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इंडियन कॉउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (IMRC) की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो अब भी भारत में पांच साल से छोटे बच्चों की मौत का एक बड़ा कारण कुपोषण है। 1990-2017 तक के आंकड़ों में हालांकि कुछ सुधार आया है। पर अब भी हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते। अब भी 68.2% बच्चे कुपोषण के कारण पांच साल की उम्र पूरी करने से पहले ही मौत के मुंह में समा जाते हैं।
कुपोषण उस स्थिति को कहा जाता है जब बच्चों की ग्रोथ, उम्र और आवश्यकता के अनुसार उन्हें भोजन नहीं मिल पाता। जिसके चलते उन्हें कई तरह की गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। सही पोषण न मिल पाने के कारण उनका शरीर बीमारियों से लड़ सकने में अक्षम हो जाता है।
छोटे बच्चों में कुपोषण की बड़ी वजह गर्भावस्था में मां को भरपूर पोषण न मिल पाना है। गर्भ के दौरान ही इन बच्चों को जरूरी आहार नहीं मिल पाता। जिससे ये जन्मजात कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। सही पोषण न मिल पाने के कारण 32.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के साथ पैदा होते हैं। उसके बाद भी इनकी निम्न वर्गीय कामकाजी मांएं बच्चों को स्तनपान भी नहीं करवा पातीं।
कुपोषण में त्रिपुरा और नांगालैंड जैसे राज्य तो हैं ही, इनके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य भी शामिल हैं। मध्य प्रदेश, ओडिशा और छत्तीसगढ़ की स्थिति भी इस मामले में बहुत अच्छी नहीं है। इन राज्यों के बच्चे कुपोषण के कारण शारीरिक अपंगता के भी शिकार हो जाते हैं।
कुपोषण के कारण छोटे बच्चों की मौत के मामले में सिर्फ भारत ही शामिल नहीं है, बल्कि दुनिया भर के कई और देश भी इस सूची में शामिल हैं, जहां गरीबी के कारण बच्चों को पूरा पोषण नहीं मिल पा रहा। डब्ल्यूएचओ ने 2030 तक इन देशों से कुपोषण को समाप्त करने के लिए रणनीति बनाने का लक्ष्य रखा है।
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