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अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के अध्ययन में पाया गया है कि कोरोना की पहली व दूसरी लहर के दौरान वयस्कों के मुकाबले किशोरों में लक्षण हल्के होने के साथ मृत्यु दर भी कम थी। एम्स के विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस से संक्रमित 197 लोगों पर यह अध्ययन किया था, जो 12 से 18 वर्ष की आयु के थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
दरअसल, 15 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों के 3 जनवरी 2022 से वैक्सीनेशन शुरू होने के कारण डॉक्टर अस्पताल में भर्ती इन मरीजों के क्लीनिकल प्रोफाइल का अध्ययन करना चाहते थे। एनालिसिस में पता चला कि 84.6% किशोरों में हल्की बीमारी, 9.1% में मध्यम बीमारी और 6.3% में गंभीर बीमारी के लक्षण दिखाई दिए। लोगों में बुखार और खांसी सबसे सामान्य लक्षण थे जिनमें 14.9% मरीजों में यह लक्षण दिखाई दिए। अध्ययन के मुताबिक, 11.5% बच्चों के शरीर में दर्द था, 10.4% बच्चे थके हुए महसूस कर रहे थे और 6.2% बच्चों को सांस लेने में तकलीफ थी।
जबकि, इस अध्ययन की तुलना में एम्स में किए गए एक अन्य अध्ययन के मुताबिक दूसरी लहर के दौरान करीब 50.7% वयस्क को सांस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ा। अध्ययन के मुताबिक 7.3 प्रसिद्ध बच्चों को ऑक्सीजन की आवश्यकता पड़ी 2.8% को हाई फ्लो वाले ऑक्सीजन की जरूरत थी और 2.3% को वेंटीलेशन की आवश्यकता पड़ी। जबकि सिर्फ 24.1% बच्चों को ही स्टेरॉयड और 16.9% बच्चों को रेमेडीसिविर दी गई। एम्स के इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि इस आयु वर्ग में 3.1% मृत्यु दर दर्ज की गई जबकि दूसरी लहर के दौरान उसी अस्पताल में वयस्कों के मामलों में 19.1% मृत्यु दर देखी गई।
एम्स के विशेषज्ञों का कहना है कि किशोरों के क्लीनिकल प्रोफाइल को सामने लाने का प्रयास किया है निश्चित रूप से भारत की ओर से इस तरह का पहला अध्ययन है। अभी तक हम जहां सिर्फ वयस्कों पर ही केंद्रित थे वहीं अब इस अध्ययन से यह तय हो गया कि दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती बच्चे भी काफी गंभीर थे हालांकि वयस्कों की तुलना में उन्हें मृत्यु दर कम थी।
अध्ययन में यह भी देखा गया है कि कैंसर से पीड़ित बच्चों ने कोरोना के विकसित होने की संभावना अधिक थी जबकि अस्थमा डायबिटीज ऐसी बीमारी से पीड़ित बच्चों में इसका जोखिम कम था।