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Home / Hindi / Health News / एक महीने के शिशु को मिला जीवनदान, 30 मिनट तक रुकी रही थीं सांसें

एक महीने के शिशु को मिला जीवनदान, 30 मिनट तक रुकी रही थीं सांसें

पुणे के मदरहूड हॉस्‍पिटल के डॉक्टरों के प्रयासों से हुआ यह चमत्कार।

By: Sadhna Tiwari   | | Published: August 21, 2018 5:54 pm
Tags: CPR  Infant health  Pune  SIDS  
SIDS baby

30 दिन का शिशु शिवांश जब जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था और उसका बदन नीला और ठंडा पड़ गया था, उसके पिता जो रात में अभी अपने ऑफिस से लौटे थे, उन्‍होंने बच्‍चे को देखा और वक्‍त बर्बाद किये बिना कार्डियोपलमोनरी रीससाइटेशन (सीपीआर) देना शुरू कर दिया और मदरहूड अस्‍पताल पहुंचने तक मुंह से उसके मुंह में सांस पहुंचाते रहे। बच्‍चे के पिता श्री स्नेहशंकर द्वारा उपयोग किए गए सीपीआर स्‍किल ने बच्चे को स्थिर स्थिति में अस्पताल पहुंचने में मदद की। डॉ तुषार पारिख, जो  पेडियाट्रिक्‍स और नियोनेटोलॉजी विभाग के प्रमुख हैं, के नेतृत्व में डॉ मुबाशिर शाह, कंसल्टेंट नियोनैटोलॉजिस्ट और डॉ सचिन भिसे, कंसल्‍टेंट पेडियाट्रिशियन ने मिलकर उस बच्‍चे को “नीयर मिस”, जिसे सडन इन्फंट डेथ सिंड्रोम (एसआईडीएस) से बचाया जिसे अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम कहा जाता है। Also Read - गर्भावस्था में धूम्रपान करने से बढ़ जाता है शिशु में फ्रैक्चर का खतरा

मदरहूड हॉस्‍पिटल के सलाहकार नियोनैटोलॉजिस्ट डॉ. मुबाशिर शाह ने कहा, “एक महीने के उस शिशु को उसके माता-पिता मदरहूड अस्पताल के आपातकालीन कमरे में जिस समय लेकर आये, उस समय रात के 3 बज रहे थे। हमने देखा कि उसके बच्‍चे का शरीर का नीला हो गया और वह सांस नहीं ले पा रहा है, उसकी हृदय की गति भी बहुत धीमी थी और नाड़ी बहुत कमजोर चल रही थी। हार्ट रक्‍त को पंप करे, इसके लिए बच्‍चे की छाती पर दबाव देने के साथ ही उसे सांस लेने में मदद करने के तत्काल उपाय शुरू कर दिये गये। इसका उसपर अच्‍छा प्रभाव पड़ा और उसे सांस लेने में मदद पहुंचान के लिए फौरन वेंटिलेटर पर रखा गया और दवाओं के जरिए भी सहयोग दिया जाने लगा ताकि उसकी कार्डियोवैस्कुलर प्रणाली और रक्तचाप में सुधार आये। ” Also Read - CPR Technique : क्या है सीपीआर तकनीक, कार्डियक अरेस्ट होने पर कैसे देना चाहिए मरीज को सीपीआर



“बच्‍चे के पिता श्री स्नेहशंकर झा ने बताया कि रात के 1 बजे जब वो ऑफिस से लौटे तो बच्चा सांस नहीं ले रहा था। माता-पिता ने उसे बहुत जगाने की कोशिश की, लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उसका शरीर नीला और ठंडा पड़ गया था। उन्होंने घर पर ही उसे मुंह से मुंह लगाकर सांस देना शुरू कर दिया और इस क्रम को मदरहूड अस्‍पताल पहुंचने तक रास्‍ते में भी जारी रखा। इसके अलावा उस बच्‍चे को पहले कोई तकलीफ नहीं थी। ना तो उसे बुखार, था, ना सांस लेने में कठिनाई हो रही थी, ऐसा भी नहीं था कि उसकी सांसें तेज चल रही थीं और ना ही वो जानलेवा स्थिति आने से पहले उसे उल्‍टी हुई थी। बस एक ही बात थी कि वह पुणे के एक अस्‍पताल समय से पहले पैदा हुआ था और उसका वजन भी कम था।” डॉ. शाह ने बताया। Also Read - पड़ोसियों के सीपीआर एडमिनिस्ट्रेशन की मदद से कार्डियक अरेस्ट के मरीज को मिला नया जीवन

मदरहूड हॉस्‍पिटल के पेडियाट्रिक्‍स और नियोनेटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. तुषार पारिख ने कहा “सारा श्रेय उस बच्चे के पिता को जाता है, जिन्होंने साहस के साथ ऐन वक्‍त पर सही निर्णय लिया और सांस लेने के लिए संघर्ष कर रहे अपने बच्‍चे को सीपीआर देते हुए अस्‍पताल तक स्‍थिर स्‍थिति में पहुंचाया। उसके बाद, मेडिकल टीम ने इस चुनौतीपूर्ण मामले को अपने हाथ में लिया। हाइपोक्सिक (ऑक्सीजन की कमी) के कारण दिल की विफलता, रक्‍त स्राव, गुर्दे को क्षति, सांस लेने में दिक्‍कत जैसी स्‍थितियां पेश आती हैं, जैसा कि इस बच्चे में भी देखा गया है।” सडन इन्फंट सिंड्रोम (एसआईडीएस) एक ऐसी स्थिति होती है, जहां बच्‍चे बिना किसी कारण के मौत के मुंह में पहुंच जाते हैं। हमें इस बच्‍चे में भी ‘नीयर मिस’ सडन इन्फंट डेथ सिंड्रोम का संदेह था, लेकिन डॉक्टरों की हमारी टीम ने कुशलता के साथ उपयुक्त एवं सही समय पर मैनेज करके इस बच्चे को बचा लिया।”

डॉ. परीख आगे सलाह देते हैं कि सडन इन्फंट डेथ सिंड्रोम की घटनाओं में कमी लाने के लिए बच्चों को हमेशा पीठ के बल ही सुलाना चाहिए, पेट के बल या करवट नहीं। माता-पिता  शराब पीने से माता-पिता द्वारा किये जाने वाले धूम्रपान का भी इस सिंड्रोम से संबंध है। हालांकि इस मामले में इस तरह का कोई जोखिम कारक नहीं था। इसके अलावा, शिशु को स्तनपान भी इस सिंड्रोम से सुरक्षा दिलाने का काम करता है।

बच्‍चे का इलाज मदरहूड अस्पताल के हाई-टेक लेवल 3 नियोनेटाल आईसीयू में किया गया था। प्रवेश के 8 घंटे बाद, बच्चे में दौरे देखे गये और उसे एंटी-कंवल्‍सेंट दवाओं के जरिए मैनेज किया गया। 3 दिनों के बाद उसे वेंटिलेटर सपोर्ट से हटा लिया गया और अगले 2 दिनों तक उसे नॉन-इंवेसिव वेंटिलेशन के साथ मैनेज किया गया। उसकी पौष्टिक आवश्यकताओं की पूर्ति प्रारंभ में इंट्रावेनस डेक्‍सट्रोज से की गयी और ट्यूब फीडिंग अस्‍पताल में भर्ती होने के तीन दिन बाद तब शुरू की गयी, जब उसका रक्‍त चाप और हृदय गति दोनों स्‍थिर हो गये। उसे मुंह के द्वारा चूसकर और निगलकर फीडिंग कराने की इजाजत अस्‍पताल में भर्ती के 5 वें दिन दी गयी।

मदरहूड अस्पताल के परामर्शदाता बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सचिन भिसे कहते हैं, “ऐसे बच्‍चों को की ग्रोथ और उनके डेवलपमेंट पर नजर रखने के लिए लंबे समय तक डॉक्‍टर का परामर्श लिया जाना चाहिए।”

बच्चे के पिता श्री स्नेहशंकर झा ने कहा, “यह मदरहूड के डॉक्‍टरों और कर्मचारियों ने एक चमत्कार ही कर दिखाया है। डॉक्टर के सकारात्मक दृष्टिकोण और सहानुभूति ने हमारे बच्‍चे को बचा लिया। वे हमें हमारे बच्चे में होने वाले सुधार के प्रति वाकिफ कराते रहे। मदरहूड अस्‍पताल के डॉक्‍टरों ने मेरे बच्‍चे को नया जीवन दिया। इसके लिए तहेदिल से हम उनको शुक्रिया अदा करते हैं।”

“मदरहूड अस्पताल में  हमारे पास स्तरीय बुनियादी ढांचा उपलबध है, जिसमें लेवल थ्री नियोनेटाल आईसीयू, बेहतरीन नियोनेटाल व पेडियाट्रिक टीम और किसी भी आपातकालीन स्‍थिति से निपटने के लिए आधुनिक गुणवत्‍ता वाले उपकरण भी उपलब्‍ध हैं। उच्‍च रक्‍तचाप, डायबिटीज, समय से पहले लेबरपेन, नवजातों में सर्जिकल प्रॉब्‍लेम्‍स जैसी जटिल जोखिम वाली प्रीग्‍नेंसी को मदरहूड हॉस्‍पिटल के वरिष्ठ और बेहतरीन योग्यताप्राप्त गायकेनोलॉजिस्‍ट्स और ऑब्‍सट्रेशियंस की टीम द्वारा प्रभावी ढंग से मैनेज किया जा सकता है,” मदरहूड हॉस्‍पिटल के फैसिलिटी डायरेक्‍टर  डॉ कृष्ण मेहता ने कहा।

चित्र स्रोत:Press Release.

Published : August 21, 2018 5:54 pm
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