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Health effects of sleep deprivation: रात में नींद पूरी ना होने पर लोगों को दिनभर सुस्ती और थकान महसूस होते हैं। बार-बार आने वाली उबासियां और कई कप कॉफी और चाय पीने से भी जब ये सुस्ती ना जाए तो भरपूर नींद सोने से ही यह समस्या सुलझ पाती है। वहीं नींद ना पूरी होने पर शरीर में कुछ ऐसे लक्षण भी दिखायी देते हैं जिनपर आमतौर पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, पर्याप्त नींद न मिलने के प्रभाव शरीर के हरेक अंग पर पड़ते हैं। यह मेंटल हेल्थ और फिजिकल हेल्थ को बुरी तरह प्रभावित करता है। डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी परेशानियां गम्भीर हो सकती हैं। इससे मेमरी, फोकस और एकाग्रता क्षमता को भी नुकसान होता है। कई बार कम घंटे सोने के बाद भी लोगों को पता नहीं चल पाता कि वे किस प्रकार की समस्याओं से गुजर रहे हैं। यहां पढ़ें अनिद्रा और नींद की कमी के कुछ ऐसे लक्षणों के बारे में जो गम्भीर समस्याओं के तौर पर उभरकर सामने आती हैं। लेकिन, ज्यादातर समय लोग यह समझ ही नहीं पाते कि उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। (effects of sleep deprivation in Hindi)
क्या आपको भी साधारण बुखार या थकान महसूस होने पर अधिक समय तक सोने की ज़रूरत महसूस होती है। दरअसल नींद की कमीके कारण इम्यून सिस्टम की कार्यक्षमता (immune system functions) भी कमजोर होने लगती है। इसीलिए, गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं और थकान से बचने के लिए रोजाना पर्याप्त नींद सोने का प्रयास करें। इससे थकान कम होगी और रोग-प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ सकती है।
नींद की कमी से जूझ रहे लोगों को जिन गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा अधिक रहता है उसमें हाई ब्लड शुगर लेवल ( Blood Glucose Levels) की स्थिति भी शामिल है। जो लोग रात मे देर तक जागते हैं या ठीक तरीके से सो नहीं पाते उनका ब्लड शुगर लेवल अनियंत्रित हो सकता है।
अनिद्रा की समस्या का हाई ब्लड प्रेशर(blood pressure levels) जैसी स्वास्थ्य समस्याओं को गम्भीर बनाने में भी योगदान हो सकता है। नींद की कमी के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों (cardiovascular issues) और अन्य हृदय संबंधी समस्याओं (heart disease)का खतरा बढ़ सकता है। इसीलिए अगर आपका ब्लड शुगर लेवल लगातार आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है तो आप अपने स्लीपिंग पैटर्न पर ध्यान देना चाहिए।
क्रिएटिविटी की कमी, ब्रेन फॉग (Brain Fogg), उलझन और उदासी जैसे लक्षण नींद की कमी के महत्वपूर्ण संकेत हो सकते हैं। इसीलिए, ऐसे लोग जो कम समय तक सोते हैं उन्हें अपने काम पर फोकस करने में भी दिक्कत हो सकती है। ऐसे लोगों के लिए अपनी पसंद का काम करने में भी दिक्कत आती है और उनकी रचनात्मकता में भी कमी देखी जा सकती है।
नींद की कमी का एक बुरा परिणाम (effects of sleep deprivation) लोगों की डिसिजन मेकिंग (decision-making) या निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होने के तौर पर भी पड़ता है। किसी महत्वपूर्ण विषय पर निर्णय ना ले पाना या किसी चीज का चयन करने में असुविधा होना भी नींद की कमी के बुरे प्रभावों में से एक हो सकता है। इसकी वजह से लोगों को महत्वपूर्ण और कठिन परिस्थितियों में किसी निर्णय तक न पहुंच पाने की स्थिति बन जाती है। कई बार लोग उस स्थिति को संभाल नहीं पाते और आपा खो देते हैं। ऐसे लोग मुश्किल स्थितियों या चुनौतियों से बचने के प्रयास (risk-taking) करते हैं और बड़े निर्णयों से बचते रहते हैं।
अनिद्रा या नींद की कमी से परेशान लोगों की भूख पर भी इसका असर पड़ सकता है, कुछ लोगों को बिल्कुल भूख नहीं लगती तो वहीं कुछ लोग ओवरइटिंग (causes of overating) कर सकते हैं। पब्लिक लाइब्रेरी साइंसेस (Public Library of Science) में प्रकाशित एक स्टडी में कहा गया कि, ऐसे लोग जो कम घंटों तक सोते हैं उनमें घ्रेलिन (ghrelin) नामक हार्मोन्स का स्तर अधिक होता। बता दें कि घ्रेलिन भूख बढ़ाने वाले हार्मोन्स (harmanes) हैं जबकि, लेप्टिन नामक हार्मोन्स (leptin) का स्तर कम हो जाता है जो पेट भरने की संतुष्टि देते हैं। भूख से जुड़े इन दोनों हार्मोन्स का स्तर असंतुलित हो जाने के कारण लोगों की खान-पान की आदतें भी अनियंत्रित हो सकती हैं। जब शरीर में घ्रेलिन की मात्रा अधिक हो तो दिमाग को ऐसे सिग्नल मिलते हैं कि आपकी भूख अभी शांत नहीं हुई है और आपको अभी और भोजन खाने की आवश्यकता है। वहीं लेप्टिन का लो-लेवल भी आपके दिमाग को पेट भर जाने की संतुष्टि (sense of fullness) नहीं दे पाता और इस तरह नींद की कमी से पीड़ित लोग बहुत अधिक मात्रा में खा लेते हैं। गौरतलब है कि ओवरइटिंग पेट से जुड़ी समस्याओं (stomach ailments) और मोटापे (risk of obesity) का रिस्क बढ़ाता है। वहीं, इससे ब्लड शुगर लेवल (blood sugar levels), ब्लड प्रेशर लेवल (high blood pressure levels) और कोलेस्ट्रॉल लेवल (high choleshtrol levels) भी बढ़ सकता है।
कम समय तक सोने वाले लोगों के व्यवहार में भी इस वजह से बहुत व्यापक बदलाव आ सकते हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, लोग आमतौर पर रोजमर्रा की ज़िंदगी में आनेवाली स्थितियों और वार्तालाप में बहुत तेज गति से प्रतिक्रिया देने लगते हैं। लोगों का अपने व्यवहार पर कोई कंट्रोल नहीं रह पाता और वे हेल्दी कम्युनिकेशन्स को आगे बढ़ा पाने में असमर्थ महसूस करते हैं। (Lack of sleep can cause hyperreactivity)
(डिस्क्लेमर:इस लेख में दी गई बीमारी से जुड़ी सभी जानकारियां सूचनात्मक उद्देश्य से लिखी गयी है। किसी बीमारी की चिकित्सा से जुड़े किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए कृपया अपने चिकित्सक का परामर्श लें।)
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