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ब्रांड के प्रति जुनून हर उद्योग को परेशान करता है, हालांकि हेल्थकेयर इंडस्ट्री में इसका नकारात्मक प्रभाव अधिक गंभीर रहा है। अधिकांश भारतीयों के लिए उचित स्वास्थ्य सेवा तक पहुंचने का सपना अभी भी दूर लगता है, क्योंकि अधिकांश दवाएं या तो उपलब्ध नहीं हैं, और अगर वे उपलब्ध भी हैं तो वे न तो सुलभ हैं और न ही सस्ती। इसके ऊपर किसी ब्रांड के लिए जुनून एक और समस्या है जो इस स्थिति को और भी बदतर बना देती हैं।
दवाएं बनाने का एक फॉर्मूला होता है, जिसमें अलग अलग कैमिकल मिलाकर दवाई बनाई जाती है, एक दवा बनाने में कई सॉल्ट्स और मोलेक्यूल का संयोजन होता है। एक व्यक्ति को दवा खरीदते समय दवा में इस्तेमाल किये गए कैमिकल्स पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि उस ब्रांड नाम पर जिसके तहत दवा की मार्केटिंग की जाती है।
जेनेरिक दवाएं वे हैं जिन्हें बाजार में जेनेरिक नाम से बेचा जाता है। जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं के बीच एकमात्र बड़ा अंतर एक दवा की छवि बनाने और बिक्री बढ़ाने के लिए उपयोग की जाने वाली मार्केटिंग रणनीतियों का है। वर्षों से फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज, ट्रेडिंग एजेंटों और दवा निर्माताओं ने बड़ी ध्यान से ब्रांडेड दवाओं की छवि को जेनेरिक दवाओं के बेहतर विकल्प के रूप में तैयार किया है। इन्हीं आकर्षक मार्केटिंग और विज्ञापन रणनीतियों का उपयोग करते हुए उन्होंने ब्रांडेड दवाओं की इस छवि को ग्राहकों को बेच दिया है। साथ ही बाजार में ये दवाएं इस झूठे दावे के साथ बेची जा रही हैं, कम कीमत में उपलब्ध जेनेरिक दवाओं से श्रेष्ठ और बेहतर गुणवत्ता वाली हैं।
मेडिकल स्टोर और केमिस्टों पर ब्रांडेड दवाओं की बिक्री पर जोर देने के लिए उन्हें दवाओं पर अधिक लाभ और मार्जिन दिया जाता है। यही कारण है कि सामान्य दवाएं ऊंचे रेट पर बिकती हैं। उद्योग के विभिन्न स्टेकहोल्डर्स, चाहे वह विक्रेता हों, दवा निर्माता हों, और यहां तक कि हेल्थकेयर प्रोफेशनल भी, सभी ने इस छवि को ब्रांडेड दवाओं के निर्माण में जोड़ा है।
इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है, क्योंकि उन्हें दवाओं के लिए बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। विज्ञापनों और मीडिया प्लेटफॉर्म से जो वह सीख लेते हैं कि ब्रांडेड दवाएं जेनेरिक से बेहतर हैं, ये दवाओं की आपूर्ति की कमी या जमाखोरी होने पर उन्हें दवा के अन्य विकल्पों को खरीदने से रोकती हैं।
हालांकि, हाल के वर्षों में जेनेरिक दवाओं की दक्षता और प्रभावकारिता को लेकर जागरूकता बढ़ रही है। वे न केवल समान रूप से उपयोगी हैं, बल्कि वे वास्तव में स्वास्थ्य सेवा को सभी के लिए बेहतर और सुलभ बनाती हैं। अब समय आ गया है कि हम एक सीखने की प्रक्रिया शुरू करने का प्रयास करें। वर्तमान समय में उद्योगों द्वारा अपने निहित स्वार्थों के लिए उपभोक्ताओं को खिलाई जाने वाली चीजों की अनदेखी करना आवश्यक है।
तो वास्तव में अगर किसी को इस सवाल का जवाब जानना है कि कौन सा विकल्प बेहतर है ब्रांडेड दवाएं या जेनेरिक दवाएं, तो इसका जवाब वास्तव में सरल है। क्योंकि दोनों ही मूलतः एक ही चीज हैं, लेकिन ब्रांड के नाम, विभिन्न पैकेजिंग और मार्केटिंग रणनीतियों के कारण ब्रांडेड दवाएं महंगी है। जेनेरिक दवाएं बहुत सुलभ, सस्ती और बेहतर आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) हैं जो इसे आसानी से उपलब्ध, सस्ती और सभी के लिए सुलभ बनाती हैं। यह ग्राहक को तय करना है कि क्या किसी दवा की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए मार्केटिंग और अलग, आकर्षक पैकेजिंग एक मानदंड होना चाहिए या नहीं। यह समय है कि हम नई जानकारी को स्वीकार करें और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा निर्धारित अपने पूर्वाग्रहों (Prejudices) और रूढ़ियों (Stereotypes) को बदलें।
एक ऐसी चीज जो अपनी रासायनिक संरचना में दूसरों के लगभग समान है, लेकिन सस्ती कीमत पर और आसानी से उपलब्ध है, किसी भी स्थित में एक बेहतर विकल्प है। तर्कसंगत उपभोक्ताओं के रूप में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे समझें और खुद को जागरूक करें।
(Inputs: Arushi Jain, Executive Director Stayhappi Pharmacy)