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ये महिलाएं कभी नहीं कर सकती हैं प्लाज्मा डोनेट, जानें इसकी वजह

ये महिलाएं कभी नहीं कर सकती हैं प्लाज्मा डोनेट, जानें इसकी वजह
ये महिलाएं कभी नहीं कर सकती हैं प्लाज्मा डोनेट, जानें इसकी वजह

प्लाज्मा थेरेपी के तहत कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों से प्लाज्मा डोनेट करने की अपील भी की जा रही है, लेकिन आपको बता दें कि हर मरीज प्लाज्मा डोनेट (Plasma Donate) नहीं कर सकता है। प्लाज्मा डोनेट करने के लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं।

Written by Kishori Mishra |Updated : July 9, 2020 3:31 PM IST

Plasma Donate : कोरोनावायरस का इलाज (Coronavirus Pandemic) करने के लिए हाल ही में प्लाज्मा बैंक शुरू किया गया है। वैज्ञानिकों द्वारा प्लाज्मा थेरेपी से कोरोनावायरस के इलाज के लिए मंजूरी दे दी गई है। फिलहाल गंभीर रूप से पीड़ित मरीजों के लिए इस थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। कोरोना के इलाज के लिए यह देश का पहला प्लाज्मा बैंक (Plasma Bank) है। इस बैंक को इंस्टिट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी साइंस (आईएलबीसी) हॉस्पीटल में बनाया गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना वायरस के संक्रमितों का इलाज कारगर (Plasma Donate) साबित हो सकती है।

प्लाज्मा थेरेपी के तहत कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों से प्लाज्मा डोनेट करने की अपील भी की जा रही है, लेकिन आपको बता दें कि हर मरीज प्लाज्मा डोनेट (Plasma Donate) नहीं कर सकता है। प्लाज्मा डोनेट करने के लिए कुछ शर्तें रखी गई हैं। बताया जा रहा है कि अपने जीवन में कभी भी मां बन चुकीं महिलाएं या फिर वर्तमान में गर्भवती महिलाएं प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकतीं हैं।

आईएलबीएस के निदेशक एके सरीन ने एक अंग्रेजी अखबार को इंटरव्यू दिया है। इस इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि मां बन चुकीं और गर्भवती महिलाएं प्लाज्मा डोनेट नहीं कर सकती हैं। उनका प्लाज्मा कोरोनावायरस के मरीजों को और अधिक नुकसान पहुंचा सकता है।

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क्या है खास वजह?

एंटीबॉडी प्‍लाज्‍मा थेरेपी की प्रक्रिया में प्लाज्मा निकालने के लिए भी खून निकाला जाता है। लेकिन ब्लड डोनेशन और प्लाज्मा डोनेशन की प्रक्रिया में काफी अंतर है। प्लाज्मा थेरेपी के लिए जब व्यक्ति के शरीर से खून निकाला जाता है, तो ब्लड से प्लाज्मा निकालकर खून को वापस शरीर में डाल दिया जाता है।

वहीं, गर्भवती महिलाएं अपने शरीर का प्लाज्मा नहीं दे डोनेट कर सकती हैं, क्योंकि इससे कोविड-19 के मरीजों के फेफड़ों को और अधिक नुकसान पहुंच सकता है। इससे मरीज को ट्रांस्फ्यूजन रिलेटेड एक्यूट लंग इंजरी (टीआरएएलआई) हो सकती है।

महिलाओं में गर्भधारण के बाद भ्रूण में पिता के अंश के खिलाफ एंटीबॉडी बनती हैं, क्योंकि यह एक बाहरी तत्व है। इन एंटीबॉडी को ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) कहा जाता है। बता दें कि महिला के जितने ज्यादा बच्चे होंगे उसके शरीर में उतना ही अधिक एंटीबॉडी होगा। ये ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन महिला की रोग प्रतिरोधक क्षमता का हिस्सा है, जो यह पहचानने में उनकी मदद करता है कि यह शरीर में आया तत्व बाहर का है या शरीर का।

मां बनने वाली महिलाओं में यह एक सामान्य बात है, इससे मां और बच्चे को कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन दूसरे व्यक्ति के लिए यह नुकसानदायी हो सकता है। क्योंकि जब यह एचएलए एंटीबॉडी प्लाज्मा के जरिए किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में पहुंचती है तो वह फेफड़ों की लाइनिंग में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स के साथ प्रतिक्रिया करती है। इससे फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। सामान्य भाषा में कहें तो इससे फेफड़ों में एक तरल पदार्थ भर जाता है। इस तरल पदार्थ के कारण मरीज को सांस लेने में परेशानी हो सकती है। इसलिए गर्भवती महिलाएं या फिर मां बनी महिलाओं को प्लाज्मा डोनेट करने के लिए मना किया गया है।

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