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22 को दुनिया भर में प्री-एक्लेमप्सिया दिवस मनाया जाता है। यह गर्भावस्था का एक विकार है, जिसके कारण मां और बच्चे की जान को खतरा पैदा हो सकता है। हालांकि भारत में यह इतनी आम स्थिति है कि माना जाता है कि आठ से दस फीसदी महिलाएं इससे प्रभावित हैं। समय पर जांच और सही उपचार के साथ इसे गर्भावस्था में ही नियंत्रित किया जा सकता है। परंतु लापरवाही बरतने पर यह प्रीमेच्योर बर्थ से लेकर मां अथवा शिशु की मृत्यु का कारण भी बन सकता है।
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क्या है प्री-एक्लेमप्सिया
प्री-एक्लेमप्सिया तब होता है जब प्लेसेंटा सही ढंग से काम नहीं कर पाती, ऐसी स्थिति में अगर आपको जरुरी उपचार न मिले तो यह आपकी और आपके शिशु की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। प्री-एक्लेमप्सिया प्लेसेंटा से रक्त के प्रवाह को कम कर देता है। जिसकी वजह से गर्भस्थ शिशु को पर्याप्त ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते और उसका विकास बाधित हो जाता है।
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कब होता है यह
प्री-एक्लेमप्सिया आमतौर पर गर्भावस्था का आधा चरण पार कर लेने के बाद या फिर शिशु के जन्म के कुछ ही समय बाद होता है। गर्भावस्था के 20 सप्ताह बाद इसके विकसित होने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में आठ से 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं इससे प्रभावित होती हैं।
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प्री-एक्लेमप्सिया के लक्षण
बहुत सी महिलाएं जिन्हें प्री-एक्लेमप्सिया होता है, उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं चलता। यह नियमित डॉक्टरी जांच के दौरान पकड़ में आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्री-एक्लेमप्सिया के दो सबसे आम लक्षणों को घर में पहचान पाना आसान नहीं हैं।
[caption id="attachment_667718" align="alignnone" width="655"] प्री-एक्लेमप्सिया हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकता है। हल्का प्री-एक्लेमप्सिया काफी आम है। © Shutterstock.[/caption]
प्री-एक्लेमप्सिया हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकता है। हल्का प्री-एक्लेमप्सिया काफी आम है। अगर प्री-एक्लेमप्सिया हल्का हो, तो संभव है कि आपको इसके होने का पता ही न चले। प्रसवपूर्व डॉक्टरी जांच के दौरान डॉक्टर लक्षणों को देखकर इसकी पहचान कर सकते हैं। जल्दी जांच और उपचार से आप और आपके शिशु को स्वस्थ रखने में मदद मिल सकती है। अच्छी बात यह है कि गंभीर प्री-एक्लेमप्सिया काफी कम होता है।
कब बढ़ जाती है प्री-एक्लेमप्सिया की संभावना
आपको प्री-एक्लेमप्सिया का जोखिम तब बढ़ जाता है जब पिछली गर्भावस्था में आपको हाई ब्लड प्रेशर रहा था। आपको पहले से गुर्दों का रोग है। आपको कोई ऑटोइम्यून विकार है जैसे ल्यूपस, टाइप 1 या टाइप 2 मधुमेह (डायबिटीज) है, गर्भवती होने से पहले आपका रक्तचाप उच्च रहता था। ऐसी स्थिति में डॉक्टर आपको 12 सप्ताह की गर्भावस्था से रोजाना एस्पिरिन की हल्की खुराक (लो डोज) लेने की सलाह दे सकता है।
जरूरी है गर्भस्थ शिशु की जांच
शिशु का विकास चेक करने के लिए आपको शायद अतिरिक्त डॉक्टरी जांच करवानी पड़ सकती हैं। यदि डॉक्टर शिशु की सेहत को लेकर चिंतित हों, तो वे आपको कार्डियोटोकोग्राफ (सीटीजी) जांच करवाने के लिए कह सकती हैं। यह एक तरह का डॉप्लर स्कैन है जिससे डॉक्टर शिशु के दिल की धड़कन की जांच करते हैं।
इन बातों का भी रखें ध्यान
प्री-एक्लेमप्सिया की वजह से जिंदगी में आगे चलकर उच्च रक्तचाप और अन्य संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए नियमित तौर पर अपने ब्लड प्रेशर की जांच करते रहना जरुरी है।