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Home / Hindi / Health News / पिछले 10 साल में दोगुनी हुई सिजेरियन डिलीवरी करानेवाली मांओं की संख्या

पिछले 10 साल में दोगुनी हुई सिजेरियन डिलीवरी करानेवाली मांओं की संख्या

दिल्ली में ऑपरेशन के जरिए पैदा होने वालों बच्चों का प्रतिशत 23.7 है।

By: Editorial Team   | | Updated: January 29, 2018 1:03 pm
Tags: C-section  Child birth  Childbirth  Delivery  Emergency C-section  Labour & delivery  
c-section

पिछले एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुना बढ़ोतरी हुई है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएचएफएस) की तीसरी रिपोर्ट (2005-06) में यह आंकड़ा 8.5 प्रतिशत था जबकि सर्वे की चौथी रिपोर्ट (2015-16) में सिजेरियन (ऑपरेशन) के जरिये 17.2 फीसदी बच्चों का जन्म हुआ। करीब एक दशक में दोगुनी वृद्धि चौंका देने वाली है। Also Read - Post Pregnancy Fitness: प्रेगनेंसी के बाद एक्सरसाइज़ कब करनी चाहिए?

यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक से कहीं ज्यादा है। डब्ल्यूएचओ ने अप्रैल 2015 में एक बयान जारी कर कहा था कि आबादी के हिसाब से सिजेरियन डिलीवरी की दर अगर 10 फीसदी से ज्यादा है तो यह मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने से जुड़ा नहीं है। Also Read - Pregnancy : सीजेरियन डिलीवरी के बाद फिट और हेल्दी होने के टिप्स



देश भर के कई अस्पतालों पर मरीजों के साथ धोखाधड़ी, लापरवाही, जरूरत से ज्यादा बिल और रुपये ऐंठने के मामले सामने आते रहे हैं, ऐसे में एक दशक में सिजेरियन डिलीवरी में दोगुनी वृद्धि कई सवाल पैदा करती है। Also Read - राजस्थान में महिला ने एक साथ 5 बच्चों को दिया जन्म, 1 शिशु की मौत

देश भर में बढ़ रहे इस तरह के ऑपरेशन के मामलों से चिंतित होकर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने भी राज्यसभा में एनएचएफएस की चौथी रिपोर्ट के बारे में अवगत कराया था। स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस आंकड़े की गंभीरता को समझते हुए राज्यों को दिशा-निर्देश भी जारी किया था।

रिपोर्ट के मुताबिक देश भर के राज्यों में ऑपरेशन के जरिए होने वाले बच्चों का प्रतिशत भी चिंताजनक है, सबसे ज्यादा हालात आंध्र प्रदेश में खराब हैं, जहां ऑपरेशन के जरिए 40.1 फीसदी बच्चे पैदा हुए। इसके बाद लक्षद्वीप में 37.1, केरल 35.8, तमिलनाडु 34.1, पुडुचेरी 33.6, जम्मू एवं कश्मीर 33.1 और गोवा में 31.4 फीसदी बच्चे ऑपरेशन के जरिए पैदा हुए हैं।

वहीं दिल्ली में ऑपरेशन के जरिए पैदा होने वालों बच्चों का प्रतिशत 23.7 है। देश के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत 9.4 है। वहीं सबसे कम प्रतिशत नगालैंड में हैं जहां 5.8 फीसदी बच्चे ऑपरेशन के माध्यम से पैदा होते हैं।

नेशनल सैंपल सर्वे (2014) के मुताबिक देशभर में 72 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 79 प्रतिशत आबादी निजी अस्पतालों में इलाज कराते हैं और सरकारी अस्पताल के मुकाबले उन्हें इलाज पर चार गुना ज्यादा खर्च करना पड़ता है।

सिजेरियन डिलीवरी इस कदर तेजी से क्यों बढ़ रही है इस मुद्दे पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष व प्रख्यात चिकित्सक के.के. अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा, “देश के अलग अलग हिस्सों में सामान्य रूप से और ऑपरेशन के जरिए पैदा होने वाले बच्चों का अंतर अस्पताल में गर्भावस्था में पहुंची मां पर निर्भर करता है। अगर मां अस्पताल में देरी से पहुंचती है तो फिर चिकित्सकों के पास ऑपरेशन करना पहला विकल्प रहता है क्योंकि उन्हें बच्चे को बचाना होता है।”

उन्होंने बताया, “आज के मुकाबले पहले की तुलना में चिकित्सक जोखिम लेने से डरते हैं क्योंकि हालात पहले की तरह अनुकूल नहीं रहे। पहले चिकित्सक मां के देरी से आने के बाद भी जोखिम लेकर सामान्य तरह से बच्चे को बचाने की कोशिश करते थे लेकिन बदलते हालातों में यह संभव नहीं है।”

अस्पतालों में अनाप-शनाप बिल बनाने का मुद्दा उठाने वाले मोटिवेशनल स्पीकर और बिजनेस गुरु डॉ. विवेक बिंद्रा ने आईएएनएस से कहा, “डॉक्टरी बहुत ही प्रतिष्ठित पेशा है लेकिन मुनाफा कमाने की होड़ ने इसे दागदार बना दिया है। इतनी बड़ी आबादी वाले देश में जहां मरीजों की कमी नहीं है वहां डॉक्टर ज्यादा से ज्यादा मरीजों का इलाज कर अपना मुनाफा आसानी से कमा सकते हैं। लेकिन सिजेरियन के मामलों में आई वृद्धि मुनाफाखोरी का ही संकेत देती है।”

बिंद्रा ने कहा, “देश में आठ लाख चिकित्सकों के बावजूद हमारा देश स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में 195 देशों की सूची में 154वें स्थान पर है, यह चिंता का विषय है और इस पर विचार किए जाने की जरूरत है।”

अस्पतालों में अनाप शनाप बिलों के मुद्दे पर आईएमए के पूर्व अध्यक्ष ने कहा, “अस्पताल कभी भी गलत बिल नहीं वसूलते वह दवाइयों पर छपे एमआरपी और अपने चार्ज लेते हैं। इसमें सरकार को आगे आना चाहिए और एमआरपी पर उनसे बात करनी चाहिए। एक दवाई पर प्रिंट 150 रुपये है तो वह 150 ही वसूलेंगे। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह अस्पतालों के प्रशासनों के साथ बैठें और उनसे इस मामले पर बातचीत करे।”

स्रोत-IANS Hindi.

चित्रस्रोत-Shutterstock.

Published : January 28, 2018 1:56 pm | Updated:January 29, 2018 1:03 pm
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