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Home / Hindi / Health News / निजी अस्पतालों में खाली रह जाते हैं गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तर

निजी अस्पतालों में खाली रह जाते हैं गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तर

आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का इलाज करना निजी अस्‍पतालों की भी है जिम्‍मेदारी।

By: Editorial Team   | | Published: August 14, 2018 5:17 pm
Tags: bad health facility  health facility to poor  Private hospitals  
private-hospital-help-poor

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बिहार की राजधानी पटना में राशन की दुकान में काम करने वाले रामबाबू (27) को जब बताया गया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है तो उनको लगा जैसे उनके ऊपर विपत्ति का आसमान टूट पड़ा है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज करवाने के लिए वह घर से एक हजार किलोमीटर दूर दिल्ली आए। लेकिन यहां आकर उनकी तकलीफ और बढ़ गई, क्योंकि एम्स में इलाज के लिए उनका नंबर छह महीने बाद ही आने वाला था। Also Read - मप्र सरकार कर रही 'राइट टु हेल्थ' पर विचार

निजी अस्पताल में इलाज करवाना उनके बस की बात नहीं थी और एम्स में इलाज के लिए छह महीने का इंतजार, मगर मर्ज ऐसा कि इंतजार करने वाला नहीं था। निराशा की इस घड़ी में उम्मीद की किरण बनकर उनकी जिंदगी बचाने आया एक वकील।

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ऐसे मिली मदद

वकील अशोक अग्रवाल ने रामबाबू को बताया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों का निजी अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज हो सकता है। सरकारी जमीन पर बने निजी अस्पतालों में गरीबों का मुफ्त इलाज करने की नीति बनाई गई है।

अग्रवाल रामबाबू को लकर दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स हॉस्पिटल गए और उन्होंने वहां उनको भर्ती करवाया। रामबाबू का मैक्स हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है।

रामबाबू के भाई श्यामबाबू (35) ने बताया, “उनको चौबीस घंटे सिर में असह्य पीड़ा रहती थी। पटना में डॉक्टर ने दिल्ली ले जाने की सलाह दी। हम उनको लेकर 18 जुलाई को एम्स पहुंचे।”

उन्होंने बताया, “एम्स में ऑपरेशन के लिए दिसंबर की तारीख मिली, लेकिन उनकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी। उनको जो कुछ भी खाने को दिया जाता था, उसे वह फेंक देते थे। उनको तत्काल इलाज की जरूरत थी।”

जान-पहचान के एक व्यक्ति ने अशोक अग्रवाल से बात करने की सलाह दी, जिन्होंने मैक्स हॉस्पिटल में हमारे मरीज के लिए कैंसर विभाग में एक बिस्तर की व्यवस्था करवाई।

अग्रवाल ने बताया कि रामबाबू जैसे हजारों मरीजों को ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए निजी अस्पतालों में आरक्षित 10 फीसदी बिस्तर के प्रावधान का लाभ मिला है।

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और भी हैं मामले

चार साल पहले अग्रवाल को पता चला कि दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में एक घर में सिलिंडर फटने से लगी आग में पूरा परिवार प्रभावित हुआ। छोटी-छोटी तीन बच्चियां बुरी तरह झुलस गई थीं और उनके पिता की टांगों में पट्टियां बंधी थीं।

अग्रवाल ने उनको गंगाराम अस्पताल भेजा, जहां उनकी प्लास्टिक सर्जरी हुई। उनके पिता की टांग इस कदर प्रभावित हो गई थी कि उसे काटने के सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं था।

अग्रवाल ने बताया, “कोई दर्जन भर ऐसे मामले मुझे देखने को मिले, जिनमें पीड़ित व्यक्ति इलाज का खर्च वहन करने से असमर्थ थे। उनको ऐसे निजी अस्पतालों में भेजा गया, जहां सरकार की नीति के अनुसार चैरिटी बेड (खैराती विस्तर) की व्यवस्था की गई है।”

अग्रवाल अपने तीस हजारी अदालत परिसर स्थित चैंबर में हर शनिवार इलाज के लिए मदद चाहने वाले गरीबों से मिलते हैं। वह उनसे एक इकरारनामा करवाते हैं कि मरीज ईडब्ल्यूएस श्रेणी से आते हैं और महंगा इलाज का खर्च वहन करने से लाचार हैं।

ये है व्‍यवस्‍था

केंद्र सरकार ने लोगों को कम खर्च पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाने के मकसद से 1949 में ही निजी अस्पताल और स्कूल खोलने के लिए काफी रियायती दरों पर जमीन का आवंटन करने का फैसला किया। लेकिन निजी अस्पतालों में अत्यंत निर्धन वर्ग के लोगों का इलाज नहीं हो रहा था, इसलिए अग्रवाल ने 2002 में अदालत में एक याचिका दायर की। याचिका में उन्होंने कहा कि जिन अस्पतालों को जमीन आवंटन के पत्र में 70 फीसदी तक बिस्तर आरक्षित करने को कहा गया है, उन अस्पतालों में भी इसका अनुपालन नहीं हो रहा है।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2007 में अपने एक आदेश में कहा कि गरीबों के लिए आरक्षित बिस्तरों से लाभ अर्जित करने पर अस्पतालों पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। दिल्ली सरकार ने 2012 में अस्पतालों को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का अनुपालन करने का आदेश दिया, जिसके तहत अस्पतालों को गरीबों के लिए 10 फीसदी बिस्तर आरक्षित रखने और उन बिस्तरों पर भर्ती मरीजों के लिए मुफ्त दवाई व जांच की सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ ओपीडी (बहिरंग) मरीजों में से 25 फीसदी गरीब वर्ग मरीजों को मुफ्त सलाह की सुविधा देने का प्रावधान किया गया है।

नहीं है जागरुकता

जागरूकता के अभाव में गरीब वर्ग के मरीज अपने अधिकार के बारे में नहीं जानते हैं और वे निजी अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं। कई अस्पतालों में उनके लिए आरक्षित बिस्तर खाली पड़े रहते हैं।

समाज के गरीब वर्ग के लोगों में जागरूकता लाने के लिए अग्रवाल का साथ दे रहे ओबराय होटल समूह के अध्यक्ष कपिल चोपड़ा ने उनके लिए किए गए प्रावधानों की एक ऑडियो रिकॉर्डिग करवाई है, जिसे व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से प्रचारित किया जा रहा है।

ओबरॉय अपने वेब पोर्टल के माध्यम से भी निजी अस्पतालों में गरीबों के इलाज के लिए किए गए प्रावधानों को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं। उन्होंने चैरिटीबेड्स डॉट कॉम नामक एक वेबसाइट शुरू की है, जिसपर दिल्ली-एनसीआर में रोजाना गरीब मरीजों के लिए निजी अस्पतालों में उपलब्ध 650 बिस्तरों की जानकारी दी जाती है।

ऐसे करते हैं मदद

चोपड़ा ने कहा, “हमें जब कोई कॉल करते हैं तो हम मरीजों की मदद करते हैं। हम सरकारी अस्पताल जाते हैं और मरीजों को वहां से उठाकर उन्हें सीधे निजी अस्पतालों में पहुंचाते हैं। हम उन्हीं मरीजों की मदद करते हैं, जो निर्धनता रेखा के नीचे यानी बीपीएल श्रेणी में आते हैं।” अग्रवाल ने कहा, “आखिरकार, मैं कह सकता हूं कि तकरीबन 85 से 90 फीसदी चैरिटी बेड का उपयोग अब होने लगा है।”

(इनपुट: आईएएनएस)

चित्रस्रोत: Shutterstock.

Published : August 14, 2018 5:17 pm
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