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26 वर्षीय सौम्यदीप घोष की उम्र जब 6 साल थी, तब उनका लिवर ट्रांसप्लांट (liver transplant) किया गया था। उनके पिता ने अपने लिवर का एक हिस्सा उन्हें डोनेट किया था। यह सर्जरी 12 अक्टूबर 1999 को दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल्स में की गई थी। उस समय सौम्यदीप बाइलरी एट्रेसिया से पीड़ित थे, जिसके चलते उनमें लिवर की बीमारी के कई लक्षण (symptoms of liver disease) दिखाई दे रहे थे जैसे पीला यूरीन, सफेद मल, पीलिया और शरीर में बिलिरूबीन का बढ़ा हुआ स्तर। 1999 में बहुत कम लोग लिवर ट्रांसप्लांट (liver transplant) के बारे में जानते थे, खासतौर पर छह साल की उम्र में इस ऑपरेशन को बहुत जटिल माना जाता था। सौम्यदीप आज बतौर अकाउंटेंट कनाडा में काम करते हैं और ट्रांसप्लांट के बाद एक स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।
अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के संस्थापक एवं चेयरमैन डॉ. प्रताप सी रेड्डी ने कहा, ‘‘लिवर रोग देश में चिंता का मुख्य विषय बन चुका है। हर साल तकरीबन 2 लाख लोगों की मृत्यु लिवर रोगों के कारण हो जाती है। हर साल देश में 1800 लिवर ट्रांसप्लांट किए जाते हैं, जबकि एक समय में 20,000 लोगों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। हर साल देश में 10 लाख लोगों में लिवर रोगों का निदान किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, यह देश में मृत्यु का दसवां सबसे बड़ा कारण है। लिवर ट्रांसप्लांट सही समय पर नहीं करवाने से मरीज की मृत्यु हो सकती है।
अपोलो के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर एवं सीनियर पीडिएट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट और हेपेटोलॉजिस्ट डॉ. अनुपम सिब्बल का कहना है कि बीस साल पहले सौम्यदीप के परिवार ने हम पर भरोसा किया था। आज लिवर ट्रांसप्लांट भारत में सफल हो चुका है। अब तक हमारे हॉस्पिटल ने अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसप्लांट 50 से अधिक देशों के 3400 से अधिक मरीजों में सफल लिवर ट्रांसप्लांट कर चुका है, जिसमें से 345 बच्चों पर सफल ऑपरेशन किए गए हैं।
सौम्यदीप घोष ने कहा कि मैं सभी डॉक्टर्स के प्रति आभारी हूं, जिन्होंने 20 साल पहले मुझे नया जीवन दिया। उनकी मदद के बिना मैं आज यहां नहीं होता। मेरे परिवार और माता-पिता ने मुझे हमेशा कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित किया। मैं देश के लोगों का जीवन बचाने में योगदान देना चाहता हूं और जीवन की किसी भी चुनौती से निपटने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहता हूं, उनके लिए अनुकरणीय उदाहरण बनना चाहता हूं।’’