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नकसीर फूटना एक प्रकार का ब्लीडिंग डिसऑर्डर है और अगर समय रहते इसके उपाय किए जाएं तो इससे किसी प्रकार की गंभीर समस्या पैदा नहीं हो पाती है। नकसीर फूटने की समस्या आमतौर पर गर्मियों के दिनों में या फिर नाक पर चोट आदि लगने के कारण ही देखी जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि नाक से खून बहना कई बार लिवर से जुड़ी किसी अंदरूनी बीमारी का संकेत हो सकता है, जिसे इग्नोर नहीं किया जाना चाहिए। खासतौर पर यदि आपको पहली बार नकसीर फूटने की समस्या हुई है, तो संभावना ज्यादा रहती है कि यह किसी अन्य बीमारी का संकेत भी हो सकता है। यदि आपको या आपके परिवार में पहले से ही किसी को नाक से खून बहने की समस्या है, तो आपको इस बारे में जरूर जान लेना चाहिए। चलिए जानते हैं क्यों नाक से खून बहने की समस्या को इग्नोर नहीं किया जाना चाहिए।
मनिपाल हॉस्पिटल व्हाइटफील्ड में लीड कंसल्टेंट, सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, एचबीपी एंड लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी स्पेशलिस्ट डॉक्टर संजीव रोहतगी ने इस बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी। डॉक्टर संजीव ने बताया कि फैटी लिवर डिजीज का यदि समय रहते इलाज न किया जाए तो लिवर ठीक से काम करने की क्षमता खो देता है। लिवर के ठीक से काम न करने के कारण क्लॉटिंग प्रोसेस भी प्रभावित होता है और सामान्य रूप से रक्त के थक्के बनना बंद हो जाते हैं। रक्त पतला होने के कारण नाक से खून बहने लग सकता है, जिसे कई बार इग्नोर कर दिया जाता है।
फैटी लिवर डिजीज के कारण नाक से खून बहने यानी नकसीर फूटने की समस्या आमतौर पर तब होती है, जब समय रहते लिवर डिजीज का इलाज न किया जाए। समय पर इलाज न करने पर लिवर के काम करने की क्षमता कमजोर पड़ने लगती है और रक्त के थक्के न जमने के कारण नाक से खून बहने लगता है। इसलिए यदि आपको फैटी लिवर डिजीज से जुड़ा कोई भी लक्षण दिख रहा है, तो ऐसे में जल्द से जल्द ही डॉक्टर से बात कर लेनी चाहिए।
फैटी लिवर डिजीज होने पर निम्न लक्षण विकसित हो सकते हैं -
हालांकि, जरूरी नहीं है कि ऊपर बताए गए लक्षणों में से कोई एक लक्षण होना लिवर की बीमारी का संकेत है। लेकिन फिर भी यदि आपको इनमें से कोई भी लक्षण महसूस हो रहा है, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से इस बारे में बात कर लेनी चाहिए, ताकि यदि लिवर से जुड़ी कोई समस्या हो तो समय रहते उसका इलाज किया जा सके।
हालांकि, फैटी लिवर डिजीज की गंभीरता को समय रहते कंट्रोल न किया जाए तो इसके कारण सिर्फ नाक से नहीं बल्कि मसूड़ों से भी ब्लीडिंग हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भी रक्त के थक्के जमने की प्रक्रिया मंद पड़ती है, तभी मसूड़ों से खून बहने की प्रक्रिया भी धीमी पड़ जाती है।
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