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पिछले तीन दशक से दुनिया भर में एड्स की जागरुकता के लिए सतत कार्य किया जा रहा है। इसके बावजूद यह बीमारी नियंत्रण में आने की बजाए और बढ़ती ही जा रही है। एचआईवी, एड्स के संदर्भ में चलाए जा रहे अभियानों पर गौर करें तो वे बीमारी की पहचान और जागरुकता से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। यह भी पढ़ें - वर्ल्ड एड्स डे 2018 : क्या सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गई है एड्स की बीमारी ?
निजी स्तर पर
इस बीमारी की शुरुआत एक व्यक्ति के स्तर पर होती है। क्योंकि यह एकमात्र बीमारी है जो पशुओं में नहीं पाई जाती। इसकी उत्पत्ति और प्रसार केवल मनुष्यों में ही होता है। स्वभाविक है इसका निदान भी व्यक्ति के स्तर पर ही होगा। एचआईवी संक्रमण एक से अधिक यौन संबंधों के कारण जन्मता है और शरीर की लार, श्लेष्मा, वीर्य, रक्त एवं स्तनपाल के द्वारा प्रसारित होता है। इससे यह साबित होता है कि मनुष्यों की शारीरिक संरचना एक से अधिक यौन संबंधों के लिए नहीं है। इसके बावजूद इस आशय के प्रयास और नियंत्रण न के बराबर दिखायी देते हैं।
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राष्ट्रीय स्तर पर
अभी हाल ही में फरीदाबाद की नीमका जेल में वुमेन कमीशन के औचर निरीक्षण में कई कैदियों के एचआईवी संक्रमित होने की पुष्टि हुई। यह खबर चौंकाने वाली तो थी है, इसे सरकारी व्यवस्थाओं पर भी सवाल खड़ा किया। सरकारों की ओर से अब भी एचआईवी , एड्स से संक्रमित व्यक्तियों के उचित उपचार की व्यवस्था नहीं है। जबकि टेस्ट के लिए व्यापक अभियान चलाए जा रहे हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि ये सभी अभियान सरकारी वित्त पोषित हैं जबकि उपचार की प्रक्रिया और सुविधाएं उतनी ही दुर्लभ दिखाई देती हैं।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
गोल्डमैन सैक्स की रिसर्च विंग की उपाध्यक्ष साल्वेन रिक्टर ने एक विस्तृत विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में एशिया और अफ्रीका के देशों में एड्स की रोकथाम और उपचार संबंधी प्रयासों का विश्लेषण किया। उनकी रिपोर्ट में सामने आया कि इन अविकसित और विकासशील देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बहुत दयनीय है और अंतरर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी इस दिशा में बहुत सकारात्मक प्रयास नहीं किए हैं। वे लिखती हैं 1 9 78 के बाद से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बार-बार इस बात को दोहराया कि 2012 तक विश्व भर में "सस्ती और गुणवत्ता पूर्ण हेल्थ केयर सर्विसेज की पहुंच सुलभ करवानी है। इसके बावजूद दुनिया के अधिकांश देशों में स्वास्थ्य नीति का ढांचा दूसरी दिशा में चला गया।“
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