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Home / Hindi / Health News / क्या ‘पहरेदार पिया की’ की कहानी बच्चों पर बुरा असर डालेगी?

क्या ‘पहरेदार पिया की’ की कहानी बच्चों पर बुरा असर डालेगी?

क्या एंटरटेनमेंट के नाम पर छला जा रहे हैं हमें।

By: Sadhna Tiwari   | | Published: August 11, 2017 4:22 pm
Tags: Children's behaviour  Kids  Talking sex with kids  Television  
Pehredaar Piya ki Hindi

इन दिनों जो हिंदी टीवी सीरियल सुर्खियां बटोर रहा है उसके बारे में शायद आपने भी सुना ही होगा। बात हो रही है सीरियल ‘पहरेदार पिया की’,की। जब टीवी पर इस सीरियल के प्रोमो दिखाना शुरु किया गया, तभी से लोग यह बातें करने लगें कि आखिर इस सीरियल के निर्माता दिखाना क्या चाहते हैं। Also Read - Parenting Tip: लॉकडाउन में बच्चों को बनाए आत्मनिर्भर, उन्हें सिखाएं ये छोटे-मोटे काम

खैर सीरियल शुरु हुआ और पहला एपिसोड देखने के बाद अभिनेता करन वाही ने सोशल मीडिया पर इस कार्यक्रम के विषय और कहानी पर आपत्ति जतायी और लोगों की दुविधा एक विवाद में बदल गयी। अब हर तरफ इस सीरियल की थू-थू हो रही है और बात इतनी बढ़ गयी कि इस सीरियल को बंद करवाने के लिए एक ऑनलाइन पीटिशन भी शुरु कर दिया गया है। Also Read - Parenting Tips: बंद हो गए हैं स्कूल तो करें होम स्कूलिंग, जनता कर्फ्यू के दौरान बच्चों को यूं करें पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित



अब बात उठती है कि आखिर इस सीरियल की कहानी में ऐसा क्या दिखाया जा रहा है, जिसपर हंगामा हो रहा है? दरअसल, यह सीरियल कहानी है दिया की जिसकी उम्र है 18 साल जिसकी शादी 9 साल के रतन के साथ हो जाती है। अब चूंकि ये दोनों ही किरदार 2 अलग-अलग रजवाड़ों के राजकुमार और राजकुमारी हैं इसीलिए यहां राजपरिवार की परम्पराओं और उसूलों की दुहाई बार-बार दी जा रही है। रतन के पिता ने दिया की जान बचायी थी और इसीलिए मरने से पहले वे दिया से रतन की सुरक्षा का वादा लेते हैं इसीलिए एक आदर्श सीरियलवाली बहू बनकर दिया रतन की अंगरक्षक और पहरेदार बनने के लिए अपने मां-बाप की मर्ज़ी के खिलाफ रतन से शादी कर लेती है। Also Read - Parenting Tips: क्या आपका बच्चा चिड़चिड़ा और गुस्सैल बनता जा रहा है? उसके नखरे कंट्रोल करने के लिए आज़माएं ये 5 पैरेंटिग टिप्स

चूंकि दिया 18 साल की है और बालिग होने के नाते अपनी शादी का फैसला खुद ले सकती है। साथ ही सीरियल की कहानी यह साबित करने की कोशिश करती है कि वह एक साहसी और बहादुर राजपूत लड़की है जो एक छोटे से मासूम लड़के की रक्षा करने के लिए सबकुछ कर सकती है। खैर हमने भी सुन रखा है कि किसी जमाने में कुछ समुदायों में खुद से बहुत बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ छोटे लड़कों की शादी कराने की परम्परा रही है, तो वहीं अब लड़के खुद से बड़ी उम्र की महिलाओं के साथ शादी कर रहे हैं। इन दोनों के बातों के आधार पर यह तर्क दिया  जा सकता है कि ज़रूरी नहीं कि लड़के की शादी खुद से कम उम्र की लड़की से ही हो। लेकिन यह बात तब ज़रूर मायने  रखती, जब कहानी की नायिका दिया की तरह रतन भी शादी की कानूनी उम्र तक पहुंच चुका होता।

इस कहानी की नायिका दिया को मुख्य किरदार बनाकर सीरियल को थोड़ा ‘फेमिनिस्ट’ बनाने की भी कोशिश की गयी है। लेकिन ‘नारी शक्ति जिंदाबाद’ का नाटकीय नारा दोहरानेवाले इस सीरियल के निर्माता यह समझ क्यों नहीं कर सके कि एक लड़की बिना पत्नि बने भी किसी छोटे-बच्चे की देखभाल कर सकती है। क्या वो दिया के किरदार को एक मजबूत और बुद्धिमान लड़की की तरह नहीं दिखा सकते थे, जो पुरानी परम्पराओं के नाम पर खुद के भविष्य को खतरे में डालने की कभी नहीं सोचती। अपने माता-पिता की इच्छा और उनके अनुभव को भी थोड़ी अहमियत दे सकती थी, उन्हें उस बच्चे को गोद लेने की सलाह दे सकती थी या फिर बच्चे को सुरक्षित रखने के लिए कुछ सालों के लिए उसे विदेश भी तो भेजा जा सकता था।

सीरियल का दूसरा किरदार रतन, एक राजकुमार है जिसके मां-बाप को पैसे के लिए अपना महल होटेल में कन्वर्ट करने में झिझक नहीं हुई। लेकिन 2017 के दौर में भी संतान को भगवान का ‘वरदान’ मानते हैं। रतन-सा एक लाड़-प्यार से पला बेटा है, जिसे अपने लड़के होने से जुड़ी सारी ग़लत आदतें पता हैं। वह स्कूल तो जाता है लेकिन अपनी काकी-मांसा से परियों की कहानी सुनकर वह परिकथाओं को ही सबकुछ मानता है। दिया को देखते ही वह उसे परी मान बैठता हो और हमें जबरन यकीन करने के लिए मज़बूर किया जा सकता है कि एक 9 साल का बच्चा खुद से बड़ी एक लड़की पर फिदा हो सकता है, उसका पीछा कर सकता है और छुप-छुपकर उसकी तस्वीरें खींच सकता है। क्या कोई बताएगा क्यों? मैं तो आजतक समझ नहीं पायी कि ‘बचपन का प्यार’  होता भी है, लेकिन यह सीरियल ज़रूर समझाने की कोशिश कर रहा है कि ‘पहली नज़र वाला प्यार’ बचपन में ही हो जाता है। ज़ाहिर है यह बच्चों को पढ़ने-लिखने की बजाय लड़की पटाना सीखने के लिए भी उनका हौसला बढ़ाएगा।

खैर इस सीरियल ने सदियों पुरानी परम्पराओं के नाम पर दर्शकों का मनोरंजन करने की कोशिश की लेकिन अफसोस की वे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी भूल गए। एक 9 साल के  बच्चे की शादी और फिर उसकी सुहागरात दिखाने का क्या मतलब है? हमारे शहरी मकान इतने छोटे होते हैं कि पूरा परिवार एक ही जगह बैठता है, कुछ टीवी देखते हैं और कुछ केवल सुनते हैं, क्योंकि उस समय वे लोग फोन पर चिपके होते हैं। खैर, ग्रामीण इलाकों में घर बड़े होते हैं लेकिन घर में टीवी एक ही होता है जिसपर पूरा परिवार एकसाथ सीरियल्स और फ़िल्में देखता है। कुल मिलाकर सीरियल की दीवानी मम्मी के साथ बच्चों का भी टीवी देखना तय है।

सेक्स एज्युकेशन, वो भी बच्चों को, हमारे लिए एक गूढ़ समस्या रही है। इंटरनेट और फ़िल्मों में दिखाई जानेवाली बातों के बारे में जब बच्चा कोई सवाल पूछता है तो ज़्यादातर मां-बाप समझ नहीं पाते कि उसका जवाब कैसे दिया जाए। सोचिए ज़रा, कि अगर एक बच्चा पूछ बैठे कि सुहागरात क्या होती है या अगर रतन की शादी 9 साल में हो रही है तो मेरी क्यों नहीं?, तो इसका क्या जवाब दिया जा सकता है।

फ़िल्मों और सीरियल की कहानियां लिखनेवाले बार-बार इस बात की दुहाई देेते हैं कि उनकी कहानियों के किरदार समाज के लोगों से ही प्रेरित होते हैं। हमारे आस-पास के लोगों को देखकर ही कहानियां लिखी जाती हैं। लेकिन महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जो कुप्रथाएं (या मज़बूरी) कुछ सौ साल पहले अस्तित्व में थी उन्हें अब टीवी पर दिखाने से क्या हासिल होनेवाला है? कुछ सीरियल्स, किताबें और फ़िल्में समाज को नयी दिशा देने का काम करती हैं। 1990 के दशक में भारतीय टीवी सीरियल्स में एक नया रवैया अपनाया गया, पारिवारिक रिश्तों और भारतीय परम्पराओं की अहमियत समझाने का, और यह पैटर्न कई परिवारों ने इसे अपने बच्चों को टीवी सीरियल्स दिखाना शुरु किया। लेकिन  क्या ‘पहरेदार पिया की’ जैसे टीवी सीरियल्स एक स्वस्थ सोच को प्रोत्साहित कर सकते हैं क्या?

हम, जो अपने बच्चों को लड़का-लड़की एकसमान और औरतों की इज़्जत करना भी ठीक से नहीं सीखा पा रहे, क्या बच्चों को सेक्स और शादी के प्रति एक हेल्दी दृष्टिकोण अपनाने में मदद कर सकते हैं? मैं सभी पैरेंट्स की राय जानना चाहूंगी। आप हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर अपनी राय बताएं।

चित्रस्रोत-The Crew Production.

Published : August 11, 2017 4:22 pm
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