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सेहततमंद व स्वस्थ्य ज़िंदगी जीने के लिए शरीर में पलने वाले जीवाणुओं का सबसे बड़ा रोल होता है। बच्चे जब पैदा होते हैं उसके कुछ हफ्तों बाद ही यह तय हो जाता है कि बच्चा कितना सेहतमंद रहने वाला है।
क्वडरम इंस्टीट्यूट ऑफ बायोसाइंस की माइक्रोबोयोम के रिसर्च प्रमुख लिंडसे का कहना है कि बच्चा जब पैदा होता है तो उसका सबसे पहला संपर्क बच्चेदानी से निकलने वाले पानी से होता है। बच्चेदानी के पानी में बहुत ज्यादा मात्रा में बैक्टीरिया पाये जाते हैं। ये बैक्टीरिया बच्चे की सेहत के लिए बहुत जरूरी होते हैं। सामान्य तरीके से पैदा होने वाले बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों की तुलना में बहुत ज्यादा होती है। क्या है बेहतर, नॉर्मल डिलीवरी या सिजेरियन ?
बच्चे के पेट का सिस्टम
ऑपरेशन से पैदा बच्चे तमाम ज़रूरी माइक्रोबायोम हवा या त्वचा से लेते हैं और कुछ को उनका शरीर ख़ुद पैदा करता है।
जबकि क़ुदरती तौर पर पैदा बच्चों की बड़ी आंत में मां के पेट से मिले ज़रूरी बैक्टीरिया और माइक्रोबायोम मौजूद होते हैं।
हाल की रिसर्च बताती हैं कि अगर शुरुआत में ही बच्चे के पेट का सिस्टम गड़बड़ हो गया तो उसे जीवन भर इसका भुगतान भरना पड़ता है।
सीजेरियन डिलीवरी के बाद क्या-क्या होता है ?
रिसर्च में ये भी पाया गया है कि ऑपरेशन से पैदा बच्चों में तमाम तरह की एलर्जी का शिकार होने की क्षमता ज़्यादा होती है।
साथ ही वो हरेक तरह के इको-सिस्टम में ख़ुद को आसानी से ढाल नहीं पाते और जल्दी-जल्दी बीमार हो जाते हैं।
बाइफ़िडोबैक्टीरियम बच्चों की सेहत से जुड़ा कई तरह के बैक्टीरिया का ग्रप है जो उनकी बड़ी आंत में पाया जाता है।
बच्चेदानी के पानी में पाये जाने वाले बैक्टीरिया बच्चे की सेहत के लिए क्यों जरूरी होते हैं ?
कीटाणुओं से लड़ने में सक्षम
ये बैक्टीरिया बच्चे का पेट साफ़ रखने में मददगार होते हैं. मां के दूध में बाइफ़िडोबैक्टीरियम बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं।
जबकि, फ़ॉर्मूला बेस्ड या डिब्बाबंद दूध पीने वाले बच्चों में ये नहीं होते, इसीलिए मां का दूध बच्चे के लिए बहुत ज़रूरी है।
वैज्ञानिक सेहतमंद आंत के माइक्रोबायोम को दूसरे लोगों में ट्रांसप्लांट से इलाज करने की कोशिश कर रहे हैं।
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माना जा रहा है कि ऐसा करने से नई तरह के बहुत से माइक्रोबायोम पैदा किये जा सकेंगे, जो शरीर में ही मौजूद ख़राब कीटाणुओं से लड़ने में सक्षम होंगे।
इसमें कोई शक नहीं कि एंटी-बायोटिक्स आंत के माइक्रोबायोटा को बदल देती हैं।
आंत में ऐसे अनगिनत फ़ायदा पहुंचाने वाले बैक्टीरिया होते हैं, जो बीमारी देने वाले कीटाणुओं के संपर्क में आकर कई तरह के इन्फ़ेक्शन पैदा कर सकते हैं।
दिमाग़ का सही विकास
इन्हें एंटीबायोटिक के असर से बचाने के लिए वैज्ञानिक क़ुदरती तरीक़े तलाश रहे हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारी आंत और दिमाग़ के काम करने के तरीक़े में गहरा रिश्ता है।
रिसर्च में पाया गया है कि अगर आंत में सही तादाद में अच्छे माइक्रोबायोम नहीं हैं, तो दिमाग़ का सही विकास होने में मुश्किल होती है।
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हालांकि अभी ये पता नहीं लग पाया है कि आंत के कौन से बैक्टीरिया दिमाग़ के विकास के लिए ज़रूरी हैं।
रिसर्चरों का कहना है कि आंत के माइक्रोब्स ऐसे न्योरोट्रांसमीटर्स पैदा कर सकते हैं जो इंसान के दिमाग़ में पाए जाते हैं।
इसमें सेरोटोनिन भी शामिल हैं जो हमारा मूड तय करने में अहम रोल निभाते हैं।