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World Thalassemia Day 2022:हिमोग्लोबिन प्रोटीन का एक ऐसा प्रकार है जो रक्त में ऑक्सीजन के प्रवाह (oxygen carrying protein in the blood) में सहायता करता है। जब हिमोग्लोबिन (haemoglobin) का स्तर कम हो जाता है तो लाल रक्त कणिकाएं (red cells) अधिक समय के लिए सक्रिय नहीं रह पातीं और परिणामस्वरूप शरीर के टिश्यूज़ में ऑक्सीजन की सप्लाई पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पाती जो कई समस्याओं की वजह बनती है। थैलेसिमिया (Thalassemia) रक्त से जुड़ी एक अनुवांशिक गड़बड़ी है। यह एक ब्लड डिसॉर्डर ( blood disorder) है जिसमें हिमोग्लोबिन का स्तर औसत से कम होता है।
एक्सपर्ट के अनुसार, हिमोग्लोबिन मॉलिक्यूल (haemoglobin molecule) के दो हिस्से होते हैं— अल्फा ( alpha) और बीटा(beta) और इस बीमारी की पहचान भी हिमोग्लोबिन के उसी हिस्से से की जाती है जिसका निर्माण शरीर में नहीं हो पाता और उसी आधार पर उसे अल्फा थैलेसिमिया और बीटा थैलेसिमिया कहा जाता है। डॉ. प्रदीप महाजन (By Dr. Pradeep Mahajan, Regenerative Medicine Researcher, StemRx Bioscience Solutions Pvt. Ltd., Navi Mumbai/Mumbai) बता रहे हैं थैलेसिमिया की बीमारी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां, साथ ही उन्होंने बताया कि थैलेसिमिया के इलाज के लिए स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट (stem cell transplant) प्रक्रिया कितनी कारगर है?
डॉ. प्रदीप महाजन के अनुसार, थैलेसिमिया की बीमारी अनुवांशिक होती है। हालांकि, हिमोग्लोबिन से जुड़ी गड़बड़ियों वाले सभी लोगों में इस बीमारी के लक्षण (symptoms of the disease) नहीं दिखायी देते। वहीं, जिन लोगों में मध्यम स्तर की गम्भीरता वाली बीमारी दिखायी देती है उनमें इस प्रकार के लक्षण दिखायी देते हैं-
डॉ. महाजन कहते हैं कि दुर्भाग्य से थैलेसिमिया को रोका नहीं जा सकता है। गम्भीर थैलेसिमिया से पीड़ित मरीजों को कई बार और जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाया (blood transfusions) जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से यह प्रयास किया जाता है कि, शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की जो कमी हुई है उसे पूरा किया जा सके। लेकिन, इसके साथ ही रक्त रिसीव करने से थैलेसिमिया मरीजों में अन्य कई स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। जिनमें से कुछ प्रमुख समस्याएं हैं-
थैलेसिमिया के मरीजों को फॉलिक एसिड (Folic acid) से समृद्ध भोजन खिलाने की सलाह दी जाती है। क्योंकि, फोलेट या फॉलिक एसिड लाल रक्त कणिकाओं के निर्माण(development of red blood cells) में सहायता करता है।
थैलेसिमिया के इलाज के बारे में डॉ.प्रदीप महाजन कहते हैं कि, थैलेसिमिया में इलाज के (treatment of thalassemia) साधारण या पारम्परिक तरीकों से उपचार संभव नहीं है। ऐसे में स्टेम सेल थेरेपी (stem cell therapy) एक अच्छा पर्याय साबित हो सकती है। वर्तमान में ब्लड स्टेम सेल्स के ट्रांसप्लांटेशन (blood stem cells transplantation) को ही थैलेसिमिया का स्थायी इलाज माना जाता है। इस तरह की उपचार प्रक्रिया में बोन मैरो (bone marrow) जिसे स्टेम सेल्स के उत्पादन का बिंदु माना जाता है वहां, नये सेल्स की आपूर्ति की जाती है।
हालांकि, इस प्रकार के ट्रांसप्लांट में ऐसे व्यक्ति के स्टेम सेल्स लिए जाते हैं जो मरीज का करीब का संबंधी जैसे-माता-पिता या भाई-बहन। इससे जेनेटिक म्यूटेशन की स्थिति में साइड-इफेक्ट्स का खतरा कम करने के प्रयास किए जाते हैं।
डॉ.महाजन कहते हैं कि शरीर में टिश्यूज़ बनाने वाली सेल्स (mesenchymal cells) के ट्रांसप्लांटेशन की मदद से थैलेसिमिया के मरीजों को उनकी बीमारी के लक्षणों से लम्बे समय तक सुरक्षित रख पाना आसान हो सकता है और इससे साइड-इफेक्ट्स की संभावना को भी कम किया जा सकता है। डॉ. महाजन कहते हैं,“ थैलेसिमिया में स्टेम सेल्स थेरेपी उपचार की एक ऐसी तकनीक हो जो काफी समय से इस्तेमाल की जा रही है। हालांकि, अब इस तकनीक में स्टेम सेल्स के संयोजन की मदद से बेहतर परिणाम और मरीजों की मदद के प्रयास किए जा रहे हैं।,”
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