अगर दुनियाभर में अंधेपन का शिकार लोगों की बात की जाए, तो इस आबादी का एक चौथाई हिस्सा केवल भारत में है। भारत में लोगों के अंधेपन के लिए डायबिटीज भी एक बड़ा कारण है। नई दिल्ली स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल में एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर अजय अग्रवाल आपको बता रहे हैं कि डायबिटीज से किस तरह आंखों पर असर पड़ता है और नियमित रूप से आंखों की जांच कराना क्यों जरूरी है।
डायबिटीज से आंखों की रोशनी पर कैसे प्रभाव पड़ता है?
डायबिटीज का आंखों और रोशनी पर कई तरीकों से प्रभाव पड़ सकता है। डायबिटीज के मरीजों को डायबिटिक रेटिनोपैथी के कारण अंधेपन का अधिक खतरा होता है। डायबिटीज के दौरान दृष्टि में लगातार उतार-चढ़ाव, छोटी उम्र में मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, देखने के क्षमता कम होना, आंखों की मसल्स का टेम्पररी पैरालिसिस होना आदि की समस्या हो सकती है।
डायबिटिक रेटिनोपैथी का मतलब है अनकंट्रोल डायबिटीज की वजह से रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाओं में कुछ गड़बड़ी होना। डायबिटिक रेटिनोपैथी के शुरूआती चरण में दृष्टि में कमी या अन्य लक्षण नजर नहीं आते हैं। लेकिन ध्यान नहीं देने से रक्त वाहिकाएं बंद हो सकती हैं। जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, नई रक्त वाहिकाएं बनती हैं। यह रक्त वाहिकाएं काफी नाजुक होती हैं और दृष्टि संबंधी समस्याओं और अंधेपन का कारण बनती हैं। इसके अलावा इससे ब्लड प्रेशर बढ़ने, एनीमिया, किडनी डिजीज आदि का भी खतरा होता है।
आई चेक-अप क्यों जरूरी है?
ब्लड प्रेशर कंट्रोल रखने, नियमित रूप से चेक-अप कराने, आंखों की देखभाल आदि से दृष्टि संबंधी समस्या से 90 फीसदी तक बचा जा सकता है। रेटिना दृष्टि में किसी भी परिवर्तन दिखे बिना डैमेज हो सकता है। इसलिए नियमित रूप से आई चेक-अप कराते रहना जरूरी है। जब आप हर साल आंखों की जांच कराते हैं, तो डॉक्टर को प्रारंभिक चरण में ही रेटिनोपैथी को नोटिस कर लेता है। इस स्थिति में स्थिति का आसानी से इलाज किया जा सकता है। गर्भवती महिलाएं जो डायबिटीज से पीड़ित हैं, उन्हें पहली तिमाही में ही आंखों की जांच करानी चाहिए और गर्भावस्था के दौरान इस स्थिति पर नजर रखनी चाहिए।
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अनुवादक – Usman Khan
चित्र स्रोत - Shutterstock
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