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Menopause : जानें, मेनोपॉज का असर और शारीरिक समस्याओं के बारे में

Menopause : जानें, मेनोपॉज का असर और शारीरिक समस्याओं के बारे में
Don't let myths around menopause scare you. © Shutterstock.

जब महिलाओं के शरीर में एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍ट्रॉन का निर्माण धीमी गति से होने लगता है, साथ ही मेंस्‍ट्रुअल पैटर्न में भी काफी बदलाव आने लगता है, तब मेनोपॉज की स्थिति आती है। तकनीकी रूप से मेनोपॉज (menopause) की शुरुआत तब होती है, जब एक महिला को 12 महीनों के लिए महावारी नहीं होती है।

Written by Anshumala |Published : September 27, 2019 6:12 PM IST

एक महिला के जीवन में मेनोपॉज (menopause) एक परिवर्तनकारी समय होता है। प्रीमेनोपॉज के साथ यह शुरू होता है, जब महिलाओं के शरीर में एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍ट्रॉन का निर्माण धीमी गति से होने लगता है। इसके साथ ही मेंस्‍ट्रुअल पैटर्न में भी काफी बदलाव आने लगता है। तकनीकी रूप से मेनोपॉज (menopause) की शुरुआत तब होती है, जब एक महिला को 12 महीनों के लिए महावारी नहीं होती है। यह बढ़ती उम्र की प्रक्रिया का एक सामान्‍य रूप है, जिससे हर महिला को अपने जीवन में कभी ना कभी गुजरना पड़ता है।

मेनोपॉज होने की औसत उम्र ?

‘आईएमएस’ द्वारा पूरे भारत में कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि भारत में मेनोपॉज (menopause in women) होने की औसत उम्र 46.2 वर्ष है, जो कि पश्चिमी देशों की तुलना में 5 साल पहले है। एक अनुमान था कि 2015 तक 130 मिलियन भारतीय महिलाएं मेनोपॉज की उम्र के पीछे होंगी। मौजूदा संभावित आयु और मेनोपॉज की औसत उम्र के आधार पर, भारतीय महिलाएं लगभग 24 साल मेनोपॉज की उम्र के बाद तक जिएंगी।

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क्या होता है महिलाओं पर मेनोपॉज का असर

मेनोपॉज (menopause problem) का महिलाओं के शरीर पर काफी बड़ा बदलाव पड़ता है, जैसे हॉट फ्लैशेज और पसीना आना (65%), नींद ना आना (45%), योनि में सूखापन और एट्रॉफी (45%), यौन संबंध के दौरान पीड़ा (20%), यूरीनरी इंकॉन्टिनेंस (30-40%), जोड़ों तथा कमर में दर्द (45-60%), मूड स्विंग (60%), याददाश्‍त और एकाग्रता में कमी आना (40%), अवसाद तथा बेचैनी (20-60%)। इससे क्‍वालिटी ऑफ लाइफ (क्‍यूओएल) कम हो जाती है। कुछ महिलाओं में प्राकृतिक रूप से मेनोपॉज पहले आ जाता है। जल्‍दी आने वाला मेनोपॉज कई सालों तक बना रहता है, जोकि निम्‍न क्‍वालिटी ऑफ लाइफ के साथ बनी रहती है। इससे तुलनात्‍मक रूप से दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। जीवनशैली के तरीकों जैसे धूम्रपान करना और शराब पीना, ऑटो इम्‍यून डिजीज जैसे थायरॉइड और कीमोथेरेपी के रेडिएशन के संपर्क में आने से भी अक्‍सर मेनोपॉज जल्‍दी आ जाता है।

मेनोपॉज से होने वाली समस्याएं

शारीरिक दबाव के साथ-साथ मेनोपॉज जीवन के हर पहलू पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। यह ना केवल भावनात्‍मक स्‍वास्‍थ्‍य पर, बल्कि ऐसा भी पाया गया है कि 45 प्रतिशत महिलाओं को प्रोडक्टिविटी के कम हो जाने से कार्यस्‍थल पर संघर्ष से गुजरना पड़ता है। वहीं, 33 प्रतिशत मेनोपॉजल (menopause) महिलाओं को लगता है कि उनकी सोशल लाइफ पिछड़ गई है और 55 प्रतिशत को ऐसा लगता है कि वह अपने वैवाहिक जीवन का आनंद नहीं ले पा रही हैं।

जब समय से पहले होता है मेनोपॉज

जिन महिलाओं को समय से पहले मेनोपॉज हो जाता है, उन्‍हें बाद में मेनोपॉज आने वाली महिलाओं की तुलना में कोरोनरी हार्ट डिजीज होने का खतरा दोगुना रहता है। उनमें टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा भी अत्‍यधिक होता है। तनवीर हॉस्पिटल (हैदराबाद) की कंसल्‍टेंट गायनोकोलॉजिस्‍ट तथा पूर्व-आईएमएस प्रेसिडेंट डॉ. मीता सिंह का कहना है कि जिन महिलाओं में समय से पूर्व मेनोपॉज हो जाता है, उन्‍हें भरपूर देखभाल की जरूरत होती है। उनमें कार्डियोवैस्‍कुलर बीमारियों, डायबिटीज और ऑस्टियोपोरोसिस की समय पूर्व जांच कराना जरूरी होता है। कम उम्र के बावजूद, 81 प्रतिशत पोस्‍ट मेनोपॉजल महिलाओं की बोन मिनरल डेंसिटी (बीएमडी) कम होती है। एस्‍ट्रोजन हॉर्मोन के कम होने की वजह से ऑस्टियोपोरोसिस की समस्‍या बढ़ जाती है और फ्रैक्‍चर का खतरा भी।

[caption id="attachment_690694" align="alignnone" width="655"]hot-flashes during menopause मेनोपॉज के बाद नजर आने वाले शारीरिक समस्याओं का इलाज है संभव। © Shutterstock.[/caption]

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मेनोपॉजल स्टेज के वक्त करें डॉक्टर से बात

मेनोपॉजल स्टेज के दौरान, एक महिला के लिए यह जरूरी होता है कि वह अपने डॉक्‍टर से लक्षणों के बारे में बात करे और क्‍वालिटी ऑफ लाइफ को बेहतर बनाने के बेहतर तरीके जानें। डॉ. सिंह कहती हैं कि भले ही आज भारत में महिलाएं खुलकर बात कर रही हैं, लेकिन आज भी व्‍यक्तिगत विषयों और डिप्रेशन, वजाइनल ड्रायनेस या फिर यौन संबंध ना बना पाने की समस्‍याओं के बारे में बात करने में संकोच करती हैं। इसके साथ ही, कई महिलाएं आज भी अपनी सेहत को प्राथमिकता नहीं देती हैं।

अक्‍सर अपनी परेशानी को छुपा कर रखती हैं और अपने आप में ही घुटती रहती हैं। मेनोपॉज के लक्षणों और इलाज के विकल्‍पों के बारे में डॉक्‍टर से खुलकर और स्‍पष्‍ट बात करना आवश्‍यक है। अपने डॉक्‍टर की सलाह से अपने खानपान में बदलाव करें। एक्‍सरसाइज की दिनचर्या और थेरेपी चुनें, जो उनके मेनोपॉजल लक्षणों, मेडिकल हिस्‍ट्री और व्‍यक्तिगत पसंद के अनुकूल हो। इससे पोस्‍ट-मेनोपॉजल चरण में आसान परिवर्तन सुनिश्चित हो पाएगा।

मेनोपॉज के बाद होने वाली समस्याओं का इलाज

वर्तमान में, नॉन-हॉर्मोनल थेरेपी और मेनोपॉज हॉर्मोनल थेरेपी (एमएचटी) दोनों ही विकल्‍प मौजूद हैं, लेकिन पूरे देशभर में नॉन-हॉर्मोनल थेरेपी ज्‍यादा दी जाती है। ऐसा इसलिए, क्‍योंकि ज्‍यादातर मरीजों पर इसका प्रभावी असर होता है। विज्ञान में यह बात साबित हुई है कि ‘एमएचटी’ के कई सारे फायदे हैं, जिनमें हॉट फ्लैशेज, नींद आने की समस्‍या, मूड स्विंग और पीड़ादाई यौन संबंध जैसे लक्षणों में सुधार होता है। ‘एमएचटी’ ऑस्टियोपोरोसिस और सीवीडी के खतरे को भी कम करता है, खासतौर से जिन महिलाओं में मेनोपॉज समय पूर्व हो जाता है। महिलाएं एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍ट्रॉन के स्‍तर को सप्‍लीमेंट के जरिए सामान्‍य बनाकर रखते हुए, मेनोपॉज के लक्षणों को दूर रख सकती हैं।