनिक किडनी रोगों का एक कारक। © Shutterstock

चिकित्सकों का कहना है कि बढ़ता वायु प्रदूषण भी क्रोनिक किडनी रोगों के बढ़ते जोखिम का एक कारक है।

Written by IANS |Updated : March 14, 2019 2:03 PM IST

बढ़ती जीवन प्रत्याशा व जीवनशैली की बीमारियों के प्रसार के साथ भारत में क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। चिकित्सकों का कहना है कि बढ़ता वायु प्रदूषण भी क्रोनिक किडनी रोगों के बढ़ते जोखिम का एक कारक है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सीकेडी की बढ़ती घटनाओं के साथ भारत में डायलिसिस से गुजरने वाले रोगियों की संख्या में भी हर साल 10 से 15 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। इस प्रतिशत में कई बच्चे भी शामिल हैं।

दुर्भाग्य से, लगातार बढ़ती घटनाओं के बावजूद, गुर्दे की बीमारी को अभी भी भारत में उच्च प्राथमिकता नहीं दी जाती है। सीकेडी के उपचार और प्रबंधन का आर्थिक कारक भी रोगियों और उनके परिवारों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है।

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आकाश हेल्थकेयर में नेफ्रोलॉजी और रीनल प्रत्यारोपण के वरिष्ठ सलाहकार और निदेशक डॉ. उमेश गुप्ता ने कहा, "सीकेडी लाइलाज और बढ़ने वाली बीमारी है जो समय के साथ गुर्दे के कार्य को कम करता है। रोगी को आजीवन देखभाल और चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है। गुर्दे लाखों छोटी संरचनाओं से बने होते हैं, जिन्हें नेफ्रॉन कहा जाता है जो रक्त को फिल्टर करते हैं। अगर ये नेफ्रॉन क्षतिग्रस्त हो गए, तो यह गुर्दे के कामकाज को प्रभावित कर सकता है, जिससे गुर्दे की बीमारी भी हो सकती है।"

उन्होंने कहा, "किडनी की बीमारी का कोई लक्षण नहीं है। यह मुख्य रूप से उच्च रक्तचाप और मधुमेह वाले लोगों को प्रभावित करता है, जो बहुत आम है। कुछ असामान्य लक्षण सूजन, संक्रमण (पायलोनेफ्राइटिस), मूत्र प्रणाली में रुकावट और दर्द निवारक दवाओं (एनएसएआईडी) का अधिकतम सेवन है। जो लोग व्यस्त कार्यक्रम रखते हैं और उचित संतुलित आहार नहीं लेते हैं, उनमें गुर्दे की बीमारी होने का खतरा अधिक होता है।"

डॉ. गुप्ता ने कहा, "जो लोग अपनी फिटनेस के बारे में अधिक जागरूक हैं और एक आकर्षक और मांसपेशियों वाले शरीर को पाने के लिए फिटनेस की खुराक लेते हैं, उन्हें भी जोखिम होता है और ये समय के साथ क्रोनिक किडनी रोग की ओर ले जा सकते हैं।"

क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ और हेल्थकेयर एटहोम (एचसीएएच) के मुख्य परिचालन अधिकारी डॉ. गौरव ठुकराल कहते हैं, "अध्ययनों ने भारत में सीकेडी के बोझ को हर दस लाख लोगों के लिए 800 से अधिक आंका है जो कि हमारी आबादी को देखते हुए एक महत्वपूर्ण संख्या है। सीकेडी का उपचार और प्रबंधन एक लंबी प्रक्रिया है, जिससे रोगियों और उनके परिवारों को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक परेशानी होती है।"

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डॉ. गौरव ठुकराल ने कहा, "इस असुविधा को कम करने के लिए क्वालिटी होम हेल्थकेयर समाधान प्रयासरत हैं। वे एक व्यापक स्वास्थ्य शिक्षा योजना प्रदान करते हैं। वे सीकेडी रोगियों के लिए एक विशेष देखभाल योजना विकसित करते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि रोगी एक स्वस्थ जीवनशैली का पालन करें। यह सब रोगी के घर पर उपलब्ध कराया जाता है।"

उन्होंने कहा, "होम हेल्थकेयर समाधान मरीजों और उनके परिवारों के लिए एक अधिक सुविधाजनक और लागत प्रभावी विकल्प है। उदाहरण के लिए, एचसीएएच 30 फीसदी कम लागत पर उन्हीं के घर में रोगियों को अस्पताल जैसी पेरिटोनियल डायलिसिस प्रदान करता है और डायलिसिस के लिए अस्पताल में रोगियों के लिए द्वि-साप्ताहिक यात्राओं को समाप्त करके देखभाल करने वालों के तनाव को कम करता है।"