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किडनी दो बीन के आकार का अंग हैं जो बॉडी के दोनो तरफ रेनल सिस्टम में होता है जिसे हम यूरिनरी सिस्टम भी कहते हैं। इसका मुख्य काम शरीर से अपशिष्ट और जहरीले पदार्थ को पेशाब के रास्ते बाहर निकालना है तथा रक्त की शुद्धि करना भी किडनी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके अलावा किडनी हार्मोन पैदा करने में अहम भूमिका निभाती है। हार्मोन लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने, हड्डियों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है।
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आज के समय खानपान और एक्सरसाइज की कमी की वजह से किडनी के मरीजों की समस्या बढ़ती जा रही है। किडनी यदि काम करना बंद कर दे तो शरीर में कई तरह की बड़ी समस्याएं पैदा होने लगती है। किडनी फेल्योर होने पर मरीज का जीना दुश्वार हो जाता है और मरीज का जीवन हॉस्पिटल के चक्कर लगाने में ही बीतता है। यह भी पढ़ें – प्रोबायोटिक की मदद से बढ़ाई जा सकती है बोन डेंसिटी : शोध
कब आती है किडनी फेल होने की स्थिति
आज पूरा विश्व किडनी से जुड़ी बीमारियों और किडनी फेल्योर की समस्या से परेशान हैं। किडनी फेल्योर में किडनी खराब होने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है, जो महीनों या वर्षो तक चलती रहती है। लम्बे समय बाद जब मरीज की दोनों किडनियां सिकुड़ कर छोटी हो जाती हैं तो काम करना बंद कर देती हैं। जब किडनी 90 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो जाती है तो इसे एंड स्टेज रीनल डिजीज कहते हैं। इसे किसी भी दवा से ठीक नहीं किया जा सकता। यह भी पढ़ें – किडनी प्रत्यारोपण में बाधा नहीं बनेगा मारिजुआना का सेवन
क्या हैं किडनी खराब होने के कारण
डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, पथरी ये ऐसे रोग है जिसकी वजह से किडनी खराब हो सकती है। जब किडनी खराब होने लगती है, तब वहां न तो परहेज काम आता है न ही दवाईयां। ऐसी अवस्था में रोगी की तबीयत लगातार बिगड़ने लगती है। यदि किडनी खराब हो तो इसका इलाज कराने के लिए व्यक्ति के पास दो तरीके हैं। एक है किडनी डायलिसिस और दूसरा किडनी ट्रांसप्लांट। विशेषज्ञों के मुताबिक खराब किडनी का इलाज करने के लिए किडनी ट्रांसप्लांट एक बेहतर विकल्प साबित होता है।
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समझें किडनी डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट को
एक्सपर्ट के मुताबिक यदि किसी मरीज को किडनी फेल्योर के बाद किडनी डायलिसिस पर रखा जाता है तो उसे कमजोरी महसूस होती है। उसके हाथ-पैरों में सूजन आ जाती थी, खाने-पीने में कई तरह के परहेज करने पड़ते थे और छोटी-छोटी चीजों के लिए भी किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर रहना पड़ता था। वहीं अगर हम किडनी ट्रांसप्लांट कराने की बात करें तो इसमें मरीज को अलग से एक स्वस्थ किडनी लगा दी जाती है।
क्या है किडनी ट्रांसप्लांट कराने के फायदे
इसके फायदे की बात करें तो इससे जिंदगी भर के डायलिसिस से छुटकारा मिलता है और मरीज सामान्य व्यक्तियों की तरह जीवन जी पाता है तथा उसकी निर्भरता दूसरे लोगों पर बहुत ही कम रह जाती है। इसके अलावा डायलिसिस की अपेक्षा किडनी ट्रांसप्लांट में खाने-पीने में कम परहेज होता है तथा शारीरिक और मानिसक रूप से स्वस्थ रहता है। किडनी ट्रांसप्लांट का एक फायदा यह भी है कि शुरुआती एक साल तक इलाज में खर्च होता है, उसके बाद इसका खर्च कम हो जाता है।
कौन दे सकता है किडनी
कोई भी स्वस्थ व्यक्ति, जिसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो, जो 18 से 55 की उम्र के बीच का हो, वह अपनी किडनी दान दे सकता है। इसके अलावा डॉक्टरों की ओर से प्रमाणित किया हुआ एक ब्रेन डेड व्यक्ति भी अपनी किडनी दे सकता है।