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हाल ही में सामने आए आंकड़े बताते हैं कि प्रत्येक तीन में से एक महिला की मृत्यु का कारण हार्ट डिजीज है। हार्ट की बीमारी को पुरुष प्रधान माना जाता है, इस वजह से उनमें सामने आने वाले लक्षणों को आमतौर पर नजरअंदाज किया जाता है, जबकि महिलाओं में इसकी जटिलताओं का विकास (Heart Disease in Women) हो जाता है, इसलिए आवश्यक है कि महिलाओं के हार्ट के स्वास्थ्य (Heart Disease in Women) पर ध्यान केन्द्रित किया जाए और इसको लेकर उनमें और जनसामान्य में जागरूकता को बढ़ाया जाए।
एक प्रचलित मिथ है कि पूर्व-रजोनिवृत्त महिलाओं में एस्ट्रोजेन से सुरक्षा के कारण दिल के दौरे (Heart attack) के विकास की संभावना कम होती है। हालांकि, क्लिनिकल अनुभव और रिसर्च बताते हैं कि हृदय रोग पुरुषों के समान ही महिलाओं को भी चपेट में लेते हैं। हार्ट अटैक की स्थिति में महिलाओं में गंभीर स्थिति बन जाती है और सर्वाइवल की संभावनाएं भी कम हो जाती हैं।
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इस बारे में जानकारी देते हुए हार्ट एंड रिद्म केयर क्लिनिक, ईस्ट पटेल नगर, दिल्ली एवं प्राइमस हार्ट इंस्टीट्यूट एट प्राइमस सुपर स्पेशिलिटी इंस्टीट्यूट (चाणक्यपुरी) के डायरेक्टर डाॅ. समीर मेहरोत्रा ने बताया कि महिलाओं में हार्ट डिजीज के लक्षण (symptoms of heart disease in women) उनके, उनके परिवार या केयर करने वालों की ओर से या तो नजरअंदाज कर दिए जाते हैं या उनके द्वारा छोड़ दिए जाते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि जब महिलाओं के स्वास्थ्य का सवाल आता है तो ज्यादा ध्यान केंसर, प्रजनन से जुड़ी समस्याओं और कमियों पर रहती है। महिलाओं में हार्ट डिजीज (Heart Disease in Women) के लक्षण भी पुरुषों की तुलना में भिन्न होते हैं। उनमें आमतौर पर चेस्ट पेन, जबड़ों में दर्द आदि महसूस नहीं होता। इस वजह से महिलाओं को समय पर परीक्षण और उपचार नहीं मिल पाता। यह आवश्यक है कि जागरूक कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं में हार्ट डिजीज को प्रकाश में लाया जाए। साथ ही उन्हें स्वस्थ जीवनशैली के साथ ही नियमित रूप से हार्ट का स्वास्थ्य परीक्षण भी करवाना चाहिए।
महिलाओं में हार्ट डिजीज (Heart Disease in Women) के कुछ रिस्क फेक्टर्स में हायपरटेंशन, डायबिटिज, मोटापा, असंयमित जीवनशैली, मेटाबाॅलिक सिन्ड्रोम, हाई काॅलेस्ट्राॅल, बीमारियों का पारिवारिक इतिहास और स्मोकिंग एवं ड्रंकिंग जैसी आदतें शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण है कि बायीं ओर चेस्ट पेन या भारीपन, सांस लेने में परेशानी या थकान, पसीने के साथ बैचेनी एवं अचानक बढ़ने-घटने वाले ब्लड प्रेशर को नजरअंदाज नहीं किया जाए।
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डाॅ. मेहरोत्रा ने बताया कि जरूरी संदेश यह है कि महिलाओं के हार्ट हेल्थ पर भी उतना ही ध्यान दिया जाने की आवश्यकता है जितना पुरुषों के स्वास्थ्य पर। समय पर जीवनशैली में किए जाने वाले बदलाव और जरूरी कदम से जोखिम कारकों को टालते हुए समस्याओं से बचा जा सकता है। महिलाओं को हार्ट डिसिज के संकेतों और जोखिम के प्रति जागरूकता रखते हुए समय-समय पर परीक्षण और नियमित चेकअप करवाते रहना चाहिए। इसमें संबंधित केस के आधार पर डाॅक्टर के परामर्श से ईसीजी, स्ट्रेस इको, टीएमटी, ईको और सिटी एन्जियो आदि शामिल है।
कुछ प्रकरणों में आवश्यक होने पर डाॅक्टर एन्जियोग्राफी का परामर्श भी देते हैं। यदि एन्जियोग्राफी से दिल में कोई समस्या सामने आती है, तो इसका उपचार और प्रबंधन स्टेनिंग के साथ एन्जियोप्लास्टि आदि से किया जाता है। एन्जियोप्लास्टि का उपयोग ब्लड फ्लो को सामान्य करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक लंबी, पतली ट्यूब (कैथेटर) आर्टरी के सिकुड़े हुए हिस्से में डाली जाती है। एक पतले तार की जाली (स्टंट) को एक गुब्बारे पर रखकर कैथेटर से सिकुड़ी हुई आर्टरी में डालकर गुब्बारे को फुलाया जाता है, यह संकुचित आर्टरी की दिवारों पर स्टंट को संकुचित आर्टरी में छोड़ देता है। ड्रग मिले हुए स्टंट दवाई छोड़ते हैं और संकुचित आर्टरी को ठीक करने की प्रक्रिया में मदद करते हैं।
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हार्ट की समस्याओं से बचने के लिए महिलाओं को कुछ डूज और डोनट्स (dos and donts to avoid heart disease in women) का पालन करना चाहिए।
-नियमित हार्ट चेकअप को नजरअंदाज नहीं करें।
- प्रतिदिन कम से कम 30 मिनिट व्यायाम करें।
- स्मोकिंग ना करें, स्मोकिंग करने वाली महिलाओं में हार्ट डिजीज का खतरा युवा उम्र में ही बढ़ जाता है। यहां तक कि पैसिव स्मोकिंग भी खतरनाक है और इसका एक्सपोजर भी अवाॅएड किया जाना चाहिए।
- प्रतिदिन 30 एमएल से अधिक शराब का सेवन नहीं करें।
-स्वास्थ्यकर भोजन की आदतों पर ध्यान दें।
- बांई ओर छाती में दर्द या भारीपन होने, सांस लेने में परेशानी आने, थकान लगने, पसीने के साथ बैचेनी होने, घबराहट या अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ने या घटने जैसी समस्याओं को नजरअंदाज नहीं करते हुए तुरंत डाॅक्टर से परामर्श लें।