Don’t Miss Out on the Latest Updates.
Subscribe to Our Newsletter Today!
World Thalassemia Day 2021: ब्लड स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांट कैंसर और खासकर थैलेसेमिया के मरीज़ों के लिए जीवनदान का एक ज़रिया है। स्वस्थ लोगों के शरीर से ब्लड स्टेम सेल्स कलेक्ट कर इसे ज़रूरतमंदों के शरीर में ट्रांसप्लांट करने के साथ उनके लिए एक स्वस्थ जीवन जीने में मदद होती है। यही वजह है कि दुनियाभर की संस्थाएं लोगों को ब्लड स्टेम सेल्स डोनेट करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। गौरतलब है कि प्रति वर्ष 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day 2021) के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन रक्त के निर्माण से जुड़ी बीमारी थैलेसीमिया से जुड़ी जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जाते हैं।
थैलेसीमिया का स्थायी और शत फीसदी कारगर इलाज, ज़्यादातर मामलों में संभव नहीं है। वहीं, ब्लड स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण ( Blood Stem Cell Transplant) की मदद से थैलेसीमिया पीड़ितों को बचाने में काफी हद तक सफलता मिली है। आज विश्व थैलेसीमिया दिवस के मौके पर आइए जानें ब्लड स्टेम सेल्स के बारे में विस्तार से। (World Thalassemia Day 2021 in Hindi)
यह एक अनुवांशिक विकृति या जेनेटिक डिसॉर्डर है। इसमें, पीड़ित व्यक्ति के शरीर में रक्त का निर्माण बहुत कम मात्रा में होता है। ऐसी स्थिति में एक निश्चित समय सीमा के बाद पीड़ितों को एक निश्चित मात्रा में खून चढ़ाया जाता है। जैसे-जैसे पीड़ित की उम्र बढ़ती है और उसका शारीरिक विकास होने लगता है। वैसे-वैसे शरीर में अधिक मात्रा में रक्त चढ़ाने की भी ज़रूरत पड़ती है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर वर्ष थैलीसीमिया के तकरीबन 10,000 नये मरीज़ों का पता चलता है। विभिन्न रिसर्च और स्टडीज़ में यह पाया गया है कि, थैलेसीमिया कैरियर ऐसे माता-पिता जिनमें, इसके लक्षण नहीं दिखायी देते, उनसे उनके बच्चों को यह बीमारी होने का ख़तरा 25 प्रतिशत होती है।
आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में 10 साल नये मामलों का प्रति वर्ष पता चलने का अर्थ है कि इतने मरीज़ों के लिए निश्चित अवधि के बाद मैंचिग ब्लड ग्रुप के रक्त, दवाइयों और आवश्यक उपचार का इंतज़ाम करना। यह अस्पतालों और चिकित्सा जगत के लिए एक बड़ा बोझ है। साथ ही नये मरीज़ों की बढ़ती संख्या के साथ ही इस बीमारी की रोकथाम, कारगर उपाय और मरीज़ों की जान बचाने की दिशा में ध्यान देने की भी आवश्यकता बहुत अधिक बढ़ जाती है।
यह थैलेसीमिया के मरीजों के इलाज की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसमें, पीड़ित व्यक्ति को सर्जरी के बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती। इसका अर्थ है कि यह ब्लड ट्रांसफ्यूज़न-फ्री जीवन का वर्तमान में उपलब्ध इकलौता इलाज है और इसकी मदद से थैलीसीमिया के मरीजों को अन्य लोगों की तरह साधारण ज़िंदगी जीने में मददगार साबित होता है। जब किसी थैलेसीमिया पेशेंट का बोन मैरो खत्म हो जाता है तब, इस प्रक्रिया की मदद से डोनर के रक्त से स्टेम सेल्स लेकर उन्हें मरीज के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है।
हालांकि, यह विकल्प भी काफी मुश्किल है क्योंकि, ट्रांसप्लांट की ज़रूरत वाले मरीजों में से बमुश्किल 25 से 30 फीसदी को ही उनके परिवार में ऐसा कोई व्यक्ति मिल पाता है जिसका फुल एचएलए यानि (Human Leukocyte Antigen) मरीज के साथ मैच हो पाता है। इसीलिए, अन्य 70-75 फीसदी मरीजों को स्टेम सेल्स के लिए अजनबी डोनर्स पर ही निर्भर करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में लोगों के लिए मैचिंग स्टेम सेल्स मिलने में समय भी लग सकता है।
भारत में ब्लड स्टेम सेल दान करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया है। इसके लिए डोनर किसी सरकारी संस्था या मैरो डोनर रजिस्ट्री इंडिया ( Marrow Donor Registry India) जैसी समाजसेवी संस्थाओं के साथ अपना नाम रजिस्टर करा सकता है। संस्था में पंजीकरण कराने के साथ ही दानकर्ता को ब्लड स्टेम सेल्स के ट्रांसप्लांट से जुड़ी जानकारियां दी जाती हैं। इस तरह डोनर की एचएलए की जांच कर उनका डेटा किया जाता है। इसी डेटा के आधार पर ऐसे मरीजों की खोज की जाती है जिनके साथ डोनर का एचएलए टाइपिंग देखी जाती है। इस तरह डोनर और रिसीवर का पता चल जाने के बाद मेडिकली ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया से जुड़ी गतिविधियां शुरू की जाती हैं। (World Thalassemia Day 2021)