विज्ञान ने मानव को बहुत सारी ऐसी चीजें दी हैं जिससे कि वह अपने हर दिन के काम को आसानी से कर सके। इसके साथ ही विज्ञान से बनी कृत्रिम चीजों के व्यवहार से वे अपने को सुंदर और साफ-सुथरा भी रख सके। लेकिन इन सबसे पर्यावरण को खतरों का सामना करना पड़ जाता है।
उदाहरण के तौर पर प्लास्टिक का बैग सामान को एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाने में सहुलियत तो प्रदान करता है मगर पर्यावरण को इससे खतरा हो जाता है। जिस प्रकार बिना टूथपेस्ट के हम दाँत को साफ़ रखने की बात सोच नहीं सकते हैं उसी प्रकार बिना साबुन के खुद को साफ भी नहीं रख पाते हैं।पहले यह माना जाता था कि यह सब पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हैं, लेकिन लंदन के एक अध्ययन से यह पता चला है कि पर्यावरण को इससे कोई खतरा नहीं है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक अधिकतर साबुन, शैंपू और डिटर्जेंट से पर्यावरण को कोई खास नुकसान नहीं होता है। ऐसे पदार्थो को वैज्ञानिक शब्दावली में सर्फेक्टेंट कहा जाता है।
वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन में पाया कि जब सर्फेक्टेंट का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाता है और इसको प्रोसेस्ड किया जाता है, तब इससे आस-पास के पर्यावरण को कोई विशेष खतरा नहीं रहता है। डेनमार्क के अरहुस विश्वविद्यालय के सह-वैज्ञानिक हंस सैंडरसन ने इससे संबंधित एक अध्ययन के रिपोर्ट में कहा, ‘इन पदार्थो का निर्माण इस प्रकार से किया जाता है कि इनका विघटन काफी तेजी से होता है। इसलिए इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचता’।
सैंडरसन ने कहा, ‘यह साबुन संबंधी उत्पादों में मौजूद डिटर्जेट पदार्थों या दूसरे शब्दों में निजी देखभाल और सफाई से संबंधित उत्पादों के पर्यावरणीय पहलू पर अब तक का सबसे व्यापक और सबसे निर्णायक रिपोर्ट है’। अध्ययन रिपोर्ट वैज्ञानिक शोध पत्रिका 'क्रिटिकल रिव्यूज इन एनवॉरमेंट साइंस' में प्रकाशित हुई है।
यह अध्ययन हालांकि उत्तर अमेरिका में किया गया है, लेकिन यह पूरी दुनिया पर लागू होता है।
स्रोत: IANS Hindi
चित्र स्रोत: Getty images
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