हम कितनी भी शताब्दी आगे बढ़ते जाये या सामाजिक मानसिक सांस्कृतिक तौर पर आगे बढ़ने का दावा करें लेकिन सामाजिक वहशीपन की प्रतिछवि नहीं बदल रही है। आज भी शिशु हो या लड़कियां सामाजिक तौर पर वह असुरक्षित ही रहती है। हाल के एक घटना ने ये साबित कर दिया है कि लड़कियां किसी भी उम्र में सुरक्षित नहीं है। पुरूषों का वहशीपन एक फूल की कली जैसी शिशु को भी मसलने में हिचकती नहीं है। एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है। मलाड के सेड जुग्गीलाल पोद्दार एकेडमी आई.सी.एस.ई बोर्ड के स्कूल के एक पियोन ने चार वर्षीय