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मदर्स डे (12 मई) के उपलक्ष में कई संगठन, संस्थान तरह-तरह के कैम्पेन का आयोजन करते हैं। ऐसे ही एक गैर-लाभकारी संगठन मिरेकल फाउंडेशन इंडिया ने ‘मदर्स डे’ कैम्पेन शुरू करने की घोषणा की है। इसके तहत बाल कल्याण गृहों में रहने वाले बच्चों के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने में आयाओं को समर्थन दिया जाएगा। इसके साथ ही इस कैम्पेन का उद्देश्य इन बच्चों की जैविक माताओं (Biological mothers) को बदलाव के लिए तैयार करना और उन्हें सशक्त बनाना है ताकि वे अपने बच्चे को परिवार में फिर ला सकें।
यूनिसेफ के अनुसार, दुनिया भर के संस्थानों में 8 मिलियन बच्चे रहते हैं। इनमें से बहुत से बच्चे बाल कल्याण गृहों में रहते हैं लेकिन पौष्टिक भोजन, स्वच्छ पानी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और चिकित्सा देखभाल उन्हें नहीं मिलती। आश्चर्यजनक रूप से इन बच्चों में से 80% के घरों में कोई न कोई परिजन जीवित हैं (यूनिसेफ 2015)। अधिकांश परिवारों के पास यदि देखभाल की व्यवस्थाएं होतीं तो वे अपने बच्चों को बाल कल्याण गृहों में नहीं छोड़ते। इस वजह से यह संगठन अनाथ और संवेदनशील बच्चों के लिए जीवन में आने वाले बदलाव के लिए उन्हें तैयार करने और अंततः बाल कल्याण गृहों में रहने वाले हर बच्चे के लिए एक प्यार-भरा परिवार खोजने की दिशा में काम करता है।
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इस संगठन ने अब तक 7500 से ज्यादा अनाथ और संवेदनशील बच्चों के जीवन में प्रभावशाली परिवर्तन लाया है। इस साल के मदर्स डे कैम्पेन में एक चार-आयामी दृष्टिकोण शामिल हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बाल कल्याण गृहों में आयाओं को हर कदम पर बच्चों के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने के लिए तैयार करें। जब वे बदलाव की तैयारी कर रहे हो तो उन्हें हरसंभव तरीके से बच्चों को फिर उनके जैविक परिवारों से मिलाने की स्थिति में लाने की कोशिश करें। बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयाओं की क्षमताओं का निर्माण करके, उन्हें प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है ताकि बच्चे को अपने परिवार में वापस लाने और लगाव सुनिश्चित करने के लिए तैयार किया जा सके।
प्रशिक्षण के जरिए आया परिवार समूहों के माध्यम से और बाल कल्याण गृहों में रोजमर्रा की गतिविधियों से यह भावना पैदा करने और सुनिश्चित करने में सक्षम होंगी कि बच्चों को प्यार, शिक्षा, स्वास्थ और सुरक्षा का माहौल मिल सके ताकि जब वे किसी परिवार में जाएं तो वहां एडजस्ट करने में उन्हें किसी तरह की दिकक्त न हो।
दूसरी ओर वह जैविक माताएं हैं, जिन्होंने कई वर्षों तक अपने बच्चों को अपने से दूर रखा है, सिर्फ इसलिए कि उनके पास अपने बच्चे की देखभाल के लिए संसाधन नहीं हैं। मदर्स-डे कैम्पेन से जुटाई गई धनराशि का एक हिस्सा काउंसलिंग पर जाएगा और इन जैविक माताओं को अपने बच्चे को घर वापस लेने के लिए तैयार करेगा। उन्हें वह सहायता देगा जिसकी वजह से उन्हें अपने बच्चे को बाल कल्याण गृह के बजाय परिवार के साथ रखने में मदद मिलेगी।
इस संगठन की कंट्री हेड निवेदिता दास गुप्ता ने कहा कि हमारी मदर्स डे की मुहिम बाल कल्याण गृहों की आया और जैविक माताओं दोनों को सशक्त बनाना है, ताकि वे बच्चों की हर जरूरतों को पूरा करने में मदद कर सकें, चाहे वे बच्चे अपने घरों में वापस जाएं या घर से दूर बाल कल्याण गृहों में रह रहे हों।