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Rare Disease Day 2021 in Hindi : भारतीय संविधान में स्वास्थ्य को मौलिक अधिकार बताया गया है। इसका मतलब है कि स्वास्थ्य सेवा तक समान पहुंच के अलावा, हर नागरिक को बीमारियों के बारे में पर्याप्त जागरूकता रखने की भी आवश्यकता है। हालांकि, दुर्लभ बीमारियों (Rare Disease in hindi) के मामले में ऐसा नहीं हो सकता है। दुर्लभ बीमारियां ऐसी स्थितियां हैं, जो भारतीय आबादी के एक छोटे प्रतिशत को प्रभावित करती हैं, लेकिन उपचार के विकल्पों की कमी और सबसे महत्वपूर्णए जागरूकता की कमी को देखते हुए चिंता का एक प्रमुख कारण है। इन विकारों के साथ देश में 70 मिलियन से अधिक लोग ग्रसित हैं, जो स्पष्ट रूप से इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनाते हैं। हर वर्ष फरवरी के अंतिम दिन (इस बार 28 फरवरी) ''रेयर डिजीज डे'' मनाया जाता है। रेडक्लिफ लाइफ साइंसेज की लीड साइंटिस्ट डॉ. दीपिका कालो बता रही हैं रेयर डिजीज क्या है, इसके खतरे और कारण के बारे में यहां...
दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरूकता (Rare Disease Day 2021 in hindi) की कमी के कई आयाम हैं। ये जीवन के लिए खतरनाक हैं, लेकिन ज्यादातर बीमारियों का देर से निदान किया जाता है, क्योंकि कुछ के लक्षण अन्य स्थितियों से मिलते-जुलते हैं। ज्यादातर मामलों में रोगी के जीवन की गुणवत्ता इस बिंदु पर काफी हद तक समझौता करती है कि वे बुनियादी कार्यों को भी पूरा नहीं कर सकते हैं। दूसरा आयाम है, मां बनने जा रही महिलाओं और नवजात शिशुओं में ऐसी स्थितियों का पता लगाने के लिए स्क्रीनिंग के इर्द-गिर्द है। अनुवांशिक परीक्षण जैसे विकल्पों के माध्यम से इन बीमारियों के जोखिम कारकों को समझना संभव है।
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लगभग 80ः दुर्लभ रोग आनुवंशिक होते हैं। ऐसे कई परिवार हैं जिनमें एक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित एक से अधिक बच्चे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बारे में कोई शिक्षा नहीं दी गई है कि यदि एक बच्चा प्रभावित होता हैए तो निदान अगले बच्चे के जन्म से पूर्व में होना चाहिए। इसका परिणाम परिवार और स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़े पैमाने पर बोझ की तरह है। इन महत्वपूर्ण पहलुओं में से कुछ पर जागरूकता बढ़ाने से शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी और साथ ही लगभग 35ः शिशुओं की मृत्यु 1 वर्ष के होने से पहले ही हो जाती है। हालांकिए ऐसे देश में जहां आनुवांशिक परीक्षण में बहुत सारी सामाजिक वर्जनाएं हैंए ऐसे में लोगों को परीक्षण के लिए प्रोत्साहित करना एक चुनौती भी है। ऐसा टियर 2 और 3 शहरों में ज्यादा है।
हाल ही में शुरू हुई जीनोम अनुक्रमण परियोजना भी आशा की एक किरण के रूप में उभरी हैए जिसमें संभव है कि उत्परिवर्तन से गुजरने वाले जीन को इंगित करना और सटीक चिकित्सा के माध्यम से इसका इलाज करना संभव हो सके। दुर्लभ बीमारियों पर भी अब ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। इसके लिए रोगी संगठनों और स्वास्थ्य संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर दुर्लभ बीमारियों पर नजर के साथ.साथ सरकार की राष्ट्रीय नीति के लिए धन्यवाद देना चाहिए।
इन प्रयासों ने दुर्लभ बीमारियों वाले रोगियों की पीड़ा और उस तात्कालिकता को उजागर किया है जिसके साथ देश में दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। हालांकिए नीति में इन शर्तों की एक निश्चित श्रेणी के लिए उपचार देने का उल्लेख किया गया हैए जो कि 15 लाख रुपए पर कैप किया गया हैए ऐसी स्थिति में अन्य दुर्लभ बीमारियों पर भी ध्यान देना अनिवार्य है। नीति को सबसे कुशल तरीके से लागू किया जाना चाहिए ताकि यह यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिक से अधिक लोग समझ सकें कि क्या वे किस स्थिति के जोखिम में हैं और शुरुआत में ही उनमें किसी भी स्थिति के लक्षण समझने की जागरूकता रहे। इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि निदान में देरी नहीं होगी और उपचार भी सही समय पर हो सकेगा।
अनुमान बताते हैं कि जन्म पूर्व जांच और निदान का बाजार 2024 की शुरुआत में काफी बढ़ जाएगा। टियर 1 और 2 भारतीय शहरों में आज उपलब्ध कुछ प्रमुख तकनीकों में अल्ट्रासोनोग्राफी और मैटरनल सीरम स्क्रीनय सेलेक्ट ट्राइसॉमी या नॉन इनवेसिव प्रीनेटल परीक्षण, एनआईपीटीद के लिए रक्त परीक्षण शामिल हैं। एनआईपीटी पहले से ही एक अत्यधिक लोकप्रिय तकनीक के रूप में उभर रहा है क्योंकि यह अधिक सुरक्षितएतेज और साथ ही अधिक विश्वसनीय भी है।
देश में प्रमुख आईवीएफ केंद्रों में प्री.इम्प्लांट जेनेटिक डायग्नोसिस, पीजीडी जैसे अन्य नॉन इनवेसिव प्रीनेटल परीक्षण विधियों को भी शामिल किया गया है। वे आरोपण से पहले मानव भ्रूण से कोशिकाओं के नमूने लेने में मदद करती हैं। एक और परीक्षण जो कि चर्चा में है उसे न्यूक्लल स्कैन या अल्ट्रासाउंड डिटेक्शन कहा जाता है। गर्भावस्था के पहले और दूसरे चरण में यह विधि डाउन सिंड्रोम के उच्च जोखिमों की पहचान करने में मदद करती है।
दुर्लभ बीमारियों वाले रोगीए कई बार अपनी स्थिति के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं। जब उनका निदान किया जाता हैए तो वे स्वाभाविक रूप से अलग और असहाय महसूस करते हैं। इस स्थिति में परिणाम भावनात्मकए मनोवैज्ञानिक और वित्तीय प्रभाव के रूप में सामने आते हैं। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए एक बहु.हितधारक साझेदारी की आवश्यकता है कि दुर्लभ बीमारियों वाले रोगियों को उपचार के साथ.साथ सूचना का अधिकार भी है।