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इन 5 तरीकों से डिस्लेक्सिया के बच्चों को पढ़ने-लिखने में होगी आसानी

इन 5 तरीकों से डिस्लेक्सिया के बच्चों को पढ़ने-लिखने में होगी आसानी

इन टिप्स की मदद से आप डिस्लेक्सिया के बच्चों को बेहतर तरीके से पढ़ा-लिखा पायेंगे!

Written by Agencies |Updated : July 31, 2017 4:33 PM IST

क्या आपने इसके पहले डिस्लेक्सिया के बारे में सुना है? वास्तव में ये बीमारी बच्चों को सामान्य रूप से होता है क्योंकि इसका असर उसके मस्तिष्क पर होता है। इस बीमारी के कारण बच्चे के सीखने और समझने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होती है। वे दूसरे आम बच्चों की तुलना में हर चीज को देर से और बड़ी मुश्किल से समझते हैं। उनको समझाने के लिए धैर्य की ज़रूरत होती है और सही तकनिक के मदद से उनके सीखने समझने की क्षमता बेहतर होती है।

डिस्लेक्सिया दुनियाभर में प्रति 10 में से एक बच्चे को होता है। यह सीखने की अक्षमता वाली स्थिति है। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि यदि तरीका सही हो तो डिस्लेक्सिया वाले बच्चे भी सामान्य रूप से सीख सकते हैं। डिस्लेक्सिया एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अनुमान है कि भारत में लगभग 10 से 15 प्रतिशत स्कूली बच्चे किसी न किसी प्रकार प्रकार के डिस्लेक्सिया से ग्रस्त हैं। हमारे देश में बहुत सारी भाषाएं हैं, जो स्थिति को और अधिक कठिन बना सकती हैं। यह स्थिति लड़कों व लड़कियों को समान रूप से प्रभावित कर सकती हैं। यदि कक्षा दो तक ऐसे बच्चों की पहचान नहीं हो पाई, तो ऐसे बच्चे बड़े होकर भी इस समस्या से परेशान रह सकते हैं और उस बिंदु पर इसे ठीक नहीं किया जा सकता।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "डिस्लेक्सिक बच्चों का मस्तिष्क मानसिक संरचना और काम के लिहाज से सामान्य मस्तिष्क से भिन्न होता है। ऐसे बच्चों में, मानसिक विकास के लिए जिम्मेदार तंत्रिका तंत्र बचपन से ही अलग प्रकार का होता है। यह भिन्न वाइरिंग ही डिस्लेक्सिया का कारण बनती है। इसी वजह से सीखने व पढ़ने की सामान्य प्रक्रियाएं भी ऐसे बच्चों में लंबा समय ले लेती हैं।"

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उन्होंने कहा, "हमारे देश में इस स्थिति के बारे में दुखद बात यह है कि ऐसे बच्चों को आलसी और कम बुद्धि वाला घोषित कर दिया जाता है। ये बातें उनके व्यक्तित्व को प्रभावित कर सकती हैं और उनका आत्मविश्वास व आत्मसम्मान कम होता जाता है। ऐसे बच्चों की मदद करने में प्रारंभिक पहचान एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। बच्चे के परिवार के इतिहास और अन्य संबंधित जानकारी के सहारे ऐसे बच्चों की मदद की जा सकती है।"

डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में डिसलेक्सिया के कुछ आम लक्षण हैं- बोलने में कठिनाई, हाथों व आंख में तालमेल न होना, ध्यान न दे पाना, कमजोर स्मरण शक्ति और समाज में फिट होने में कठिनाई।

उन्होंने बताया, "बच्चे की समझदारी का पहला पायदान होते हैं - उसके माता-पिता। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समस्या से भागने की बजाय, वे बच्चे की इस कठिनाई का हल खोजने की कोशिश करें, उसका चेकअप कराएं और उचित इलाज भी करवाने की पहल करें। यदि चिकित्सक बताता है कि बच्चे को डिसलेक्सिया है तो इसे जीवन का अंत न समझें। अपने बच्चे के प्रयासों को समझें, स्वीकार करें और समर्थन करें। धैर्य व समझदारी से इस समस्या का समाधान प्राप्त करने में आसानी हो सकती है।"

डिस्लेक्सिक बच्चों को उनकी शिक्षा और समझ संबंधी समस्याएं दूर करने की तकनीक :

  • सकारात्मक दृष्टिकोण रखें : बच्चे के साथ सकारात्मक तरीके से संवाद करें और धैर्य रखें। ऐसे बच्चों को चीजों को समझने में समय लगता है।
  • डिस्लेक्सिक बच्चे अधिक जिज्ञासु होते हैं। इसलिए, उन्हें तार्किक जवाब देना जरूरी है। उनके संदेह दूर करने में उनकी मदद करें।
  • विज्ञान और गणित को टाइम टेबल के हिसाब से पढ़ाने से उन्हें विषयों को समझने में मदद मिल सकती है।
  • ऑडियो-विजुअल सामग्री का अधिक उपयोग करें, क्योंकि वे इस तकनीक के साथ चीजों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। छोटे बच्चों के लिए फ्लैश कार्ड का उपयोग किया जा सकता है।
  • योग से ऐसे बच्चों में एकाग्रता बढ़ाई जा सकती है। सांस लेने के व्यायाम और वैकल्पिक चिकित्सा दवाइयों से स्थिति को संभालने में मदद मिल सकती है।

सौजन्य: IANS Hindi

चित्र स्रोत: Shutterstock