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50 की उम्र के बाद हाई ब्लड प्रेशर पर ध्यान देना क्यों है ज़रूरी

50 की उम्र के बाद हाई ब्लड प्रेशर पर ध्यान देना क्यों है ज़रूरी
नियमित ब्लड प्रेशर चेक करें: अपने ब्लड प्रेशर को नियमित रूप से चेक करते रहें और जैसे ही आपको इसमें कोई बदलाव दिखे तो आप इसे कंट्रोल करने के लिए बताये हुए तरीकों को अपनाएं।

आम तौर पर सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर उम्र के साथ बढ़ता रहता है, जबकि डायस्टिॉलिक प्रेशर 50 की उम्र के बाद कम होने लगता है, जो stroke और heart disease का कारण बन जाता है।

Written by Agencies |Updated : January 5, 2017 8:38 AM IST

मूल स्रोत: IANS Hindi

50 साल से ज्यादा उम्र के मरीजों को केवल अपने उच्च रक्तचाप पर ध्यान देना चाहिए और निम्न ब्लड प्रेशर को नजरअंदाज कर देना चाहिए। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए सिस्टॉलिक प्रेशर अगर 140 एएएचजी या ज्यादा हो तो इसे हाई माना जाता है। यह जानकारी हार्ट केयर फाउंडेशन (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने दी। पढ़े- हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने के लिए क्या करें और क्या न करें

उन्होंने बताया कि सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर-ब्लड प्रेशर की रीडिंग में ऊपरी रीडिंग-दिल के पपिंग साइकल की शुरुआत में नोट किए जाने वाला नंबर होता है, जबकि डायस्टिोलिक प्रेशर रेस्टिंग साइकल के दौरान निम्नतम प्रेशर रिकार्ड करता है। ब्लड प्रेशर मापते वक्त दोनों को देखा जाता है। जर्नल ऑफ लांसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, डायस्टोलिक प्रेशर पर जोर दिया गया है, जबकि मरीज सिस्टॉलिक प्रेशर पर उचित नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं। सच्चाई यह है कि 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को तो डायस्टोलिक माप की जरूरत भी नहीं है, केवल उन्हें सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर पर ध्यान देने की जरूरत है। पढ़े- हाई ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने के लिए खाएं ये 4 ड्राई फ्रूट्स

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आम तौर पर सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर उम्र के साथ बढ़ता रहता है, जबकि डायस्टिॉलिक प्रेशर 50 की उम्र के बाद कम होने लगता है। यह वही वक्त होता है जब दिल के रोगों का समय शुरू होता है। इसलिए 50 के बाद सिस्टॉलिक हाइपरटेंशन बढ़ जाती है, जबकि डॉयटॉलिक हाइपरटेंशन होती ही नहीं। बढ़ता सिस्टॉलिक प्रेशर स्ट्रोक और दिल के रोगों के लिए बेहद अहम है। डॉ. अग्रवाल के मुताबिक, 50 से कम उम्र के लोगों में यह अलग होता है। 40 साल से कम के 40 प्रतिशत बालिगों में डायस्टोलिक हाइपरटेंशन होता है। उनमें एक 40 से 50 के एक तिहाई में यह समस्या होती है।

उन्होंने कहा कि ऐसे मरीजों के लिए सिस्टॉलिक और डॉयस्टिॉलिक ब्लड प्रेशर दोनों पर गौर करने की जरूरत होती है। लेकिन ऐसे मरीजों में भी सिस्टॉलिक ब्लड प्रेशर पर नियंत्रण रखने से डायस्टिॉलिक ब्लड प्रेशर के मामले में भी आवश्यक परिणाम आ जाते हैं।

चित्र स्रोत: Shutterstock