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डायबिटीज (Diabetes) एक लंबे समय तक रहने वाली बीमारियों में से एक है। हालांकि इसका प्रभावी तरीके से और आसानी से प्रबंधन किया जा सकता है। सिर्फ आवश्यकता है इस स्थिति को स्वीकारने और रोग के अनुसार अपने खानपान की आदतों में बदलाव करने की है। साथ ही डॉक्टर की सलाह को मानना भी महत्वपूर्ण है। सामान्य तौर पर जीवन शैली में छोटे-छोटे बदलाव और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त जानकारी रखते हुए, रोग के कारणों और बचाव पर ध्यान दिया जाए तो डायबिटीज के साथ स्वस्थ तरीके से जीवन जीना आसान है।
विशेषज्ञों को भी डायबिटीज रोगियों को मार्गदर्शन देना चाहिए और यह बताना चाहिए कि कैसे वे स्वयं इसका प्रबंधन कर सकते हैं। साथ ही उन्हें भावनात्मक रूप से मजबूती भी प्रदान की जानी चाहिए। ताकि वे सावधानियां रखते हुए सामान्य जीवन जी सकें। डायबिटीज के साथ जी रहे लोगों के लिए काउंसलिंग एक महत्वपूर्ण क्रम है। जिससे उन्हें इस स्थिति को लेकर जागरूकता बनी रहे।
डॉ मनोज चावला (Dr. Manoj Chwala) के अनुसार, डायबिटीज वाले रोगियों में इसके प्रबंधन एवं उपचार को लेकर जानकारी का अभाव कई बार अधिक परेशानियां पैदा कर देता है। लंबे समय में इससे माइक्रोवस्कुलर कॉम्प्लिकेशंस हो सकते हैं। साथ ही डायबिटीज दिमाग, दिल, किडनी और आंखों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। मरीज को दी जाने वाली जानकारी और उसकी काउंसलिंग डायबिटीज के बोझ को कम करने में दो महत्वपूर्ण पिलर की भूमिका निभाते हैं।
डब्ल्यूएचओ (WHO) ने दो मुख्य ध्येय निर्धारित किए हैं, जिनमें से एक केयर और दूसरा एजुकेशन है, जिससे डायबिटीज के रोगियों (Diabetes Patient) को गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने में मदद मिल सके और आने वाली समस्याओं को टाला जा सके। इससे मृत्यु दर और ट्रीटमेंट की कॉस्ट में भी कमी आए।
डायबिटीज के साथ जीवन जी रहे लोगों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले दो प्रमुख कारणों में एक इसकी जानकारी और दूसरा इस स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया शामिल है। जागरूकता से वे एक बेहतर जीवनशैली अपनाकर अच्छे परिणाम पा सकते हैं और अच्छा जीवन जी सकते हैं। सकारात्मक बने रहना भी इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकता है।
डॉ मनोज चावला कहते हैं, 'ब्लड शुगर के प्रबंधन में टेक्नोलॉजी ने भी बहुत बड़ा योगदान दिया है। अब व्यक्तिगत स्तर पर ही आप इस स्थिति को कंट्रोल करने में सक्षम है। घर पर ही अपने वायटल्स चेक किए जा सकते हैं। बल्कि कोई होने पर विशेषज्ञ से तत्काल स्थिति को साझा किया जा सकता है। आजकल कई स्मार्टफोन ऐप उपलब्ध है, जिससे सीधे डाटा डॉक्टर को भेजा जा सकता है, जो आपको परामर्श दे सकते हैं कि आपको क्या सावधानियां रखनी है या दवाओं में क्या बदलाव करने की आवश्यकता है? इसके अलावा प्रिवेन्टिव कदम उठाना भी जरूरी है।'
डॉ मनोज चावला का कहना है कि, 'भारतीयों की जीवन शैली में एक बड़ा बदलाव देखने को मिला है। बहुत बड़ी जनसंख्या अनहेल्दी फूड्स पर निर्भर हो गई है। जिससे डायबिटीज खासकर युवाओं में इसकी स्थिति बढ़ी है। योग और व्यायाम की कमी और जेनेटिक बदलाव ने भी इस स्थिति को बढ़ाया है। खतरा और बढ़ गया है, इसलिए आवश्यकता है कि जिन्हें डायबिटीज है या जिन्हें नहीं है, वे दोनों पर्याप्त जानकारी रखें और इससे होने वाले नुकसान को लेकर जागरूक रहें।'
अपनी डाइट, एक्सरसाइज, वेट कंट्रोल, ब्लड ग्लूकोस मॉनिटरिंग, दवाओं के उपयोग, पैरों और आंखों की केयर आदि विषयों को लेकर सही जानकारी से आप रिस्क फैक्टर को कंट्रोल कर सकते हैं। डायबिटीज होने पर काउंसलिंग प्रोग्राम की मदद से इस दिशा में आवश्यक बदलाव किए जा सकते हैं।
इनपुट्स: डॉ मनोज चावला, डायरेक्टर एवं कंसलटेंट डायबिटोलॉजिस्ट, लीना डायबिटीज केयर एवं मुंबई डायबिटीज रिसर्च सेंटर, सदस्य नेशनल टेक्नोलॉजी टास्क फोर्स आरएसएसडीआई