हृदय संबंधी बीमारियों को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रमित धारणाएं हैं। इन्हीं में से एक है कि हृदय रोग हमेशा बड़ी उम्र में ही होते हैं। या कि यह मान लिया जाए कि सिर्फ बुजुर्गों को ही हृदय संबंधी बीमारियों को खतरा रहता है। जबकि यह एकदम गलत धारणा है। हृदय के मामले में कहा जा सकता है कि अगर आप बचपन से आलसी हैं तो बड़ी उम्र में हार्ट डिजीज की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है।
बच्चों में भी बढ़ रहे हैं मामले
हृदय रोगियों में अब बच्चों की संख्या भी शुमार होने लगी है। हार्ट केयर फाउंडेशन के अनुसार पिछले पांच वर्षो में हृदय रोगियों में बच्चे भी शुमार हुए हैं। इनमें कारण वंशानुगत भी हैं और लाइफ स्टाइल से जुड़े हुए भी।
बचपन से ही होती है हृदयाघात की सम्भावना
"उम्र बढ़ने के साथ दिल का दौरा भी पड़ता है...", हम यही मानकर चलते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। सभी बूढ़ों को दिल का दौरा नहीं पड़ता। दरअसल, दिल के दौरे की नींव बचपन में ही पड़ जाती है। यह समस्या सालों तक चुपचाप अंदर ही अंदर काम करती रहती है और एक दिन दिल के दौरे में तब्दील हो जाती है।
ऐसे जीत सकते हैं लड़ाई
दिल की सेहत से जुड़े कुछ तथ्यों को हम जान लें तो आधी लड़ाई जीत जाते हैं। बस, इसके लिए अपनी जीवन शैली में कुछ परिवर्तन करना ज़रूरी होते हैं। सच तो यह है कि हमारे देश में दिल के दौरों के लिए खानपान की गलत आदतें और अस्वास्थ्यकर जीवन शैली मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
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जंकफूड भी जिम्मेदार है
'सर्कुलेशन' जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग अपने भोजन में अत्यधिक वसा, नमक, अंडे और मांस खाते हैं, उन्हें दूसरों के मुकाबले दिल का दौरा पड़ने का जोखिम 35 प्रतिशत अधिक होता है। इसकी तुलना में जो लोग 60 ग्राम साबुत अनाज से बना हुआ दलिया खाते हैं, उन्हें यह जोखिम कम होता है।
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