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वर्तमान समय में कोरोनावायरस दुनियाभर में अपना विकराल रूप धारण किए हुए है। इस समय इससे खतरनाक और जानलेवा बीमारी शायद ही कोई और होगी। जहां करोड़ों लोग इस संक्रमण का शिकार हो चुके हैं वहीं, कई लाख लोगों की मौत भी हो चुकी है। जबकि वैक्सीन और दवा के नाम पर अभी तक हमारे हाथ खाली हैं। हालांकि दुनियाभर के वैज्ञानिक इस दिशा में काफी गंभीरता और सर्तकता से काम कर रहे हैं। इसी के साथ आज हम आपको एक और जरूरी जानकारी देने जा रहे हैं। हाल ही में आई एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि एक बीमारी ऐसी है जो कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक और जानलेवा है। इस बीमारी का प्रकोप ऐसा है कि हर साल करीब 15 लाख से अधिक लोग इस रोग के कारण मरते हैं।
यह बीमारी और कोई नहीं बल्कि ट्यूबर-क्यूलोसिस (Tuberculosis) यानी टीबी है। इसे तपेदिक भी कहते हैं। टीबी रोग सुनने में जितना मामूली और आसान लगता है उतना है नहीं। इस रोग के लक्षण भी गंभीर है और यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह रोग पूरी तरह से जानलेवा है। ट्यूबर-क्यूलोसिस भी कोरोनावायरस की तरह एक संक्रामक रोग है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर दुनियाभर में लोग सबसे ज्यादा टीबी रोग के कारण ही मरते हैं। यह ऐसी बीमारी बन गई है जो अब पूरी दुनिया में फैल चुकी है और लोग भारी मात्रा में इसकी चपेट में आ रहे हैं।
रिपोर्ट्स में कहा गया है कि अकेले भारत में ही टीबी के 27 प्रतिशत मरीज हैं। कोरोना से पहले टीबी का इलाज काफी तेजी से हो रहा था। लेकिन कोरोना के चलते इसके इलाज में करीब 75 प्रतिशत की कमी देखी गई है। ऐसा इसलिए क्योंकि वर्तमान में सरकार समेत डॉक्टर्स का भी पूरा फोकस कोरोना महामारी को जल्दी से खत्म करने पर है।
तपेदिक या टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो किसी को भी प्रभावित कर सकती है। तपेदिक एक संक्रमित व्यक्ति की खांसी से फैलता है। संक्रमित रोगाणु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बीमार व्यक्ति की खांसी, छींक या छोटी बूंदों के माध्यम से फैल सकते हैं जिनमें रोगाणु होते हैं। जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है वह जल्दी इसकी चपेट में आ जाते हैं।
तपेदिक शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। टीबी से फेफड़े सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। आमतौर पर टीबी के लक्षणों में हल्का बुखार, वजन कम होना, भूख न लगना और कमजोरी शामिल हैं। लेकिन अगर टीबी फेफड़ों को प्रभावित करता है, तो व्यक्ति को गंभीर और दीर्घकालिक खांसी, खांसी में खून आना और शरीर के विभिन्न हिस्सों में थक्के जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं। टीबी व्यक्ति के मस्तिष्क को भी प्रभावित कर सकती है। भारत में, ऐसे कई मामले हैं जिनमें टीबी ने लोगों की प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित किया है।
टीबी का उपचार इससे प्रभावित अंग पर निर्भर करता है। प्रत्येक अंग के लिए टीबी का उपचार अलग है। हालांकि, तपेदिक के इलाज में न्यूनतम छह महीने तो लगते ही हैं। एक बात जो मरीज को ध्यान में रखनी चाहिए वह यह है कि जब तक डॉक्टर सलाह न दें तब तक उसे इलाज बंद नहीं करना चाहिए और दवाओं का सेवन करते रहना चाहिए।