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स्वस्थ रहने के लिए खेल को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, जो लोग खेल-कूद की गतिविधियों में रहते हैं वो काफी एक्टिव और सेहतमंद भी रहते हैं। लेकिन कई बार खेलते-खेलते चोट भी लग जाती है, इससे जुड़ी ऑर्थोपेडिक इंजरी से मामला काफी गंभीर भी हो जाता है और हालात पर काबू न किया जाए तो इसका लंबे समय तक नुकसान भी हो जाता है। पिछले कुछ वक्त में, भारतीय क्रिकेट प्लेयर जसप्रीत बुमराह, श्रेयस अय्यर समेत अन्य कई नामचीन खिलाड़ियों को चोटें आईं, जिसके चलते उन्हें नेशनल टीम से भी बाहर रहना पड़ा। गाजियाबाद के वैशाली स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट के एसोसिएट डायरेक्टर डॉक्टर अखिलेश यादव खेल से जुड़ी ऑर्थोपीडिक इंजरी के बारे में बताया कि किस तरह ये चोटें नुकसान पहुंचाती हैं और इनसे कैसे बचाव किया जा सकता है।
स्पोर्ट्स से संबंधित किसी भी तरह की हड्डी की चोट से शरीर के अन्य हिस्सों पर भी असर पड़ सकता है। इससे हड्डी, मांसपेशी, टेंडन, लिगामेंट को भी नुकसान पहुंचने का खतरा रहता है। ये चोटें अक्सर अति प्रयोग, खराब तकनीक, अपर्याप्त कंडीशनिंग, या खेल के दौरान दुर्घटनाओं के कारण लगती हैं। आमतौर पर खेल-कूद के दौरान मोच, खिंचाव, फ्रैक्चर और डिसलोकेशन की समस्या सबसे ज्यादा देखी जाती है।
1-मोच एक ऐसी समस्या है जो लिगामेंट्स से जुड़ी होती है। ये वो टिशू होते हैं जो हड्डियों को एक दूसरे से जोड़ते हैं। जब जोड़ों को उसकी रेंज से ज्यादा मोड़ने की कोशिश की जाती है तो ऐसी स्थिति में मोच आ जाती है। सबसे ज्यादा मोच की समस्या टखने में होती है। बास्केटबॉल और सॉकर जैसे स्पोर्ट्स के दौरान ये अक्सर ही देखने को मिलती है।
2-मांसपेशियों को हड्डियों से जोड़ने वाले जो टिशू होते हैं उनमें चोट लगने के कारण खिंचाव आता है। जब मांसपेशियां बहुत ज्यादा फैल जाती हैं तो खिंचाव आ जाता है। दौड़ने वाले या फील्ड के एथलीट्स को हैमस्ट्रिंग मसल्स में खिंचाव आता है। जबकि टेनिस प्लेयर्स को कोहनी में खिंचाव आता है।
3-जब कोई हड्डी पूरी तरह या आंशिक तौर पर टूट जाती है तो वो फ्रैक्चर माना जाता है। जब हड्डी पर अचानक कोई दबाव पड़ जाता है या लगातार उसपर दबाव पड़ता है तो ऐसी स्थिति में फ्रैक्चर हो जाता है। जो लोग रनिंग या जंपिंग करते हैं, बास्केटबॉल खेलते हैं उनमें फ्रैक्चर का खतरा रहता है।
4-कुछ मामलों में जोड़ भी हट जाता है या हड्डी अपनी जगह से हट जाती है। जब कोई अचानक गिर जाता है तो ऐसी स्थिति में हड्डी के अपनी जगह से हटने का खतरा रहता है। फुटबॉल और हॉकी जैसे खेलों में खिलाड़ियों के कंधे की हड्डी डिसलोकेट होने का ज्यादा खतरा रहता है।
5-खेल-कूद के दौरान एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट (एसीएल) बहुत ही आम इंजरी है। ये इंजरी खासकर उन लोगों को होती है जो जंपिंग करते हैं या फिर जिनकी दिशा में अचानक कोई बदलाव आ जाता है। ACL घुटने को स्टेबल करने में मदद करता है और जांघ की हड्डी से जुड़ी शिनबोन यानी टिबिया तक एक्सेसिव मूवमेंट को रोकता है।
6-एसीएल इंजरी में घुटने में अचानक दर्द और सूजन की समस्या होती है। जब ये इंजरी होती है तो कभी कभी अचानक पॉपिंग की आवाज आती है। जिन खिलाड़ियों को एसीएल इंजरी होती है, आमतौर पर उनकी सर्जरी की जाती है और मैदान पर वापस पहुंचने से पहले ऐसे एथलीट को लंबे वक्त आरामकरना पड़ता है। एसीएल इंजरी से बचाने के लिए घुटने के चारों तरफ की मांसपेशियों की प्रॉपर कंडीशनिंग और स्ट्रेंथनिंग की जाती है।
डॉक्टर अखिलेश यादव कहते हैं कि खेल से जुड़ी हड्डी की चोटों को रोकने में कई महत्वपूर्ण उपाय शामिल हैं। शारीरिक गतिविधि के लिए शरीर को तैयार करने में मदद करने के लिए प्रॉपर कंडीशनिंग और वार्म-अप व्यायाम जरूरी हैं। पर्याप्त शक्ति, लचीलापन और कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस एक व्यापक कंडीशनिंग कार्यक्रम के सभी आवश्यक घटक हैं। उचित तकनीक भी बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि अनुचित तकनीक से चोट लगने का खतरा बढ़ सकता है।
उन्होंने कहा कि सुरक्षा के उपयुक्त उपकरणों का इस्तेमाल करने से खेल से जुड़ी ऑर्थोपेडिक चोटों को रोकने में भी मदद मिल है। इसके लिए हेलमेट, पैड और ब्रेसिज़ पहनने से फायदा होता है। साथ ही खेल के लिए सही उपकरण चुनना और यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि यह ठीक से फिट हो।
इसके अलावा चोट से रिकवरी के लिए प्रॉपर आराम की भी जरूरत होती है। रनिंग या थ्रोइंग जैसी स्पोर्ट्स एक्टिविटी में ओवर यूज इंजरी होने का खतरा रहता है। इसलिए खेल के दौरान बीच-बीच में आराम करना बेहद जरूरी है, इससे इंजरी से बचा जा सकता है।
डॉक्टर अखिलेश यादव का कहना है कि अगर किसी खिलाड़ी को इंजरी हो जाती है तो उसके लिए प्रॉपर इलाज कराना बेहद जरूरी है। ऐसी कंडीशन को इग्नोर करना या चोट में ही खेलने से दिक्कत ज्यादा बढ़ सकती है और फिर रिकवरी में लंबा समय लग जाता है। खेल के दौरान लगी चोटें आमतौर पर आराम करने, बर्फ से सिकाई आदि से ठीक हो जाती हैं। कुछ मामलों में इमोबिलाइजेशन या सर्जरी की जरूरत भी पड़ती है।
चोट के इलाज में रिहैबिलिटेशन भी एक जरूरी हिस्सा है। फिजिकल थेरेपी और एक्सरसाइज की मदद से एनर्जी वापस आती है, शरीर की फ्लेक्सिबिलिटी सही होती है और बॉडी का मूवमेंट भी सुधरता है। चोट लगने के बाद किसी एक्सपर्ट के गाइडेंस में धीरे-धीरे फिजिकल एक्टिविटी करें, इससे फिर से चोट लगने का खतरा कम रहता है और चोट से फुल रिकवरी हो जाती है।
खेल-कूद के दौरान लगने वाली ऑर्थोपेडिक चोटें लंबे वक्त किसी के शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है और उसकी सेहत खराब सकती हैं। हालांकि, प्रॉपर कंडीशनिंग, तकनीक और सुरक्षा उपकरणों की मदद से इस तरह की चोटों से बचाव भी किया जा सकता है। चोट लग जाने की स्थिति में पर्याप्त इलाज और आराम जरूरी है, ताकि अच्छे से रिकवरी हो सके। इस तरह की बातों का ध्यान रखते हुए खिलाड़ी खुद को स्पोर्ट्स रिलेटेड इंजरी से बचा सकते हैं और खेल का मजा ले सकते हैं।
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