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Home / Hindi / Diseases & Conditions / World Thalassemia Day 2018: बच्चों को इस अनुवांशिक बीमारी से कैसे बचाया जा सकता है?

World Thalassemia Day 2018: बच्चों को इस अनुवांशिक बीमारी से कैसे बचाया जा सकता है?

भारत में हर साल लगभग 10,000-15,000 ऐसे बच्चे पैदा होते हैं, जो थैलेसीमिया मेजर हैं।

By: Editorial Team   | | Updated: May 8, 2018 2:21 pm
Tags: Alpha thalassemia  Bone marrow transplant  International Thalassemia day  Thalassemia major  Thalassemia minor  Thalassemics India  World Thalassemia day  
Thalassemia symptoms in hindi

मां-पिता के तौर पर एक बच्चे को संभालना और उसकी देखभाल करना एक बड़ी ज़िम्मेदारी होती है। और सोचिए उस माता-पिता के लिए ज़िंदगी कितनी मुश्किल होगी जो अपनी आंखों के सामने अपने बच्चे को तकलीफ से गुज़रते देखते हैं। थैलेसीमिया (Thalassemia) एक ऐसी ही बीमारी है जिसके मरीज़ को देखना पीड़ादायक हो सकता है। डॉ. निरंजन राठौड़, (असोसिएट डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट हेमेटो-ऑन्कोलॉजी, बोन मैरो ट्रांसप्लांट, नानावटी सुपर स्पेशैलिटी हॉस्पिटल) का कहना है कि थैलेसीमिया के मरीज़ बच्चे के माता-पिता की काउंसलिंग बहुत ज़रूरी है और यह भी महत्वपूर्ण है कि गर्भधारण से पहले पति-पत्नी दोनों को थैलेसीमिया का पता लगाने के लिए जांच और उनकी काउंसलिंग करना ज़रूरी हैl Also Read - एचआईवी इंफेक्शन से ठीक होने वाले पहले इंसान को हुआ टर्मिनल कैंसर, जानें, क्या है ये कैंसर और इलाज?

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थैलेसीमिया एक अनुवांशिक बीमारी है जो बच्चों को माता-पिता से मिलती है।  थैलेसीमिया  के दो मुख्य  घटक हैं अल्फा थैलेसीमिया ( alpha thalassemia) और बीटा थैलेसीमिया ( ß (beta)thalassemia), इन घटकों की संख्या के आधार पर ही बीमारी की गंभीरता निर्भर करती हैं। Also Read - World Thalassemia Day 2020 : ये हैं थैलेसीमिया के 4 मुख्य लक्षण और इसके मरीजों के लिए डायट प्लान

‘विभिन्न सर्वेक्षणों और स्टडीज़ से पता चलता है कि भारत में थैलेसीमिया के मामले सबसे ज़्यादा देखे जाते हैं और भारत में लगभग 4 प्रतिशत लोग बीटा थैलेसेमिया (ß-beta thalassemia) विशेषता के वाहक हैं। भारत में हर साल लगभग 10,000-15,000 ऐसे बच्चे पैदा होते हैं, जो थैलेसीमिया मेजर हैं। हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण (Hematopoietic Stem Cell Transplantation) इस तरह के बच्चों के लिए एकमात्र इलाज है जो काफी खर्चीला होता है और इसीलिए सभी के लिए इसे चुनना संभव नहीं हो पाता। इसीलिए इस बीमारी की चपेट में आने से बचना ही सबसे आसान तरीका हो सकता है, और इस तरह देश में थैलेसीमिया के मरीज़ों की संख्या में भी कमी लाने में मदद मिलेगी।’ यह कहना है डॉ. निरंजन राठौड़ का।

काउंसलिंग न केवल लोगों को बीमारी की गहराई को समझने में मदद करती है बल्कि इससे अधिक सकारात्मक तरीके से निपटने में भी मदद कर सकती है। एक समाज के रूप में, हम सभी को इस बीमारी और निवारक उपायों के बारे में जागरूकता पैदा करने पर जोर देना होगा।

‘बच्चे की योजना बनाने से पहले माता-पिता के खून की जांच कर इस बात का पता लगाना चाहिए कि उन्हें थैलेसीमिया का खतरा है या नहीं। थैलेसीमिया की संभावना का पता लगाकर एक थैलेसीमिया मेजर बच्चे को जन्म देने से बचा जा सकता है। थैलेसीमिया कैरियर स्टेट (Thalassemia carrier state) को थैलेसीमिया माइनर या थैलेसीमिया ट्रेट भी कहा जाता है।’

अगर ब्लड टेस्ट में माता-पिता दोनों कैरियल स्टेट के पॉजिटीव रिजल्ट दिखते हैं या पाया जाता है कि माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया का खतरा है, तो उन्हें गर्भावस्था की पहली तिमाही यानि पहले ट्राइमेस्टर में डॉक्टर की सलाह और जन्म से पहले यानि प्रीनटल डायगोनॉसिस (prenatal diagnosis) करानी चाहिए। इससे यह पता लगाना आसान हो जाता है कि भ्रूण थैलेसीमिया से प्रभावित है या नहीं। अगर प्रभावित हो, तो मेडिकल टर्मिनेशन या गर्भपात की सलाह दी जाती है। इसी तरह एक अप्रभावित बच्चे के जन्म के लिए प्री इम्प्लांटेशन जेनेटिक परीक्षण के साथ इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन या आईवीएफ (In-Vitro Fertilization) के विकल्प पर भी विचार किया जा सकता है।

‘अगर एक शादीशुदा जोड़ा गर्भधारण की योजना बना रहा है और उनमें से अगर एक साथी भी परीक्षणों में थैलेसीमिया कैरियर स्टेट नहीं साबित होता, तो आप निश्चिंत हो सकते हैं कि आपका बच्चा कम से कम थैलेसीमिया मेजर नहीं होगा, लेकिन यह बच्चा एक थैलेसीमिया ट्रेट हो सकता है और वह एक सामान्य जीवन जीने में सक्षम होगा।’

Read this in English.

अनुवादक: Sadhana Tiwari

चित्रस्रोत: Shutterstock.

Published : May 8, 2018 2:10 pm | Updated:May 8, 2018 2:21 pm
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