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Home / Hindi / Health News / जन्म लेने से पहले ही गुणसूत्र विकार बताएगी एनआईपीटी

जन्म लेने से पहले ही गुणसूत्र विकार बताएगी एनआईपीटी

पारंपरिक जैव रासायनिक परीक्षणों की तुलना में अजन्मे शिशुओं में गुणसूत्र असामान्यताओं का पता लगाने में अधिक प्रभावी, सटीक और सुरक्षित है।

By: Editorial Team   | | Updated: May 31, 2018 3:49 pm
Tags: Child  Chromosomal abnormalities  Chromosome testing  Pregnancy care  
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देश भर के 10 अस्पतालों में किए गए एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में पाया गया है कि नॉन- इंवैसिव प्रीनैटल टेस्ट (एनआईपीटी) पारंपरिक जैव रासायनिक परीक्षणों की तुलना में अजन्मे शिशुओं में गुणसूत्र असामान्यताओं का पता लगाने में अधिक प्रभावी, सटीक और सुरक्षित है। वर्तमान समय में परम्परागत परीक्षणों के तौर पर डबल मार्कर (पहली तिमाही में) और क्वाड्रुपल मार्कर टेस्ट (दूसरी तिमाही) के अलावा अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है। Also Read - प्रेगनेंट अनुष्का शर्मा ने फ्लॉन्ट किया बेबी बम्प, प्रेगनेंसी में इन 3 चीज़ों का करें इस्तेमाल, स्ट्रेच मार्क्स होंगे कम



जीनोमिक्स संचालित अनुसंधान और डायग्नोस्टिक्स फर्म मेडजीनोम द्वारा किए गए अध्ययन के मुख्य शोधकर्ता डॉ. आई. सी. वर्मा  बताते हैं कि, “इस अध्ययन से पता चला है कि परंपरागत स्क्रीनिंग परीक्षणों की तुलना में नॉन-इंवैसिव प्रीनैटल स्क्रीनिंग टेस्ट (एनआईपीटी) द्वारा पहचान की गई गुणसूत्र असामान्यता के सही होने और भ्रूण में इसके मौजूद होने की संभावना अधिक होती है। इस प्रकार, एनआईपीटी अधिक सटीक परीक्षण विधि के रूप में प्रमाणित हुई है।” Also Read - प्रेगनेंसी में म्यूज़िक सुनें, बच्चे का होगा तेज़ विकास, जानें संगीत सुनने के अन्य फायदे

सर गंगा राम अस्पताल में इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल जेनेटिक्स एंड जीनोमिक्स के निदेशक डॉ. आई. सी. वर्मा  भी कहते हैं कि, “भारत में अनुवांशिक विकारों से काफी मरीज पीड़ित हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में गुणसूत्र असामान्यताएं जन्म लेने वाले 166 में से एक शिशु में होती हैं जबकि डाउन सिंड्रोम (गुणसूत्र संख्या 21 की ट्राइसोमी) होने की आशंका 800 में से एक शिशु में होता है।”

डॉ. वर्मा  कहते हैं “इस तरह, भारत में हर साल डाउन सिंड्रोम वाले 32,500 शिशुओं का जन्म होता है, जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या है। एनआईपीटी की जल्द से जल्द और सटीक स्क्रीनिंग से परिवारों को अपने बच्चे के अनुवांशिक स्वास्थ्य के बारे में जानने में मदद मिल सकती है और यदि आवश्यक हो तो उन्हें और सहायता प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।”

डॉ. वर्मा ने आगे बताते हैं कि, “पारंपरिक स्क्रीनिंग टेस्ट की तुलना में भारतीय महिलाओं के लिए एनआईपीटी बेहद सटीक है। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि परंपरागत स्क्रीनिंग विधियों से होने वाली जांच में गर्भावस्था को अधिक नुकसान पहुंचने की संभावना होती है, जबकि एनआईपीटी में कम खतरा रहता है। इसका मतलब यह है कि बड़ी संख्या में महिलाएं (96.2 प्रतिशत) ऐम्नीओसेन्टीसिस और कोरियोनिक विलस सैम्पलिंग जैसी इंवैसिव प्रक्रियाओं से बच सकती हैं।”

एनआईपीटी स्क्रीनिंग परीक्षण के लिए गर्भवती महिला के हाथ से रक्त का थोड़ा सा नमूना लिया जाता है और गुणसूत्र असमान्यताओं की पहचान करने के लिए गर्भवती महिला के खून में घूम रहे अजन्मे बच्चे के डीएनए का विश्लेषण किया जाता है। क्लिनिकल सेटिंग में जहां एनआईपीटी की गई, गर्भवती महिलाओं में इंवैसिव प्रक्रियाओं में 50-70 प्रतिशत की महत्वपूर्ण कमी देखी गई। एनआईपीटी महिला को अधिक दर्द से राहत देती है, परेशानी से बचाती है और इंवैसिव प्रक्रियाओं से शिशुओं को होने वाले नुकसान से बचाती है।

इस अध्ययन में भाग लेने वाले अस्पतालों में सर गंगा राम अस्पताल (दिल्ली), ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (दिल्ली), इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल (दिल्ली), पीजीआई (चंडीगढ़), रेनबो हॉस्पिटल (हैदराबाद), अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (कोच्चि), श्री रामचंद्र मेडिकल कॉलेज (चेन्नई), जवाहर लाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पांडिचेरी), सीमर (सीआईएमएआर) फर्टिलिटी सेंटर (कोच्चि), मणिपाल हॉस्पिटल (बेंगलुरू) शामिल थे।

स्रोत:IANS Hindi.
चित्रस्रोत:Shutterstock.

Published : May 31, 2018 3:41 pm | Updated:May 31, 2018 3:49 pm
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