उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बाल कुपोषण (child malnutrition) की दर कम करने के लिए बांदा जिला प्रशासन और यूनिसेफ ने बुधवार को बाल विकास कार्यक्रम के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। बुधवार को बांदा कलेक्ट्रेट सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में जिला प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी हीरालाल और यूनिसेफ की तरफ से यूपी प्रमुख रूथ लियानो ने संयुक्त बाल विकास कार्यक्रम के सहमति दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं। जिलाधिकारी ने बताया, "जिले में अभी बाल कुपोषण (child malnutrition) 47 फीसदी है, इसे शून्य करने का लक्ष्य रखा गया है।"
उन्होंने आगे कहा, "अभी तक जिला प्रशासन खुद के संसाधनों से लक्ष्य की प्राप्ति में जुटा था, अब नामी-गिरामी संस्था यूनिसेफ की मदद से लक्ष्य प्राप्त करेगा।"
मां के गर्भवती होन के दौरान ही बाल कुपोषण की शुरूआत हो जाती है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में उन महिलाओं की बड़ी संख्या है, ज्रिन्हें गर्भ के दौरान पर्याप्त पोषक आहार, पूरक आहार और आराम नहीं मिल पाता। जिससे जन्म लेने वाला बच्चा गर्भ से ही कुपोषण का शिकार हो जाता है। जीवन के पहले छह महीनों के दौरान कम वजनी बच्चों का प्रतिशत 16 से बढ़कर 30 हो चुका है। पहले दो साल के दौरान मौत के मुख्य कारण अपर्याप्त स्तनपान से भूख, नवजात शिशुओं में संक्रमण, डायरिया (अतिसार) और न्यूमोनिया होते हैं।
इसके समाधान (child malnutrition) के लिए सबसे जरूरी पर्याप्त स्तनपान (ऑप्टिमल ब्रेस्टफीडिंग) है। जन्म के एक घंटे के भीतर नवजात शिशु को स्तनपान शुरू कराना चाहिए और पहले छह महीनों तक उसे सिर्फ स्तनपान कराया जाना चाहिए, यानी केवल स्तनपान। उसके बाद अगले 18 महीनों तक स्तनपान के साथ पर्याप्त मात्रा में घर का बना ठोस आहार देना चाहिए ताकि बड़े होते बच्च की पोषण संबंधी जरूरतें पूरी की जाएं।
सामान्यत: तीन साल से अधिक उम्र के बच्चों को लक्षित किया जाता है। भारत सरकार ने हाल ही में तीन साल स कम उम्र के बच्चों के बारे में सोचना शुरू किया है। जब हम तीन साल से ऊपर के बच्चों की बात करते हैं तो यह मूल रूप से भुखमरी और भोजन के अभाव (child malnutrition) की समस्या होती है। खासतौर से उत्तर भारत के कुछ इलाकों में यह विकराल समस्या है। उत्तर प्रदेश में ही बाल कुपोषण का स्तर 47 फीसदी है।
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