हृदय प्रत्यारोपण (Heart Transplant) की प्रक्रिया में एक ऐसे व्यक्ति का हृदय लिया जाता है जिसका मस्तिष्क मृत हो चुका हो और साथ ही साथ उस व्यक्ति का ब्लड ग्रुप और हृदय का आकार ग्राही व्यक्ति से मैच मिलता हो। इसके लिए दाता व्यक्ति के परिवार वालों की सहमति भी ली जाती है।
सामान्यत: हृदय प्रत्यारोपण तब किया जाता है जब किसी कारणवश व्यक्ति का हृदय ठीक प्रकार से रक्त को संचारित न कर पाता हो।
प्रारंभ में हार्ट फेल्योर को इटीयोलॉजी, साल्ट रिस्ट्रिक्शन, फ्लोएड रिस्ट्रिक्शन और दवाओं से ठीक करने का प्रयास किया जाता है। जब इस कार्य में सफलता नहीं मिलती तो हृदय प्रत्यारोपण एकमात्र विकल्प बचता है।
हृदय प्रत्यारोपण काफी गंभीर मामलों में किया जाता है भारत में इसकी कीमत 20 से 25 लाख रुपए (Heart transplant surgery cost in india) औसतन बैठती है। हृदय प्रत्यारोपण की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। इस प्रक्रिया में कई बार 48 से 72 घंटों का समय (Heart transplant surgery time) भी लग सकता है।
कुछ मामलों में पेसमेकर आदि का भी प्रयोग किया जाता है। पेसमेकर एक ऐसा यंत्र होता है जो सूक्ष्म में विद्युत तरंगे उत्पन्न करता है और हृदय को पंप करने के लिए भेजता है। यह बैटरी से चलता है और सीने की त्वचा के नीचे ऑपरेशन के जरिए इंसर्ट कर दिया जाता है।
हृदय प्रत्यारोपित व्यक्ति की विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। ऐसे व्यक्ति की लंबे समय तक दवाई चलती हैं। इंफेक्शन से बचाने के लिए व घाव सूखने के लिए कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। कुछ मामलों में व्यक्ति को कुछ दिनों तक आईसीयू में भी रहना पड़ सकता है।
हृदय ट्रांसप्लांट के लिए व्यक्ति को नजदीकी अस्पताल में यहां पर यह सुविधा उपलब्ध हो वहां रजिस्ट्रेशन कराना होता है। जब डोनर मौजूद होता है तब अस्पताल की ओर से मरीज को संपर्क किया जाता है। कुछ मामलों में मरीज पहले से अस्पताल में एडमिट रहते हैं। ह्रदय ट्रांसप्लांट से पहले मरीज की इम्यूनिटी को दबाने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं ताकि उसका शरीर डोनर व्यक्ति के हृदय को स्वीकार कर सके।
ऑपरेशन के दौरान व्यक्ति को हार्ट लंग मशीन पर रखा जाता है जिससे व्यक्ति के पूरे शरीर में रक्त का परिसंचरण जारी रहता है।
लगभग 85 से 90% लोग हार्ट ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में सरवाइव कर जाते हैं। लगभग 4% लोग हृदय प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में प्रतिवर्ष सफल नहीं हो पाते। हृदय प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में असफलता का मुख्य कारण एक्यूट रिजेक्शन या इंफेक्शन होता है।
इससे प्रक्रिया में सफलता की दर नवयुवक व्यक्तियों की बुजुर्गों की अपेक्षा अधिक होती है। एक अध्ययन के मुताबिक बुजुर्गों की अपेक्षा 55 वर्ष या उससे कम उम्र के युवक का सफलता दर 24% अधिक होता है। जबकि बच्चों में यह सफलता दर 79% तक होती है।
(Inputs byDr Santosh Kumar Dora, Senior Cardiologist, Asian Heart Institute, Mumbai)
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