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एक अध्ययन में पाया गया है कि जो पुरुष बेटी के पिता होते हैं, उनमें महिलाओं के साथ भेदभाव की पारंपरिक सोच होने की संभावना कम होती है। बेटी के स्कूल जाने की उम्र में पहुंचने तक यह संभावना और कम हो जाती है।
ब्रिटेन में 1991 से 2012 के बीच के दो दशकों के एक सर्वेक्षण में कई माता पिता से बात की गई। उनके पूछा गया कि क्या वह पुरुषों के नौकरी करने और महिलाओं के सिर्फ घर संभालने की पारंपरिक सोच का समर्थन करते हैं।
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'लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस' (एलएसई) के शोधार्थियों ने संतान के रूप में बेटी के जन्म के बाद महिलाओं और पुरुषों पर इसके प्रभाव का विश्लेषण किया।
शोधार्थियों ने पाया कि संतान के रूप में बेटी पाने वाले पिताओं की लैंगिक भूमिका के प्रति पारंपरिक सोच रखने की संभावना कम होती है और उसमें भी, जब बेटी स्कूल जाने की उम्र तक पहुंचती है तो पिता में पारंपरिक सोच की संभावना और कम हो जाती है।
शोधार्थियों ने कहा कि वहीं दूसरी ओर, माताओं के पारंपरिक सोच रखने की संभावना शुरू से ही कम होती है। इसका बेटी होने से संबंध बहुत कम है। उसका कारण यह है कि महिलाएं पहले से ही पारंपरिक सोच का सामना स्वयं कर चुकी होती हैं।