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Terminal cancer in hindi: एचआईवी से एक बार कोई व्यक्ति संक्रमित हो जाए, तो उसका पूरी तरह से ठीक होना या बचना संभव नहीं होता, लेकिन टिमोथी रे ब्राउन (Timothy Ray Brown) पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जो एचआईवी जैसी खतरनाक बीमारी से ठीक हो चुके हैं। लेकिन, दुख की बात ये है कि ब्राउन अब हमेशा के लिए बहुत गंभीर रूप से बीमार हो चुके हैं (Terminally Ill)। दरअसल, 12 वर्ष पहले हुए कैंसर के इलाज के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई थी, उससे उनका एचआईवी इंफेक्शन तो पूरी तरह से ठीक हो गया था, लेकिन वह जानलेवा कैंसर दोबारा आ गया है और अब ये कैंसर टर्मिनल कैंसर का रूप ले चुका है। जानिए, क्या होता है टर्मिनल कैंसर, इसका इलाज (Terminal cancer & its treatment) और मरीज की लाइफ एक्सपेक्टेंसी...
ब्राउन (Timothy Ray Brown) 12 वर्ष पहले जहां रहते थे, वहां उन्हें 'बर्लिन का मरीज' (Berlin pateint) नाम दिया गया था। उनका एक ऐसे डोनर के जरिए मैरो ट्रांसप्लान्ट हुआ था, जिसमें एड्स के वायरस (AIDS virus) का एक दुर्लभ, नेचुरल प्रतिरोध (natural resistance) मौजूद था। वर्षों से लोग ये ही मान रहे थे कि ब्राउन का ल्यूकेमिया (Leukemia in hindi) और एचआईवी संक्रमण (HIV infection) पूरी तरह से ठीक हो गया है।
द एसोसिएटेड प्रेस को दिए एक इंटरव्यू में ब्राउन ने कहा कि उन्हें ल्यूकेमिया (Terminal cancer in hindi) था, जो पिछले साल दोबारा वापस आ गया है और शरीर में व्यापक रूप से फैल चुका है। ब्राउन ने अपने प्रत्यारोपण (Transplant) के बारे में कहा, "मुझे बेहद खुशी है कि मैंने अपना ट्रांसप्लांट करवाया था।" 54 वर्षीय ब्राउन ने कहा, "फिलहाल वैज्ञानिक इसका इलाज खोजने में कड़ी मेहनत कर रहे हैं और मेरी इस बीमारी ने उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है। पहले लोग सोचते थे कि एचआईवी का इलाज इस तरीके से करना संभव नहीं है।"
ब्राउन ने साबित कर दिखाया कि एचआईवी को ठीक किया जा सकता है। इन सबमें कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (सैन फ्रांसिस्को) में एड्स विशेषज्ञ डॉ. स्टीवन डीक्स ने ब्राउन के साथ इलाज के लिए आगे के शोध के लिए काम किया। डॉ. डीक्स ने ब्राउन की आंत और लिम्फ नोड्स से इलाज शोध के लिए सेल्स लिए। इन सब प्रक्रिया में ब्राउन ने पूरा सहयोग दिया।
ब्राउन एक अमेरिकी हैं। 1990 के दशक में वे बर्लिन में बतौर ट्रांसलेटर काम किया करते थे। तभी उन्हें पता चला कि उन्हें एचआईवी है। 2006 में उन्हें ल्यूकेमिया (leukemia) होने का पता चला। बर्लिन यूनिवर्सिटी के एक ब्लड कैंसर एक्सपर्ट का मानना था कि मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए ल्यूकेमिया का इलाज किया जाना सबसे बेहतर उपाय था।
डॉक्टर ने सोचा कि क्या जीन म्यूटेशन के साथ डोनर का उपयोग करके ब्राउन की दूसरी जानलेवा बीमारी (एचआईवी) को ठीक किया जा सकता है, जो एड्स वायरस को प्राकृतिक प्रतिरोध प्रदान करता है? हालांकि, इस तरह के डोनर दुर्लभ होते हैं और ट्रांसप्लांट भी जोखिम भरा होता है।
इस काम के लिए डॉक्टर्स को कीमोथेरेपी और रेडिएशन के जरिए मरीज की रोगग्रस्त प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट करना पड़ता है, फिर डोनर की कोशिकाओं को ट्रांसप्लांट किया जाता है, ताकि मरीज के लिए एक नई प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो जाए।
2007 में ब्राउन का पहला प्रत्यारोपण आंशिक रूप से सफल रहा था। उनकी एचआईवी की समस्या ठीक हो गई थी, लेकिन ल्यूकीमिया नहीं। ब्राउन ने मार्च 2008 में उसी डोनर से दूसरा ट्रांसप्लांट कराया, जो सफल हुआ था। उसके बाद से ही ब्राउन ने जितनी बार एचआईवी टेस्ट करवाया, सभी रिपोर्ट्स नेगेटिव आईं। फिर वे एड्स कॉन्फ्रेंस में शामिल होने लगे, जहां एड्स से संबंधित इलाज अनुसंधान पर चर्चा हुआ करती थी। लेकिन, इन जैसे डोनर दुर्लभ हैं और व्यापक रूप से उपयोग किए जाने के लिए यह प्रक्रिया बहुत जोखिम भरी है। फिलहाल, शोधकर्ता ट्रांसप्लांट किए बिना अनुकूल जीन उत्परिवर्तन (favorable gene mutation) के प्रभाव को प्राप्त करने के लिए जीन थेरेपी और अन्य तरीकों का परीक्षण कर रहे हैं।
टर्मिनल कैंसर उस कैंसर को कहते हैं, जिसका कभी भी ठीक या इलाज नहीं किया जा सकता है। इसे कई बार आखिरी स्टेज का कैंसर भी कहते हैं। किसी भी प्रकार का कैंसर टर्मिनल कैंसर बन सकता है। टर्मिनल कैंसर एडवांस कैंसर से अलग है। टर्मिनल कैंसर की ही तरह एडवांस कैंसर का भी इलाज संभव नहीं, लेकिन यह उपचार के प्रति प्रतिक्रिया देता है, जिससे कैंसर के बढ़ने की गति धीमी हो सकती है। टर्मिनल कैंसर होने पर किसी भी ट्रीटमेंट के प्रति शरीर प्रतिक्रिया नहीं करता। नतीजतन, टर्मिनल कैंसर का इलाज सिर्फ पीड़ित व्यक्ति को आराम पहुंचाने के लिए किया जाता है, ताकि उसे अधिक तकलीफ ना हो।
इसमें कई बार व्यक्ति के बचने की संभावना पूरी तरह से खत्म हो जाती है। आमतौर पर, टर्मिनल कैंसर किसी की जीवन प्रत्याशा को कम करता है, लेकिन किसी की वास्तविक जीवन प्रत्याशा (life expectancy) कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें शामिल हैं:
कैंसर का प्रकार
पीड़ित का संपूर्ण स्वास्थ्य
कोई दूसरी बीमारी तो नहीं
टर्मिनल कैंसर एक लाइलाज बीमारी है। इसका मतलब ये है कि कोई भी इलाज इस कैंसर को खत्म नहीं कर सकता, लेकिन कई उपचार हैं, जो किसी को यथासंभव आरामदायक बनाने में मदद कर सकते हैं। इसमें कैंसर और किसी भी दवाइयों के उपयोग के दुष्प्रभावों (side effects) को कम करना शामिल होता है। कुछ डॉक्टर्स मरीज के जीवन प्रत्याशा को लंबा करने के लिए कीमोथेरेपी या रेडिएशन कराने की सलाह देते हैं, लेकिन यह हमेशा एक बेहतर विकल्प साबित नहीं होता है।